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    अर्ध चंद्रासन (चार प्रकार) करने की विधि, फायदे और सावधानियां। 1

    अर्ध चंद्रासन
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    हेलो दोस्तों INDIA TODAY ONE blog में आपका स्वागत है। इस आर्टिकल में हम अर्ध चंद्रासन चारों प्रकार के बारे में जानकारी देंगे।

    भारत में योग की परंपरा बहुत पुरानी है। योग विज्ञान में भारत की धार्मिक आस्था भी दिखाई देती है। जब हम योगासनों का अध्ययन करते है तो सभी योगासनों में न सिर्फ प्रकृति के प्रति समर्पण दिखाई देता है बल्कि धार्मिक आस्था भी नजर आती है। यही कारण है। कि ज्यादातर योगासन प्रकृति में मौजूद चीजों से ही प्रेरित होते हैं।

    भारत में सूर्य और चंद्र को नमस्कार करने की परंपरा भी रही है। इसी कारण, भारत के महान योग गुरुओं या योग विशेषज्ञ (yoga Expert) ने सूर्य नमस्कार और चंद्र नमस्कार योग का निर्माण भी किया है। प्रतिदिन इन योगासनों का अभ्यास शरीर और मन के लिए बहुत फायदेमंद माना जाता है। इन योगासनों से मिलने वाले फायदों को अब वैज्ञानिक भी स्वीकार कर चुके हैं।

    योग गुरुओं एवं योग विशेषज्ञ (yoga Expert) अर्ध चंद्रासन को अलग-अलग ढंग से करवाने के कारण हमने अर्ध चंद्रासन के चारों प्रकार यहाँ पर दर्शाया है।

    इसलिए, इस लेख में हम  अर्ध चंद्रासन के चारों प्रकार के बारे में जानेंगे। अर्ध चंद्रासन क्या है, अर्ध चंद्रासन करने का सही तरीका, अर्ध चंद्रासन करने के फायदे और सावधानियों के बारे में जानकारी देंगे।

    Table of Contents

    अर्ध चंद्रासन (प्रथम प्रकार)

    अर्ध चंद्रासन (प्रथम प्रकार) करने का सही तरीका।

    अर्ध चंद्रासन (प्रथम प्रकार) करने की विधि।

    अर्ध चंद्रासन

    विधि।

    • सर्वप्रथम आप अपने आसन पर शांतचित्त व प्रसन्न मन के साथ अपने दोनों पैरों को एक साथ मिलाकर सावधान की स्थिति में खड़े हों जाएं।
    • अब दोनों पैरों के बीच लगभग 2-3 फीट का अंतर बनाए और दोनों हाथों को कंधे की सीध में जमीन के समानांतर रखें।
    • चूँकि आपको चित्रानुसार मुद्रा बनानी है, अतः दाहिनी तरफ झुकते हुए दाहिने घुटने को मोड़ें।
    • अब धीरे-धीरे पूरा संतुलन दाहिनी तरफ करते हुए बाएँ पैर को उठाएँ। और बाएँ पैर को इतना उठाएँ कि दाहिने हाथ की हथेली जमीन को छूने लगे (चित्रनुसार)
    •  और बाएँ हाथ को बाई तरफ कमर के समानांतर रखें।
    • 10-20 सेकंड इस मुद्रा में रुकें। और श्वास की गति सामान्य रखें।
    • क्रमशः अब अपनी मूल स्थिति में आ जाएँ।
    • अब यही क्रिया पैर बदलकर दूसरे पैर से करें।

    श्वास का क्रम/समय।

    • श्वास की गति और समय ऊपर विधि में बताया गया है।

    अर्ध चंद्रासन (प्रथम प्रकार) का अभ्यास करने के लिए इस वीडियो की मदद लें।

    अर्ध चंद्रासन (प्रथम प्रकार) करने के फायदे।

    इस आसन का नियमित अभ्यास करने के फायदे।

    • पैरों के मांसपेशियों को मजबूत बनाता है। जिनके पैर काँपते हों एवं पैरों में सुन्न पड़ना वे इस आसन को अवश्य करें। लाभ मिलेगा।
    • यह आसन मेरुदण्ड के निचले भाग एवं पृष्ठ भाग को मजबूत करता है।
    • घुटने के दर्द से राहत मिलती हैं। घुटने के दर्द व ऐंठन को ठीक कर लाभ पहुँचाता है।
    • वायु-निष्कासन कर शरीर हल्का करता है। अतः व्यक्ति अपने आप को हल्का महसूस करता है।
    • अनेक प्रकार के शारीरिक लाभ स्वतः ही प्राप्त हो जाते हैं।

     

    अर्ध चंद्रासन (द्वितीय प्रकार)

    अर्ध चंद्रासन (द्वितीय प्रकार) करने का सही तरीका।

    अर्ध चंद्रासन (द्वितीय प्रकार) करने की विधि।

    अर्ध चंद्रासन

    विधि।

    • सर्वप्रथम वज्रासन की स्थिति में बैठे जाएं।
    • अब घुटनों के बल खड़े हो जाएं।
    • अब पीठ व सिर को पीछे की और झुकाएँ (चित्रनुसार)।
    • हाथों को छाती के सामने आपस में बाँध लें।
    • कुछ योग गुरू एवं योग विशेषज्ञ (yoga Expert) इसको अर्ध उष्ट्रासन भी कहते है।

    श्वास का क्रम।

    • इस आसन के अभ्यास में पीछे झुकते समय अंतःकुंभक करें।
    • वापस मूल अवस्था में लौटते समय श्वास छोड़ें।

    अर्ध चंद्रासन (द्वितीय प्रकार) का अभ्यास करने के लिए इस वीडियो की मदद लें।

    अर्ध चंद्रासन (द्वितीय प्रकार) करने के फायदे।

    इस आसन का नियमित अभ्यास करने के फायदे।

    • रीड की हड्डी मजबूत एवं लचीली बनती है।
    • पीठ, कमर व मेरुदण्ड के रोग ठीक होते हैं।
    • पाचन तंत्र (Digestive System) मजबूत होता है। और पाचन शक्ति को बढ़ाता है।
    • कब्ज की समस्या दूर होती है।
    • छाती (Chest) खुलती है।

    अर्ध चंद्रासन (तृतीय प्रकार)

    अर्ध चंद्रासन (तृतीय प्रकार) करने का सही तरीका।

    अर्ध चंद्रासन (तृतीय प्रकार) करने की विधि।

    अर्ध चंद्रासन

    विधि।

    • सर्वप्रथम अपने आसन पर दोनों घुटनों के बल खड़े हो जाएँ।
    • अब बाएँ पैर को लगभग 1 फिट आगे लाएं और पंजे को ज़मीन पर रखें। (चित्रनुसार)
    • अब दाहिने पैर को पीछे की ओर खींचते हुए गर्दन व पीठ को पीछे की तरफ़ धीरे-धीरे अपनी क्षमता अनुसार झुकाएँ। (चित्रनुसार)
    • अब अपने दोनों हाथों नमस्कार की मुद्रा में ऊपर की तरफ़ उठाकर पीछे की ओर झुकाते हुए अर्ध चंद्राकार का निर्माण करें।
    • अब वापस मूल अवस्था में आएँ।
    • अब यही क्रिया पैर बदलकर दूसरे पैर से दोहराएँ।
    • कुछ योग गुरू एवं योग विशेषज्ञ (yoga Expert) इसको अंजनेयासन भी कहते है।

    ध्यान।

    • इस आसन को करते समय अपना ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र पर केंद्रित करें।

    श्वास का क्रम।

    • इस आसन के अभ्यास के दौरान पीछे की तरफ़ मुड़ते हुए श्वास लें एवं मूल अवस्था में लौटते समय श्वास छोड़ें।

    समय।

    • इस आसन को दोनों पैरों से 5-5 बार दोहराएं।

    अर्ध चंद्रासन (तृतीय प्रकार) का अभ्यास करने के लिए इस वीडियो की मदद लें।

    अर्ध चंद्रासन (तृतीय प्रकार) करने के फायदे।

    इस आसन का नियमित अभ्यास करने के फायदे।

    • इसके अभ्यास से पैरों की मांसपेशियां मजबूत बनती है।
    • मेरुदण्ड को सशक्त एवं लचीला बनाता है।
    • शरीर के रक्त संचार (blood circulation) को सुचारु करता है।
    • स्त्री रोगों के लिए अति लाभकारी योगासन हैं।
    • इसके अभ्यास से ग्रीवा (Neck) एवं फेफड़ों को पर्याप्त लाभ पहुँचाता है।

     

    अर्ध चंद्रासन (चतुर्थ प्रकार)

    अर्ध चंद्रासन (चतुर्थ प्रकार) करने का सही तरीका।

    अर्ध चंद्रासन (चतुर्थ प्रकार) करने की विधि।

    अर्ध चंद्रासन

    विधि।

    • अर्ध चंद्रासन (चतुर्थ प्रकार) के अभ्यास करने की विधि उष्ट्रासन के समान ही है।
    • सर्वप्रथम वज्रासन में बैठ जाएँ
    • अब घुटनों के बल खड़े हो जाएँ और पीछे की तरफ झुकते हुए चित्र अनुसार दाहिने हाथ से दाहिनी एड़ी एवं बाएँ हाथ से बाई एड़ी को पकड़ें।
    • अब सिर को पीछे झुकाएँ। उदर क्षेत्र, नाभि एवं वक्षस्थल (chest area) को आगे की ओर उभारें।
    • तथा सिर एवं मेरुदण्ड को जितना हो सके पीछे की तरफ झुकाएँ और इस मुद्रा में 10-15 सेकंड रहें।

    श्वास का क्रम।

    • अन्तः कुम्भक करते समय आसन की स्थिति बनायें एवं पुनः मूल अवस्था में लौटते समय श्वास छोड़ें।

    समय।

    • पूर्ण स्थिति में 10-15 सेकंड तक रुके और यह आसन 4-5 बार करें।

    अर्ध चंद्रासन (चतुर्थ प्रकार) का अभ्यास करने के लिए इस वीडियो की मदद लें।

    अर्ध चंद्रासन (चतुर्थ प्रकार) करने के फायदे।

    इस आसन का नियमित अभ्यास करने के फायदे।

    • वे सभी लाभ प्राप्त होते हैं जो उष्ट्रासन का अभ्यास करने से प्राप्त होते हैं।
    • कमर, पीठ, मेरुदण्ड, पेट, गर्दन एवं सिर को धीरे-धीरे रोगों से छुटकारा मिलता है।
    • पेट की अतिरिक्त चर्बी को कम करे में मददगार
    • शारीरिक मुद्रा (body posture) में सुधार होता है।
    • पीठ और कंधों को मजबूत एवं शक्तिशाली बनाएं
    • पाचन तंत्र (Digestive System) को बेहतर बनाए
    • दमा के रोगी यह आसन अवश्य करें। इससे श्वसन-तंत्र मज़बूत होता है।
    • वात रोगी को जोड़ों के दर्द से राहत मिलती है।
    • यह नेत्र की ज्योति बढ़ाता है।
    • स्वर ठीक करता है।
    • जननेंद्रिय के समस्त रोग दूर करता है।
    • स्त्रियों के कई रोगों के लिए यह आसन अति उत्तम है।

    सावधानियां।

    • जटिल उदर रोग से पीड़ित और कड़क मेरुदण्ड व्यक्ति इस आसन का अभ्यास न करें।

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    सारांश।

    योग करना अच्छी आदत है। कभी भी जल्दी फायदे पाने के चक्कर में शरीर की क्षमता से अधिक  योगाभ्यास करने की कोशिश न करें। योगासनों का अभ्यास किसी भी वर्ग विशिष्ट के लोग कर सकते हैं।

    अर्ध चंद्रासन, इस योगासन के नियमित अभ्यास से शरीर से सम्बंधित बीमारियों को दूर करने में मदद मिलती है। किन्तु हमारी मंत्रणा यही है कि कभी भी किसी अनुभवी योगाचार्य या योग विशेषज्ञ (yoga Expert) की मदद के बिना मुश्किल योगासनों का अभ्यास या आरंभ न करें। किसी योग शिक्षक की देखरेख में ही मुश्किल योगासनों का अभ्यास करें। इसके अलावा अगर कोई गंभीर बीमारी हो तो योगासन का आरंभ करने से पहले डॉक्टर या अनुभवी योगाचार्य की सलाह जरूर लें

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