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    उत्थित वृश्चिक आसन करने की विधि, फायदे और सावधानियां – utthit vrshchik aasan in Hindi.1

    उत्थित वृश्चिक आसन
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    हेलो दोस्तों INDIA TODAY ONE blog में आपका स्वागत है। इस लेख में हम उत्थित वृश्चिक आसन के बारे में जानेंगे। उत्थित वृश्चिक आसन क्या है, उत्थित वृश्चिक आसन करने का सही तरीका, उत्थित वृश्चिक आसन करने के फायदे और सावधानियों के बारे में जानकारी देंगे।

    उत्थित वृश्चिक आसन का शाब्दिक अर्थ।

    उत्थित वृश्चिक आसन एक संस्कृत भाषा का शब्द हैं। उत्थित वृश्चिक आसन तीन शब्दों से मिलकर बना है। उत्थित+वृश्चिक +आसन जिसमें “उत्थित” अर्थात् ‘उठा हुआ’, वृश्चिक का अर्थ बिच्छू है। और आसन का अर्थ होता है मुद्रा। यह अपेक्षाकृत कठिन योगासन है। जिनका मेरुदण्ड व पीठ लचीली हो, कलाई मजबूत हो एवं जो संतुलन के अभ्यासी हो तथा जो वृश्चिक आसन लगा लेते हैं, वे ही इस आसन का अभ्यास करें।

    उत्थित वृश्चिक आसन करने का सही तरीका।

    उत्थित वृश्चिक आसन करने की विधि।

    उत्थित वृश्चिक आसन
    विधि।

    • इस योगासन को करने के लिए द्रढ़ संकल्प और प्रतिदिन के अभ्यास की आवश्यकता होती है।
    • सर्वप्रथम अपने आसन पर ताड़ासन में खड़े हो जाए।
    • अब शीर्षासन लगाए।
    • अब अपनी क्षमता अनुसार सिर और गर्दन को उठाएँ। संतुलित हो जाएँ।
    • अब मेरुदण्ड और सीना तानते हुए घुटने मोड़ें और पैर के पंजों को सिर के पिछले हिस्से से स्पर्श कराएँ, पैरों की अंगुलियाँ सामने की तरफ़ रखें।(चित्रानुसार)
    • जो साधक/साधिका वृश्चिक आसन लगाते हैं, वे उसी अवस्था में हाथों को सीधा करते हुए पंजों के बल खड़े हो जाएँ।

    श्वास का क्रम/समय।

    • इस आसन में हाथों के पंजों व कलाईयों पर संतुलन बनाते हुए 10-15 सेकण्ड तक रुकें।
    • अंतिम स्थिति में श्वास की गति सामान्य रखें।

    उत्थित वृश्चिक आसन का अभ्यास करने के लिए इस वीडियो की मदद लें।

    उत्थित वृश्चिक आसन करने के फायदे।

    उत्थित वृश्चिक आसन का नियमित अभ्यास करने के फायदे।

    • इस आसन के अभ्यास के दौरान में गर्दन, कंधे, सीना, फेफड़े, मेरुदण्ड, पृष्ठभाग और उदर-क्षेत्र सभी तने हुए रहते हैं। इस कारण श्वास क्रिया अधिक तेज एवं कष्ट कर प्रतीत होती है।
    • कंधे, भुजाएँ शक्तिशाली बनती हैं।
    • सीने, मेरुदण्ड और ग्रीवा के रोगों में लाभ मिलता है। मेरुदण्ड लचीला एवं सशक्त होता है।
    • पृष्ठभाग के संस्थान सशक्त और स्वस्थ होते हैं।
    • उदर-क्षेत्र के विकार दूर होते हैं एवं पाचन तंत्र (Digestive System) में सुधार होता है। एवं पाचन तंत्र (Digestive System) सक्रिय हो जाता है।
    • यह आसन ओज, तेज और चेहरे की चमक बढ़ाता है। और चेहरे की झुर्रियों को समाप्त कर देता है।
    • मानसिक विकारों में यथासंभव लाभ मिलता है। तथा मानसिक शांति प्राप्त होती है एवं द्रढ़ता आती है।
    • आंखो से सम्बंधित समस्याओं से निजात मिलती हैं। नेत्र सम्बंधी दोष दूर होते हैं।और आँखों की रोशनी बढ़ती है।
    • बाल से सम्बंधित समस्या जैसे बालों का असमय पकना, बाल का झड़ना, बाल का सफेद होना, डेंड्रफ , रुखेपन इत्यादि से आप को छुटकारा मिलता है।
    • जीवन उत्साह और स्फूर्ति से भर जाता है।
    • पूरा शरीर एक नव चेतना से भर जाता है।
    • इस आसनके अभ्यासके दौरान फुफ्फुस पूरी तरह फैलते हैं, अतः सुचारु रूप से काम करते हैं।
    • कुछ योगाचार्यों का कहना है। कि यह आसन मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी डालता है। इस आसन के अभ्यास के दौरान  साधक अपने पैरों से अपने सिर को स्पर्श कर या मारकर उसमें से घृणा, द्वेष, अहंकार, ईर्ष्या आदि दूषित भावनाओं को नष्ट करता है। इससे साधक दयावान, विनयशील, और विनम्र बनता है।

    सावधानियां।

    • सख्त मेरुदण्ड वाले इस आसन को न करें।
    • high blood pressure, heart patient और मेरुदण्ड से संबंधित विकार हो तो यह आसन न करें।
    • जब तक इस आसन का पूर्ण अभ्यस्त ना हो जाएँ तब तक इस आसन के अभ्यास के दौरान  किसी व्यक्ति का सहारा लें।
    • पीठ के तनाव को कम करने के लिए पश्चिमोत्तानासन या सामने की तरफ़ झुकने वाले आसन करें।
    • किसी योग शिक्षक की देख-रेख में करें।

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    सारांश।

    योग करना अच्छी आदत है। कभी भी जल्दी फायदे पाने के चक्कर में शरीर की क्षमता से अधिक योगाभ्यास करने की कोशिश न करें। योगासनों का अभ्यास किसी भी वर्ग विशिष्ट के लोग कर सकते हैं।

    उत्थित वृश्चिक आसन, इस योगासन के नियमित अभ्यास से शरीर से सम्बंधित बीमारियों को दूर करने में मदद मिलती है। किन्तु हमारी मंत्रणा यही है कि कभी भी किसी अनुभवी योगाचार्य या योग विशेषज्ञ (yoga Expert) की मदद के बिना मुश्किल योगासनों का अभ्यास या आरंभ न करें। किसी योग शिक्षक की देखरेख में ही मुश्किल योगासनों का अभ्यास करें। इसके अलावा अगर कोई गंभीर बीमारी हो तो योगासन का आरंभ करने से पहले डॉक्टर या अनुभवी योगाचार्य की सलाह जरूर लें

    FAQs

    Ques 1. उत्थित वृश्चिक आसन करने की विधि?

    Ans. उत्थित वृश्चिक आसन करने की विधि।

    • इस योगासन को करने के लिए द्रढ़ संकल्प और प्रतिदिन के अभ्यास की आवश्यकता होती है।
    • सर्वप्रथम अपने आसन पर ताड़ासन में खड़े हो जाए।
    • अब शीर्षासन लगाए।
    • अब अपनी क्षमता अनुसार सिर और गर्दन को उठाएँ। संतुलित हो जाएँ।
    • अब मेरुदण्ड और सीना तानते हुए घुटने मोड़ें और पैर के पंजों को सिर के पिछले हिस्से से स्पर्श कराएँ, पैरों की अंगुलियाँ सामने की तरफ़ रखें।(चित्रानुसार)
    • जो साधक/साधिका वृश्चिक आसन लगाते हैं, वे उसी अवस्था में हाथों को सीधा करते हुए पंजों के बल खड़े हो जाएँ।

    Ques 2. उत्थित वृश्चिक आसन करने के क्या फायदे है?

    Ans. उत्थित वृश्चिक आसन का नियमित अभ्यास करने के फायदे।

    • इस आसन के अभ्यास के दौरान में गर्दन, कंधे, सीना, फेफड़े, मेरुदण्ड, पृष्ठभाग और उदर-क्षेत्र सभी तने हुए रहते हैं। इस कारण श्वास क्रिया अधिक तेज एवं कष्ट कर प्रतीत होती है।
    • कंधे, भुजाएँ शक्तिशाली बनती हैं।
    • सीने, मेरुदण्ड और ग्रीवा के रोगों में लाभ मिलता है। मेरुदण्ड लचीला एवं सशक्त होता है।
    • पृष्ठभाग के संस्थान सशक्त और स्वस्थ होते हैं।
    • उदर-क्षेत्र के विकार दूर होते हैं एवं पाचन तंत्र (Digestive System) में सुधार होता है। एवं पाचन तंत्र (Digestive System) सक्रिय हो जाता है।
    • यह आसन ओज, तेज और चेहरे की चमक बढ़ाता है। और चेहरे की झुर्रियों को समाप्त कर देता है।
    • मानसिक विकारों में यथासंभव लाभ मिलता है। तथा मानसिक शांति प्राप्त होती है एवं द्रढ़ता आती है।
    • आंखो से सम्बंधित समस्याओं से निजात मिलती हैं। नेत्र सम्बंधी दोष दूर होते हैं।और आँखों की रोशनी बढ़ती है।
    • बाल से सम्बंधित समस्या जैसे बालों का असमय पकना, बाल का झड़ना, बाल का सफेद होना, डेंड्रफ , रुखेपन इत्यादि से आप को छुटकारा मिलता है।
    • जीवन उत्साह और स्फूर्ति से भर जाता है।
    • पूरा शरीर एक नव चेतना से भर जाता है।
    • इस आसनके अभ्यासके दौरान फुफ्फुस पूरी तरह फैलते हैं, अतः सुचारु रूप से काम करते हैं।
    • कुछ योगाचार्यों का कहना है। कि यह आसन मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी डालता है। इस आसन के अभ्यास के दौरान  साधक अपने पैरों से अपने सिर को स्पर्श कर या मारकर उसमें से घृणा, द्वेष, अहंकार, ईर्ष्या आदि दूषित भावनाओं को नष्ट करता है। इससे साधक दयावान, विनयशील, और विनम्र बनता है।

     

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