हेलो दोस्तों INDIA TODAY ONE blog में आपका स्वागत है। इस आर्टिकल में हम ध्रुवासन के बारे में जानकारी देंगे। इस आसन को दोनों नामों से जाना जाता है जिसमें से पहले नाम ध्रुवासन है और दूसरा नाम भागीरथ आसन है। जिसमें ध्रुवासन नाम अधिक प्रचलित है।
योग आसनों के अभ्यास के दौरान शरीर को कई बार आध्यात्मिक अनुभव भी होते हैं। ये अनुभव किसी भी इंसान के जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं। योग आपके जीवन को नई दिशा देता है, योग आपको खुद से मिलाने की ही एक यात्रा है।
भारत के महान योग गुरुओं और तपस्वियों ने मनुष्य के जीवन में संतुलन बनाने के लिए कई योगासनों का निर्माण किया है। इन्हीं योगासनों में से एक प्रमुख आसन ध्रुवासन/भागीरथ आसन हैं। जिसका जिगर आज हम इस आर्टिकल में करेंगे। इस लेख में हम ध्रुवासन के बारे में जानेंगे। ध्रुवासन क्या है, ध्रुवासन करने का सही तरीका, ध्रुवासन करने के फायदे और सावधानियों के बारे में जानकारी देंगे।
ध्रुवासन का शाब्दिक अर्थ।
- भक्त ध्रुव एवं महान ऋषि भागीरथ ने इसी आसन से साधना की थी। संभवतः तब से इस आसन का नाम ध्रुव आसन या भागीरथ आसन पड़ा। इस आसन का अभ्यास दो प्रकार से किया जा सकता है।
ध्रुवासन करने का सही तरीका।
ध्रुवासन करने की विधि।
ध्रुवासन/भागीरथ आसन को करने की प्रथम विधि।
- सर्वप्रथम आप अपने आसन पर शांतचित्त व प्रसन्न मन के साथ अपने दोनों पैरों को एक साथ मिलाकर सावधान की स्थिति में खड़े हो जाएं।
- अब चित्रानुसार दाहिने पैर को घुटने से मोड़कर बाएँ पैर के जंघा मूल पर पंजे को स्थापित करें।
- तथा बाएँ पैर को ब्रढ़तापूर्वक ज़मीन पर स्थिर रखकर संतुलन बनाएँ।
- इसके पश्चात दोनों हाथों को वक्षःस्थल (chest area) के सामने नमस्कार की मुद्रा में बना लें।
- श्वास की गति सामान्य रखें।
- यही क्रम पैर बदलकर करें।
ध्रुवासन/भागीरथ आसन को करने की द्वितीय विधि।
- सर्वप्रथम आप अपने आसन पर शांतचित्त व प्रसन्न मन के साथ अपने दोनों पैरों को एक साथ मिलाकर सावधान की स्थिति में खड़े हो जाएं।
- अब ऊपर दी गई प्रथम विधि के अनुसार दाहिने पैर को घुटने से मोड़कर पंजे को बाएँ पैर की जंघा मूल पर स्थापित करें।
- अब चित्रानुसार बाएँ हाथ की अंजलि बनाकर नाभि के समीप रखें। अब कुंभक करते हुए दाहिने हाथ को सीधे ऊपर की ओर उठाएँ।
- इस मुद्रा में अपनी क्षमता अनुसार रुकें।
- अब वापस मूल अवस्था में आएँ और यही क्रिया पैर बदलकर करें।
श्वासक्रम।
- पूर्ण-स्थिति में श्वास की गति सामान्य रखें।
समय।
- अपनी क्षमता अनुसार इस आसन का अभ्यास करें।
ध्रुवासन का अभ्यास करने के लिए इस वीडियो की मदद लें।
ध्रुवासन करने के फायदे।
ध्रुवासन का नियमित अभ्यास करने के फायदे।
- यह मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों के लिए लाभप्रद आसान है।
- अपने लक्ष्य के प्रति एकाग्रता बढ़ती है। एकाग्रता और याददाश्त में सुधार होता है। students के लिए यह आसन अत्यन्त उपयुक्त है, क्योंकि इससे स्मरण-शक्ति का विकास होता हैं और आलस्य समाप्त होता है। जीवन में संतुलन लाता है।
- शारीरिक संतुलन में सुधार होता है। पैरों की मांसपेशियां मजबूत बनती है। पैरों में दृढ़ता आती है। और पैरों का काँपना बंद होता है।
- मूलाधार चक्र उत्थित (elevated) होता है। नई चेतना का प्रादुर्भाव होता है। (New consciousness emerges.)
- यह योगासन साधना सिद्धि में सहायक है।
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सारांश।
योग करना अच्छी आदत है। कभी भी जल्दी फायदे पाने के चक्कर में शरीर की क्षमता से अधिक योगाभ्यास करने की कोशिश न करें। योगासनों का अभ्यास किसी भी वर्ग विशिष्ट के लोग कर सकते हैं।
ध्रुवासन/भागीरथ, इस योगासन के नियमित अभ्यास से शरीर से सम्बंधित बीमारियों को दूर करने में मदद मिलती है। किन्तु हमारी मंत्रणा यही है कि कभी भी किसी अनुभवी योगाचार्य या योग विशेषज्ञ (yoga Expert) की मदद के बिना मुश्किल योगासनों का अभ्यास या आरंभ न करें। किसी योग शिक्षक की देखरेख में ही मुश्किल योगासनों का अभ्यास करें। इसके अलावा अगर कोई गंभीर बीमारी हो तो योगासन का आरंभ करने से पहले डॉक्टर या अनुभवी योगाचार्य की सलाह जरूर लें।
FAQs
Ques 1. ध्रुवासन करने की विधि?
Ans. ध्रुवासन करने की विधि।
ध्रुवासन/भागीरथ आसन को करने की प्रथम विधि।
- सर्वप्रथम आप अपने आसन पर शांतचित्त व प्रसन्न मन के साथ अपने दोनों पैरों को एक साथ मिलाकर सावधान की स्थिति में खड़े हो जाएं।
- अब चित्रानुसार दाहिने पैर को घुटने से मोड़कर बाएँ पैर के जंघा मूल पर पंजे को स्थापित करें।
- तथा बाएँ पैर को ब्रढ़तापूर्वक ज़मीन पर स्थिर रखकर संतुलन बनाएँ।
- इसके पश्चात दोनों हाथों को वक्षःस्थल (chest area) के सामने नमस्कार की मुद्रा में बना लें।
- श्वास की गति सामान्य रखें।
- यही क्रम पैर बदलकर करें।
ध्रुवासन/भागीरथ आसन को करने की द्वितीय विधि।
- सर्वप्रथम आप अपने आसन पर शांतचित्त व प्रसन्न मन के साथ अपने दोनों पैरों को एक साथ मिलाकर सावधान की स्थिति में खड़े हो जाएं।
- अब ऊपर दी गई प्रथम विधि के अनुसार दाहिने पैर को घुटने से मोड़कर पंजे को बाएँ पैर की जंघा मूल पर स्थापित करें।
- अब चित्रानुसार बाएँ हाथ की अंजलि बनाकर नाभि के समीप रखें। अब कुंभक करते हुए दाहिने हाथ को सीधे ऊपर की ओर उठाएँ।
- इस मुद्रा में अपनी क्षमता अनुसार रुकें।
- अब वापस मूल अवस्था में आएँ और यही क्रिया पैर बदलकर करें।
Ques 2. ध्रुवासन करने के क्या फायदे है?
Ans. ध्रुवासन का नियमित अभ्यास करने के फायदे।
- यह मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों के लिए लाभप्रद आसान है।
- अपने लक्ष्य के प्रति एकाग्रता बढ़ती है। एकाग्रता और याददाश्त में सुधार होता है। students के लिए यह आसन अत्यन्त उपयुक्त है, क्योंकि इससे स्मरण-शक्ति का विकास होता हैं और आलस्य समाप्त होता है। जीवन में संतुलन लाता है।
- शारीरिक संतुलन में सुधार होता है। पैरों की मांसपेशियां मजबूत बनती है। पैरों में दृढ़ता आती है। और पैरों का काँपना बंद होता है।
- मूलाधार चक्र उत्थित (elevated) होता है। नई चेतना का प्रादुर्भाव होता है। (New consciousness emerges.)
- यह योगासन साधना सिद्धि में सहायक है।