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    शीर्षासन करने की विधि, फायदे और सावधानियां – shirshasana (Headstand) in hindi.1

    शीर्षासन
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    भारत के महान योग गुरुओं और तपस्वियों ने मनुष्य के जीवन में संतुलन बनाने के लिए कई योगासनों का निर्माण किया है। इन्हीं योगासनों में से एक प्रमुख आसन शीर्षासन हैं। शीर्षासन को भी आसनों का राजा कहा गया है। यह आसन शरीर का कायाकल्प (rejuvenation) करता है।

    इसलिए, इस लेख में हम शीर्षासन के बारे में जानेंगे। शीर्षासन क्या है, शीर्षासन करने का सही तरीका, शीर्षासन करने के फायदे और सावधानियों के बारे में जानकारी देंगे।

    शीर्षासन का शाब्दिक अर्थ।

    • शीर्षासन एक संस्कृत भाषा का शब्द हैं। शीर्षासन दो शब्दों से मिलकर बना है। शीर्ष+आसन जिसमें शीर्ष का अर्थ यहाँ पर सिर के अग्रभाग से है। इसमें साधक सिर के अग्रभाग से आसन करता है अतः इसे शीर्षासन कहा गया है।

    शीर्षासन करने का सही तरीका।

    शीर्षासन करने की विधि।

    शीर्षासन

    विधि।

    • सर्वप्रथम अपने आसन पर वज्रासन में बैठ जाएँ।
    • इस आसन के अभ्यास के दौरान सिर पर पूरे शरीर का वज़न पड़ता है अतः सिर के नीचे कंबल की मोटी तह कर लें।
    • अब सिर को सामने की तरफ़ झुकाते हुए किसी कंबल पर सिर के अग्र भाग का ऊपरी तल टिकाएँ।
    • अब दोनों हाथों की अंगुलियों को एक-दूसरे में फंसाकर सिर के समीप घेरा बनाएं। (चित्रानुसार)
    • अब क्रमशः सिर की तरफ़ वज़न देते हुए कमर को उठाएँ
    • अब इसी क्रम में संतुलन बनाते हुए शरीर का पूरा भार सिर के अग्रभाग पर रखने की कोशिश करते हुए दोनों घुटनों को ऊपर उठाएँ।
    • अब पहले धीरे-धीरे एक पैर को सीधे आकाश की तरफ़ तान दें इसके पश्चात दूसरा पैर को भी संतुलन बनाते हुए ऊपर की तरफ़ करें। यह अवस्था शीर्षासन कहलाती है।
    • यदि आप प्रथम बार अभ्यास कर रहे हो तो किसी की सहायता जरुर लें।
    • अनुकूलतानुसार कुछ देर इस मुद्रा में रुकें।
    • पूर्ण आसन की स्थिति में श्वास की गति स्वाभाविक रहेगी।
    • वापस मूल स्थिति में आते समय पहले घुटनों को मोड़ें, कमर के हिस्से को झुकाएँ एवं वापस पैरों को ज़मीन पर रखें।
    • आसन करते समय श्वास लेकर कुंभक करें एवं वापस मुल अवस्था में आते समय भी कुंभक करें।
    • इस आसन को शरीर का भार माथे के तरफ़ रखते हुए करते हैं। सिर के बिल्कुल बीच के भाग में नहीं रखते अतः ध्यान पूर्वक करें

    ध्यान।

    • इस आसन के अभ्यास के दौरान स्वाभाविक श्वास में अपना ध्यान लगाएँ।

    श्वास का क्रम/समय।

    • श्वास का क्रम और समय ऊपर विधि में बताया गया है।

    शीर्षासन का अभ्यास करने के लिए इस वीडियो की मदद लें।

    शीर्षासन करने के फायदे

    शीर्षासन

    शीर्षासन का नियमित अभ्यास करने के फायदे 

    • शीर्षासन को भी आसनों का राजा कहा गया है। यह आसन शरीर का कायाकल्प (rejuvenation) करता है।
    • सिर दर्द व अधकपारी (migraine) से निजात पाने के लिए :-
      इस आसन का नियमित अभ्यास करने से आप सिरदर्द एवं अधकपारी (migraine) जैसी समस्या से हमेशा के लिए निजात पा सकते हैं।
      ऐसा माना जाता है कि अधकपारी (migraine) दिमाग में नाड़ियों, रसायन और रक्त कोशिकाओं में कुछ समय के लिए होने वाले परिवर्तन की वजह से होता है जिस कारण सिर में काफी दर्द होता है जो असहनीय होता है ऐसी स्थिति में इंसान को कई बार प्रकाश व तेज़ आवाज से दिक्कत होती है
      प्रतिदिन अभ्यास के कारण मस्तिष्क की शिराओं में स्वस्थ एवं शुद्ध रक्त प्रवाहित होने लगता है जिसके कारण मानसिक दुर्बलता एवं मस्तिष्क सम्बंधी रोग धीरे-धीरे क्षीण होने लगते हैं।
    • आंखो (eyes) से सम्बंधित समस्याओं से निजात पाने के लिए :- 
      इस आसन का अभ्यास करने से आंखो और आंखो वाले हिस्से में उपयुक्त मात्रा में रक्त (blood circulation) एवं पोषक तत्वों (Nutrients) का प्रवाह होता है, जिससे आंखो से सम्बंधित समस्याओं से निजात मिलती हैं। नेत्र सम्बंधी दोष दूर होते हैं। नेत्रों को सुन्दर बनाता है।
    • बाल झड़ने से रोकने के लिए है :-
      शीर्षासन के अभ्यास से मस्तिष्क (Brain) वाले हिस्से में उपयुक्त मात्रा में रक्त (blood circulation) एवं पोषक तत्वों (Nutrients) का प्रवाह बहुत आसान हो जाता है। अगर शीर्षासन का नियमित रूप से लम्बी अवधि तक अभ्यास किया जाए, तो बाल से सम्बंधित समस्या जैसे बाल का झड़ना, बाल का सफेद होना, डेंड्रफ इत्यादि से आप को छुटकारा मिलता है। और इससे खोपड़ी भी मजबूत एवं स्वस्थ बनाती हैं।
    • मधुमेह (diabetes) को रोकने के लिए :-
      मधुमेह (diabetes) को रोकने में एक अहम भूमिका निभाता है। जब शरीर के पैन्क्रियाज में इन्सुलिन की कमी हो जाती है, मतलब कम मात्रा में इन्सुलिन पहुंचता है, तो खून में ग्लूकोज की मात्रा भी ज्यादा हो जाती है। इसी स्थिति को मधुमेह (diabetes) कहते हैं।  यह योगासन पैंक्रियास को उत्तेजित करते हुए इन्सुलिन के स्राव में मदद करता है और यह योगासन इस तरह से मधुमेह (diabetes) के प्रबंधन में सहायक है।
    • बवासीर (piles) एवं वैरिकाज़ नस जैसी बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए :- 
      इस आसन के नियमित अभ्यास से बवासीर (piles) एवं वैरिकाज़ नस जैसी बीमारियों से छुटकारा मिलता है। प्रायः बवासीर (piles) एवं वैरिकाज़ नस जैसी बीमारियां रक्त का सही से प्रवाह न होने के कारण होता है। शीर्षासन के अभ्यास से शरीर में रक्त (blood circulation) एवं पोषक तत्वों (Nutrients) का प्रवाह सही से होता हैं।
      वैरिकाज़ नस :- जब त्वचा के नीचे की नसें फैल जातीं हैं, पतली और तनी हुई होती है, तो इसे वैरिकाज़ नस के रूप में जाना जाता है। यह नसों की दीवारों का पतला होना, भीतर के वाल्वों की विफलता के कारण होता है, जिसके परिणामस्वरूप रक्त का जमाव होने लगता है, और नसें पतली, नीली व बैंगनी रंग की उभरी हुई दिखने देने लगती हैं। जिनके कारण दर्द व तकलीफ होती हैं।
    • हड्डियों के स्वास्थ्य के लिये फायदेमंद :- 
      शीर्षासन का प्रतिदिन अभ्यास करने से हड्डियां मजबूत होती हैं और इस योगासन के अभ्यास से आप ओस्टियोपोरोसिस जैसी हड्डी से सम्बंधित बीमारियों से दूर रहते हैं।
    • शीर्षासन का नियमित अभ्यास करने से शारीरिक संतुलन में सुधार होता है
    • यह आसन ओज, तेज और चेहरे की चमक बढ़ाता है। और चेहरे की झुर्रियों को समाप्त कर देता है।
    • त्वचा सम्बंधी रोगों का शमन होता है।
    • जीवन उत्साह और स्फूर्ति से भर जाता है।
    • समस्त प्रकार के वायु विकार को नाश करता है।
    • उन्माद (frenzy) व मिर्गी के लिए भी यह आसन उचित है व चंचल मन को स्थिर एवं शान्ति प्रदान करता है।
    • दमा (asthma) व क्षय रोगों को इस आसन के नियमित अभ्यास से दूर किया जा सकता है।
    • समस्त मानसिक विकारों में यथासंभव लाभ मिलता है।
    • लकवा (paralysis) से पीड़ित व्यक्ति किसी उचित योग गुरू कि देख-रेख में एवं क्रम पूर्वक इस आसन का नियमित अभ्यास करें।
    • उदर-क्षेत्र एवं प्रजनन संस्थान की यह आसन उचित देखभाल करता है।
    • यौन (sexual) से सम्बंधित समस्याओं के समाधान पाने के लिए :- इस योगासन से अधिकतर यौन (sexual) से सम्बंधित समस्याओं को रोका जा सकता है।

    सावधानियां।

    • नए साधक शीर्षासन का अभ्यास अकेले नहीं करें।
    • यदि इस आसन का अभ्यास करने के लिए दीवार का सहारा लें तो दीवार से 2 या 3 इंच की दूरी पर करें। अन्यथा इसका उल्टा असर पेट या पीठ पर पड़ेगा।
    • इस आसन का अभ्यास धीरे-धीरे एवं विवेकता पुर्वक करें। जल्दबाज़ी न करें वरना गर्दन या पीठ में दर्द हो जाएगा।
    • इस आसन के अभ्यास के दौरान शरीर पूरा सीधा रखें, ताकि वह स्थिरता और दृढ़ता पा सके।
    • इस आसन के अभ्यास के दौरान दोनों पैर आकाश की तरफ़ लंबवत समानांतर होने चाहिए।
    • नए साधक शुरू में इस आसन का अभ्यास 1-2 मिनट ही करें।
    • पुर्णत: अभ्यास में सक्षम हो जाने पर दोनों पैर हल्के झटके के साथ सीधे ऊपर की तरफ़ तान दें।
    • उच्च रक्तचाप व निम्न रक्तचाप वाले इन आसनों से शुरु में परहेज़ करें।
    • हृदय रोग, चक्कर आना, सिर घूमना आदि बीमारी वाले भी आसन का उपयोग न करें।

    शीर्षासन करने से पहले ये आसन करें

    • शीर्षासन के पहले सर्वांगासन का अभ्यास ज़रुर करें।
    सर्वांगासन

    शीर्षासन करने के बाद ये आसन करें

    •  शीर्षासन के बाद ताड़ासनशवासन अवश्य करें।
    ताड़ासन
    शवासन

     

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    सारांश।

    योग करना अच्छी आदत है। कभी भी जल्दी फायदे पाने के चक्कर में शरीर की क्षमता से अधिक  योगाभ्यास करने की कोशिश न करें। योगासनों का अभ्यास किसी भी वर्ग विशिष्ट के लोग कर सकते हैं।

    शीर्षासन, इस योगासन के नियमित अभ्यास से शरीर से सम्बंधित बीमारियों को दूर करने में मदद मिलती है। किन्तु हमारी मंत्रणा यही है कि कभी भी किसी अनुभवी योगाचार्य या योग विशेषज्ञ (yoga Expert) की मदद के बिना मुश्किल योगासनों का अभ्यास या आरंभ न करें। किसी योग शिक्षक की देखरेख में ही मुश्किल योगासनों का अभ्यास करें। इसके अलावा अगर कोई गंभीर बीमारी हो तो योगासन का आरंभ करने से पहले डॉक्टर या अनुभवी योगाचार्य की सलाह जरूर लें

     

    FAQs

     

    Ques 1. शीर्षासन करने की विधि?

    Ans. शीर्षासन करने की विधि।

    • सर्वप्रथम अपने आसन पर वज्रासन में बैठ जाएँ।
    • इस आसन के अभ्यास के दौरान सिर पर पूरे शरीर का वज़न पड़ता है अतः सिर के नीचे कंबल की मोटी तह कर लें।
    • अब सिर को सामने की तरफ़ झुकाते हुए किसी कंबल पर सिर के अग्र भाग का ऊपरी तल टिकाएँ।
    • अब दोनों हाथों की अंगुलियों को एक-दूसरे में फंसाकर सिर के समीप घेरा बनाएं। (चित्रानुसार)
    • अब क्रमशः सिर की तरफ़ वज़न देते हुए कमर को उठाएँ
    • अब इसी क्रम में संतुलन बनाते हुए शरीर का पूरा भार सिर के अग्रभाग पर रखने की कोशिश करते हुए दोनों घुटनों को ऊपर उठाएँ।
    • अब पहले धीरे-धीरे एक पैर को सीधे आकाश की तरफ़ तान दें इसके पश्चात दूसरा पैर को भी संतुलन बनाते हुए ऊपर की तरफ़ करें। यह अवस्था शीर्षासन कहलाती है।
    • यदि आप प्रथम बार अभ्यास कर रहे हो तो किसी की सहायता जरुर लें।
    • अनुकूलतानुसार कुछ देर इस मुद्रा में रुकें।
    • पूर्ण आसन की स्थिति में श्वास की गति स्वाभाविक रहेगी।
    • वापस मूल स्थिति में आते समय पहले घुटनों को मोड़ें, कमर के हिस्से को झुकाएँ एवं वापस पैरों को ज़मीन पर रखें।
    • आसन करते समय श्वास लेकर कुंभक करें एवं वापस मुल अवस्था में आते समय भी कुंभक करें।
    • इस आसन को शरीर का भार माथे के तरफ़ रखते हुए करते हैं। सिर के बिल्कुल बीच के भाग में नहीं रखते अतः ध्यान पूर्वक करें

     

    Ques 2. शीर्षासन करने के क्या फायदे  है?

    Ans. शीर्षासन का नियमित अभ्यास करने के फायदे 

    • शीर्षासन को भी आसनों का राजा कहा गया है। यह आसन शरीर का कायाकल्प (rejuvenation) करता है।
    • सिर दर्द व अधकपारी (migraine) से निजात पाने के लिए :-
      इस आसन का नियमित अभ्यास करने से आप सिरदर्द एवं अधकपारी (migraine) जैसी समस्या से हमेशा के लिए निजात पा सकते हैं।
      ऐसा माना जाता है कि अधकपारी (migraine) दिमाग में नाड़ियों, रसायन और रक्त कोशिकाओं में कुछ समय के लिए होने वाले परिवर्तन की वजह से होता है जिस कारण सिर में काफी दर्द होता है जो असहनीय होता है ऐसी स्थिति में इंसान को कई बार प्रकाश व तेज़ आवाज से दिक्कत होती है
      प्रतिदिन अभ्यास के कारण मस्तिष्क की शिराओं में स्वस्थ एवं शुद्ध रक्त प्रवाहित होने लगता है जिसके कारण मानसिक दुर्बलता एवं मस्तिष्क सम्बंधी रोग धीरे-धीरे क्षीण होने लगते हैं।
    • आंखो (eyes) से सम्बंधित समस्याओं से निजात पाने के लिए :- 
      इस आसन का अभ्यास करने से आंखो और आंखो वाले हिस्से में उपयुक्त मात्रा में रक्त (blood circulation) एवं पोषक तत्वों (Nutrients) का प्रवाह होता है, जिससे आंखो से सम्बंधित समस्याओं से निजात मिलती हैं। नेत्र सम्बंधी दोष दूर होते हैं। नेत्रों को सुन्दर बनाता है।
    • बाल झड़ने से रोकने के लिए है :-
      शीर्षासन के अभ्यास से मस्तिष्क (Brain) वाले हिस्से में उपयुक्त मात्रा में रक्त (blood circulation) एवं पोषक तत्वों (Nutrients) का प्रवाह बहुत आसान हो जाता है। अगर शीर्षासन का नियमित रूप से लम्बी अवधि तक अभ्यास किया जाए, तो बाल से सम्बंधित समस्या जैसे बाल का झड़ना, बाल का सफेद होना, डेंड्रफ इत्यादि से आप को छुटकारा मिलता है। और इससे खोपड़ी भी मजबूत एवं स्वस्थ बनाती हैं।
    • मधुमेह (diabetes) को रोकने के लिए :-
      मधुमेह (diabetes) को रोकने में एक अहम भूमिका निभाता है। जब शरीर के पैन्क्रियाज में इन्सुलिन की कमी हो जाती है, मतलब कम मात्रा में इन्सुलिन पहुंचता है, तो खून में ग्लूकोज की मात्रा भी ज्यादा हो जाती है। इसी स्थिति को मधुमेह (diabetes) कहते हैं।  यह योगासन पैंक्रियास को उत्तेजित करते हुए इन्सुलिन के स्राव में मदद करता है और यह योगासन इस तरह से मधुमेह (diabetes) के प्रबंधन में सहायक है।
    • बवासीर (piles) एवं वैरिकाज़ नस जैसी बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए :- 
      इस आसन के नियमित अभ्यास से बवासीर (piles) एवं वैरिकाज़ नस जैसी बीमारियों से छुटकारा मिलता है। प्रायः बवासीर (piles) एवं वैरिकाज़ नस जैसी बीमारियां रक्त का सही से प्रवाह न होने के कारण होता है। शीर्षासन के अभ्यास से शरीर में रक्त (blood circulation) एवं पोषक तत्वों (Nutrients) का प्रवाह सही से होता हैं।
      वैरिकाज़ नस :- जब त्वचा के नीचे की नसें फैल जातीं हैं, पतली और तनी हुई होती है, तो इसे वैरिकाज़ नस के रूप में जाना जाता है। यह नसों की दीवारों का पतला होना, भीतर के वाल्वों की विफलता के कारण होता है, जिसके परिणामस्वरूप रक्त का जमाव होने लगता है, और नसें पतली, नीली व बैंगनी रंग की उभरी हुई दिखने देने लगती हैं। जिनके कारण दर्द व तकलीफ होती हैं।
    • हड्डियों के स्वास्थ्य के लिये फायदेमंद :- 
      शीर्षासन का प्रतिदिन अभ्यास करने से हड्डियां मजबूत होती हैं और इस योगासन के अभ्यास से आप ओस्टियोपोरोसिस जैसी हड्डी से सम्बंधित बीमारियों से दूर रहते हैं।
    • शीर्षासन का नियमित अभ्यास करने से शारीरिक संतुलन में सुधार होता है
    • यह आसन ओज, तेज और चेहरे की चमक बढ़ाता है। और चेहरे की झुर्रियों को समाप्त कर देता है।
    • त्वचा सम्बंधी रोगों का शमन होता है।
    • जीवन उत्साह और स्फूर्ति से भर जाता है।
    • समस्त प्रकार के वायु विकार को नाश करता है।
    • उन्माद (frenzy) व मिर्गी के लिए भी यह आसन उचित है व चंचल मन को स्थिर एवं शान्ति प्रदान करता है।
    • दमा (asthma) व क्षय रोगों को इस आसन के नियमित अभ्यास से दूर किया जा सकता है।
    • समस्त मानसिक विकारों में यथासंभव लाभ मिलता है।
    • लकवा (paralysis) से पीड़ित व्यक्ति किसी उचित योग गुरू कि देख-रेख में एवं क्रम पूर्वक इस आसन का नियमित अभ्यास करें।
    • उदर-क्षेत्र एवं प्रजनन संस्थान की यह आसन उचित देखभाल करता है।
    • यौन (sexual) से सम्बंधित समस्याओं के समाधान पाने के लिए :- इस योगासन से अधिकतर यौन (sexual) से सम्बंधित समस्याओं को रोका जा सकता है।

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