योग विज्ञान की खोज हजारों साल पहले भारत में हुई थी। योग भारत की प्राचीन विधा है। महान योग गुरुओं और तपस्वियों ने योग को हजारों साल की कठिन तपस्या के बाद निर्मित किया है। आज शरीर और मन की ऐसी कोई भी समस्या नहीं है जिसका हल योग के पास न हो। इस ज्ञान को अब वैज्ञानिक मान्यता भी मिल चुकी हैं।
भारत के महान योग गुरुओं और तपस्वियों ने मनुष्य के जीवन में संतुलन बनाने के लिए कई योगासनों का निर्माण किया है। इन्हीं योगासनों में से एक प्रमुख आसन जानुशीर्षासन हैं। इस योग मुद्रा के अभ्यास से रीढ़ की हड्डी, नितंब (hips), कंधों और हैमस्ट्रिंग मांसपेशियों में अच्छा खिंचाव लगता है। कमर, मेरुदण्ड व पीठ के विकार दूर होते हैं। किडनी को ठीक करता हुआ उसे सुचारु रूप से क्रियाशील बनाता है। तथा अंडकोश की वृद्धि, यकृत और प्लीहा सम्बंधी रोगों का शमन करता है।
इसलिए, इस लेख में हम जानुशीर्षासन के बारे में जानेंगे। जानुशीर्षासन क्या है, जानुशीर्षासन करने का सही तरीका, जानुशीर्षासन करने के फायदे और सावधानियों के बारे में जानकारी देंगे।
जानुशीर्षासन का शाब्दिक अर्थ।
- जानुशीर्षासन एक संस्कृत भाषा का शब्द हैं। जो तीन शब्दों से मिलकर बना है। जानु+शीर्ष+आसन जिसमें “जानु” अर्थात् घुटना और “शीर्ष” मतलब सिर और “आसन” जिसका अर्थ होता है “मुद्रा”। एक पैर लंबवत् कर सिर को घुटने से स्पर्श कराना ही जानुशीर्षासन है।
जानुशीर्षासन करने का सही तरीका।
जानुशीर्षासन करने की विधि।
विधि।
- सर्वप्रथम अपने आसन पर दोनों पैरों को लंबवत् करके बैठें।
- अब पहले अपने बाएँ पैर को घुटने से मोड़कर एड़ी को गुप्तांग के पास लगाएँ। (चित्रानुसार)
- अब अपने दोनों हाथों को आपस में मिलाकर दाहिने पैर के अंगूठे को पकड़ने की कोशिश करें। (चित्रानुसार)
- अब धीरे-धीरे अपनी दोनों हाथों की हथेलियों को तलवों की तरफ़ ले जाएँ और इसी क्रम को जारी रखते हुए सिर को घुटनों से स्पर्श कराएँ।
- अभ्यास के दौरान सिर झुकाते समय श्वास छोड़ें।
- आसन की पूर्ण स्थिति में पहुँचने पर गहरी साँस लेते हुए 30sec.-1 min. तक रुकें।
- पुनः मूल अवस्था में आते समय श्वास लें।
- अब यही क्रिया पैर बदलकर दोहराएं।
ध्यान।
- अभ्यास के दौरान ऊर्जा को उर्ध्वमुखी बनाने के लिए आज्ञा चक्र पर एवं रोग के लिए स्वाधिष्ठान एवं मणिपूरक चक्र अपना ध्यान केंद्रित करें।
श्वास का क्रम/समय।
- श्वास का क्रम और समय ऊपर विधि में बताया गया है।
जानुशीर्षासन का अभ्यास करने के लिए इस वीडियो की मदद लें।
जानुशीर्षासन करने के फायदे
जानुशीर्षासन का नियमित अभ्यास करने के फायदे :-
- इस आसन के अभ्यास के दौरान रीढ़ की हड्डी (spinal cord), कमर, पीठ, हिप्स व पैरों की हैमस्ट्रिंग मांसपेशियों में अच्छा खिंचाव मिलता है।
- रीढ़ की हड्डी (spinal cord) को खिंचाव लगता है। जिससे रीढ़ की हड्डी (spinal cord) से जुड़ी समस्याओं को दूर करने में मदद मिलती है।
- पीठ का दर्द दूर होता है। क्योंकि यह आसन रीढ की हड्डी में रक्त प्रवाह को उत्तेजित करता है।
- शारीरिक संतुलन में सुधार होता है और लचीलापन (flexibility) बढ़ता है। और शरीर की कठोरता दूर होती है ।
- कूबड़ के उपचार में इस आसन का अभ्यास करना लाभदायक सिद्ध होता है ।
- किडनी को ठीक करता हुआ उसे सुचारु रूप से क्रियाशील बनाता है।
- यह आसन मूत्र सम्बन्धी समस्याओं को दूर करने में उपयोगी है
- ऊर्जा को ऊर्ध्वमुखी बनाता है जिससे चेहरे की कांति बढ़ती है। चेहरे की चमक बढ़ाती है।
- यह आसन पुरुषों के प्रमेह तथा स्त्रियों के प्रदर रोगों में लाभदायक है ।
- अंडकोश (scrotum) की वृद्धि से दुःखी लोग यह आसन कुछ अधिक समय तक करें। बढ़े हुए वृषणकोशों को रोगमुक्त करता है ।
- स्त्रियों में प्रजनन क्षमता बढ़ाती हैं।
- यह आसन जिगर (liver/यकृत ) , गुर्दा और प्लीहा सम्बंधी रोगों का शमन करता है
- यह आसन नितंबों (buttocks) को सुन्दर व सुडौल बनाता है एवं शरीर को तंदुरुस्त रखता है।
सावधानियां।
- जटिल मेरुदंड (rigid spine), तीव्र कमर दर्द(severe back pain), कटिस्नायुशूल(sciatica) वाले लोग इस आसन का अभ्यास न करें।
- गर्भवती महिलाएँ (pregnant women) भी इस आसन का अभ्यास न करें।
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सारांश।
योग करना अच्छी आदत है। कभी भी जल्दी फायदे पाने के चक्कर में शरीर की क्षमता से अधिक योगाभ्यास करने की कोशिश न करें। योगासनों का अभ्यास किसी भी वर्ग विशिष्ट के लोग कर सकते हैं।
जानुशीर्षासन, इस योगासन के नियमित अभ्यास से शरीर से सम्बंधित बीमारियों को दूर करने में मदद मिलती है। किन्तु हमारी मंत्रणा यही है कि कभी भी किसी अनुभवी योगाचार्य या योग विशेषज्ञ (yoga Expert) की मदद के बिना मुश्किल योगासनों का अभ्यास या आरंभ न करें। किसी योग शिक्षक की देखरेख में ही मुश्किल योगासनों का अभ्यास करें। इसके अलावा अगर कोई गंभीर बीमारी हो तो योगासन का आरंभ करने से पहले डॉक्टर या अनुभवी योगाचार्य की सलाह जरूर लें।
FAQs
Ques 1. जानुशीर्षासन करने की विधि?
Ans. जानुशीर्षासन करने की विधि।
- सर्वप्रथम अपने आसन पर दोनों पैरों को लंबवत् करके बैठें।
- अब पहले अपने बाएँ पैर को घुटने से मोड़कर एड़ी को गुप्तांग के पास लगाएँ। (चित्रानुसार)
- अब अपने दोनों हाथों को आपस में मिलाकर दाहिने पैर के अंगूठे को पकड़ने की कोशिश करें। (चित्रानुसार)
- अब धीरे-धीरे अपनी दोनों हाथों की हथेलियों को तलवों की तरफ़ ले जाएँ और इसी क्रम को जारी रखते हुए सिर को घुटनों से स्पर्श कराएँ।
- अभ्यास के दौरान सिर झुकाते समय श्वास छोड़ें।
- आसन की पूर्ण स्थिति में पहुँचने पर गहरी साँस लेते हुए 30sec.-1 min. तक रुकें।
- पुनः मूल अवस्था में आते समय श्वास लें।
- अब यही क्रिया पैर बदलकर दोहराएं।
Ques 2. जानुशीर्षासन करने के क्या फायदे है?
Ans. जानुशीर्षासन का नियमित अभ्यास करने के फायदे :-
- इस आसन के अभ्यास के दौरान रीढ़ की हड्डी (spinal cord), कमर, पीठ, हिप्स व पैरों की हैमस्ट्रिंग मांसपेशियों में अच्छा खिंचाव मिलता है।
- रीढ़ की हड्डी (spinal cord) को खिंचाव लगता है। जिससे रीढ़ की हड्डी (spinal cord) से जुड़ी समस्याओं को दूर करने में मदद मिलती है।
- पीठ का दर्द दूर होता है। क्योंकि यह आसन रीढ की हड्डी में रक्त प्रवाह को उत्तेजित करता है।
- शारीरिक संतुलन में सुधार होता है और लचीलापन (flexibility) बढ़ता है। और शरीर की कठोरता दूर होती है ।
- कूबड़ के उपचार में इस आसन का अभ्यास करना लाभदायक सिद्ध होता है ।
- किडनी को ठीक करता हुआ उसे सुचारु रूप से क्रियाशील बनाता है।
- यह आसन मूत्र सम्बन्धी समस्याओं को दूर करने में उपयोगी है
- ऊर्जा को ऊर्ध्वमुखी बनाता है जिससे चेहरे की कांति बढ़ती है। चेहरे की चमक बढ़ाती है।
- यह आसन पुरुषों के प्रमेह तथा स्त्रियों के प्रदर रोगों में लाभदायक है ।
- अंडकोश (scrotum) की वृद्धि से दुःखी लोग यह आसन कुछ अधिक समय तक करें। बढ़े हुए वृषणकोशों को रोगमुक्त करता है ।
- स्त्रियों में प्रजनन क्षमता बढ़ाती हैं।
- यह आसन जिगर (liver/यकृत ) , गुर्दा और प्लीहा सम्बंधी रोगों का शमन करता है
- यह आसन नितंबों (buttocks) को सुन्दर व सुडौल बनाता है एवं शरीर को तंदुरुस्त रखता है ।