• Thu. Nov 21st, 2024

    INDIA TODAY ONE

    Knowledge

    उत्थित द्विपाद शीर्षासन (Utthit Dwipada Shirshasana).1

    उत्थित द्विपाद शीर्षासन
    WhatsApp Group Join Now
    Telegram Group Join Now

    हेलो दोस्तों INDIA TODAY ONE blog में आपका स्वागत है। इस लेख में हम उत्थित द्विपाद शीर्षासन के बारे में जानेंगे। उत्थित द्विपाद शीर्षासन क्या है, उत्थित द्विपाद शीर्षासन करने का सही तरीका, उत्थित द्विपाद शीर्षासन करने के फायदे और सावधानियों के बारे में जानकारी देंगे।

    उत्थित द्विपाद शीर्षासन का शाब्दिक अर्थ।

    उत्थित द्विपाद शीर्षासन एक संस्कृत भाषा का शब्द हैं। उत्थित द्विपाद शीर्षासन पाँच शब्दों से मिलकर बना है। द्वि+पाद+शीर्ष+आसन जिसमें द्वि मतलब दो, पाद मतलब पैर एवं शीर्ष अर्थात् सिर(मस्तिष्क) और आसन का अर्थ होता है मुद्रा। इस आसन के अभ्यास के दौरान दोनों पैरों को सिर पर रखा जाता है। इसीलिए इसे द्विपाद शीर्षासन कहते है।

    उत्थित द्विपाद शीर्षासन करने का सही तरीका।

    उत्थित द्विपाद शीर्षासन करने की विधि।

    उत्थित द्विपाद शीर्षासन

    विधि।

    • दोनों हाथों को जाँघों के पास ज़मीन पर स्थिर करें या सामने की तरफ़ पैरों को फैलाकर बैठें। पहले एक पैर को दोनों हाथों का सहारा लेते हुए कंधे पर स्थिर करें। तत्पश्चात् दूसरे पैर से भी आसन निर्मित करें और दोनों पैरों को कैंचीनुमा ढंग से फँसा लें। दोनों हाथों को जाँघों के बीच में से निकालकर सामने ज़मीन पर हथेलियों को रखें एवं संतुलन बनाते हुए भुजाओं के बल पूरे शरीर को धीरे-धीरे ऊपर उठाएँ। थकान या अस्थिरता होने पर धीरे-धीरे वापस आएँ एवं क्रमशः पैरों को बंधन से मुक्त करें।
    • सर्वप्रथम अपने आसन पर दोनों पैरों को सामने की तरफ फैलाकर बैठ जाएँ।
    • अब एक-एक करके अपने दोनों पैरों को दोनों हाथों के सहारे से दोनों कंधों पर रखें। एवं दोनों पैरों को व्यवस्थित कर आपस में कैंचीनुमा ढंग से फँसा लें (चित्रानुसार)
    • अब दोनों हाथों को जाँघों के बीच में से निकालकर सामने ज़मीन पर हथेलियों को रखें एवं संतुलन बनाते हुए भुजाओं के बल पूरे शरीर को धीरे-धीरे ऊपर उठाएँ। (चित्रानुसार)
    • यह संतुलन एवं उच्च अभ्यास का आसन है। पहली ही बार में पूर्ण अभ्यास करने का प्रयास न करें और ज़बरदस्ती न करें। तथा इस आसन का अभ्यास किसी योग गुरु की देख रेख में और धैर्य पूर्वक करें।
    • यह आसन उन साधकों को करना चाहिए जो कि एक पाद शिरासन करने में अभ्यस्त है।

    श्वास का क्रम।

    • अभ्यास के दौरान शरीर को ऊपर उठते समय पूरक करें।
    • आसन की पूर्ण अवस्था में सामान्य श्वास-प्रश्वास करें।
    • वापस मूल अवस्था में लौटते समय रेचक करें।

    समय।

    • इस आसन का अभ्यास 10-30 सेकेण्ड करें या सुविधापूर्वक अपनी क्षमता अनुसार जितनी देर कर सकें करें।

    उत्थित द्विपाद शीर्षासन का अभ्यास करने के लिए इस वीडियो की मदद लें।

    उत्थित द्विपाद शीर्षासन करने के फायदे।

    उत्थित द्विपाद शीर्षासन का नियमित अभ्यास करने के फायदे।

    • इस आसन के अभ्यास से वे सभी लाभ प्राप्त होते हैं जो द्विपाद शीर्षासन व उत्थित एक पाद शीर्षासन का अभ्यास करने से प्राप्त होते हैं।

    सावधानियां।

    • जो साधक उत्थित एक पाद शिरासन/द्विपाद कन्धरासन या द्विपाद शीर्षासन कर लेते हैं, वे ही साधक इस आसन का अभ्यास करें।
    • वे सभी सावधानियाँ, जो द्विपाद शिरासन/उत्थित एक पाद शीर्षासन के लिए हैं।

    👉 यह भी पढ़ें।

    सारांश।

    योग करना अच्छी आदत है। कभी भी जल्दी फायदे पाने के चक्कर में शरीर की क्षमता से अधिक योगाभ्यास करने की कोशिश न करें। योगासनों का अभ्यास किसी भी वर्ग विशिष्ट के लोग कर सकते हैं।

    उत्थित द्विपाद शीर्षासन, इस योगासन के नियमित अभ्यास से शरीर से सम्बंधित बीमारियों को दूर करने में मदद मिलती है। किन्तु हमारी मंत्रणा यही है कि कभी भी किसी अनुभवी योगाचार्य या योग विशेषज्ञ (yoga Expert) की मदद के बिना मुश्किल योगासनों का अभ्यास या आरंभ न करें। किसी योग शिक्षक की देखरेख में ही मुश्किल योगासनों का अभ्यास करें। इसके अलावा अगर कोई गंभीर बीमारी हो तो योगासन का आरंभ करने से पहले डॉक्टर या अनुभवी योगाचार्य की सलाह जरूर लें

    FAQs

    Ques 1. उत्थित द्विपाद शीर्षासन करने की विधि?

    Ans. उत्थित द्विपाद शीर्षासन करने की विधि।

    • दोनों हाथों को जाँघों के पास ज़मीन पर स्थिर करें या सामने की तरफ़ पैरों को फैलाकर बैठें। पहले एक पैर को दोनों हाथों का सहारा लेते हुए कंधे पर स्थिर करें। तत्पश्चात् दूसरे पैर से भी आसन निर्मित करें और दोनों पैरों को कैंचीनुमा ढंग से फँसा लें। दोनों हाथों को जाँघों के बीच में से निकालकर सामने ज़मीन पर हथेलियों को रखें एवं संतुलन बनाते हुए भुजाओं के बल पूरे शरीर को धीरे-धीरे ऊपर उठाएँ। थकान या अस्थिरता होने पर धीरे-धीरे वापस आएँ एवं क्रमशः पैरों को बंधन से मुक्त करें।
    • सर्वप्रथम अपने आसन पर दोनों पैरों को सामने की तरफ फैलाकर बैठ जाएँ।
    • अब एक-एक करके अपने दोनों पैरों को दोनों हाथों के सहारे से दोनों कंधों पर रखें। एवं दोनों पैरों को व्यवस्थित कर आपस में कैंचीनुमा ढंग से फँसा लें (चित्रानुसार)
    • अब दोनों हाथों को जाँघों के बीच में से निकालकर सामने ज़मीन पर हथेलियों को रखें एवं संतुलन बनाते हुए भुजाओं के बल पूरे शरीर को धीरे-धीरे ऊपर उठाएँ। (चित्रानुसार)
    • यह संतुलन एवं उच्च अभ्यास का आसन है। पहली ही बार में पूर्ण अभ्यास करने का प्रयास न करें और ज़बरदस्ती न करें। तथा इस आसन का अभ्यास किसी योग गुरु की देख रेख में और धैर्य पूर्वक करें।
    • यह आसन उन साधकों को करना चाहिए जो कि एक पाद शिरासन करने में अभ्यस्त है।

    Ques 2. उत्थित द्विपाद शीर्षासन करने के क्या फायदे है?

    Ans. उत्थित द्विपाद शीर्षासन का नियमित अभ्यास करने के फायदे।

    • इस आसन के अभ्यास से वे सभी लाभ प्राप्त होते हैं जो द्विपाद शीर्षासन व उत्थित एक पाद शीर्षासन का अभ्यास करने से प्राप्त होते हैं।

     

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    error: Content is protected !!

    Discover more from INDIA TODAY ONE

    Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

    Continue reading