हेलो दोस्तों INDIA TODAY ONE blog में आपका स्वागत है। नटराज आसन करने की दो विधि है। इस लेख में हम नटराज आसन करने की दोनों विधियों के बारे में जानेंगे। नटराज आसन क्या है, नटराज आसन करने का सही तरीका, नटराज आसन करने के फायदे और सावधानियों के बारे में जानकारी देंगे।
नटराज आसन का शाब्दिक अर्थ।
- नटराज आसन में नट का अर्थ “नर्तक” होता है। नटराज भगवान शिव का ही एक नाम है और उनका यह (आसन) चित्र बहुत प्रसिद्ध भी है।
- भगवान शिव की नटराज रूप की प्रतिमा दक्षिण भारत (तमिलनाडु) की प्रसिद्ध है और पूजित मूर्तियों में से एक है।
नटराज आसन करने का सही तरीका।
नटराज आसन करने की दो विधिया है।
प्रथम विधि
- सर्वप्रथम अपने आसन पर सीधे खड़े हो जाएँ।
- अब अपने दाहिने पैर के घुटने को थोड़ा मोड़ते हुए अपने बाएँ पैर को चित्रानुसार ऊपर उठाएँ।
- अब अपने बाएँ हाथ को बाएँ पैर के सीध में ऊपर कुछ दूरी पर चित्रानुसार रखें।
- दाहिने हाथ को कोहनी से मोड़कर बाएँ हाथ के ऊपर रखें।(चित्रानुसार) और हथेलियों को आशीर्वाद की मुद्रा में रखते हुए ज्ञान मुद्रा लगाएँ। तथा दृष्टि सामने स्थिर रखें।
- यही क्रिया पैर बदल के दोहराएँ।
नटराज आसन के प्रथम विधि का अभ्यास करने के लिए इस वीडियो की मदद लें।
द्वितीय विधि
- सर्वप्रथम अपने आसन पर ताड़ासन में खड़े हो जाएँ।
- अब अपने दाहिने पैर को पीछे की और मोड़ें।और दाहिने हाथ से दाहिने पैर के अंगूठे को पकड़ लें।(चित्रानुसार) और धीरे-धीरे बाएँ पैर पर संतुलन बनाते हुए अपने दाहिने पैर को जितना संभव हो सके उतना ऊपर की तरफ़ ले जाएँ।
- अपने बाएँ हाथ को सामने की तरफ़ लंबवत् फैला दें। हथेली ज़मीन की तरफ़ और अंगुलियाँ परस्पर जुड़ी हुई हों।(चित्रानुसार)
- श्वास की गति सामान्य रखें।
- यही क्रिया पैर बदल के दोहराएँ।
नटराज आसन के द्वितीय विधि का अभ्यास करने के लिए इस वीडियो की मदद लें।
ध्यान।
- नटराज आसन का अभ्यास करते समय अपना ध्यान आज्ञा चक्र पर केंद्रित करें।
नटराज आसन करने के फायदे।
नटराज आसन का नियमित अभ्यास करने के फायदे।
- एकाग्रता बढती है। और मन को शांत करने के लिए यह बहुत बढ़िया आसन है।
- प्रतिदिन अभ्यास करने से शारीरिक संतुलन बेहतर बनाता है।
- पैरों से लेकर मेरुदण्ड तक सम्पूर्ण स्नायुतंत्र की मालिश होती है। व मेरुदण्ड का सशक्तिकरण होता है।
- तंत्रिका तंत्र में सुधार होता है।
- छाती चौड़ी एवं मजबूत बनती है।
- द्वितीय प्रकार के आसन से उपरोक्त लाभ के अलावा उदर प्रदेश के विकार दूर होते हैं।
सावधानियां।
- संतुलन, आत्मविश्वास एवं लचीले मेरुदण्ड वाले ही इस आसन का अभ्यास करें।
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सारांश।
योग करना अच्छी आदत है। कभी भी जल्दी फायदे पाने के चक्कर में शरीर की क्षमता से अधिक योगाभ्यास करने की कोशिश न करें। योगासनों का अभ्यास किसी भी वर्ग विशिष्ट के लोग कर सकते हैं।
नटराज आसन, इस योगासन के नियमित अभ्यास से शरीर से सम्बंधित बीमारियों को दूर करने में मदद मिलती है। किन्तु हमारी मंत्रणा यही है कि कभी भी किसी अनुभवी योगाचार्य या योग विशेषज्ञ (yoga Expert) की मदद के बिना मुश्किल योगासनों का अभ्यास या आरंभ न करें। किसी योग शिक्षक की देखरेख में ही मुश्किल योगासनों का अभ्यास करें। इसके अलावा अगर कोई गंभीर बीमारी हो तो योगासन का आरंभ करने से पहले डॉक्टर या अनुभवी योगाचार्य की सलाह जरूर लें।
FAQs
Ques 1. नटराज आसन करने की विधि?
Ans. नटराज आसन करने की दो विधिया है।
प्रथम विधि
- सर्वप्रथम अपने आसन पर सीधे खड़े हो जाएँ।
- अब अपने दाहिने पैर के घुटने को थोड़ा मोड़ते हुए अपने बाएँ पैर को चित्रानुसार ऊपर उठाएँ।
- अब अपने बाएँ हाथ को बाएँ पैर के सीध में ऊपर कुछ दूरी पर चित्रानुसार रखें।
- दाहिने हाथ को कोहनी से मोड़कर बाएँ हाथ के ऊपर रखें।(चित्रानुसार) और हथेलियों को आशीर्वाद की मुद्रा में रखते हुए ज्ञान मुद्रा लगाएँ। तथा दृष्टि सामने स्थिर रखें।
- यही क्रिया पैर बदल के दोहराएँ।
द्वितीय विधि
- सर्वप्रथम अपने आसन पर ताड़ासन में खड़े हो जाएँ।
- अब अपने दाहिने पैर को पीछे की और मोड़ें।और दाहिने हाथ से दाहिने पैर के अंगूठे को पकड़ लें।(चित्रानुसार) और धीरे-धीरे बाएँ पैर पर संतुलन बनाते हुए अपने दाहिने पैर को जितना संभव हो सके उतना ऊपर की तरफ़ ले जाएँ।
- अपने बाएँ हाथ को सामने की तरफ़ लंबवत् फैला दें। हथेली ज़मीन की तरफ़ और अंगुलियाँ परस्पर जुड़ी हुई हों।(चित्रानुसार)
- श्वास की गति सामान्य रखें।
- यही क्रिया पैर बदल के दोहराएँ।
Ques 2. नटराज आसन करने के क्या फायदे है?
Ans. नटराज आसन का नियमित अभ्यास करने के फायदे।
- एकाग्रता बढती है। और मन को शांत करने के लिए यह बहुत बढ़िया आसन है।
- प्रतिदिन अभ्यास करने से शारीरिक संतुलन बेहतर बनाता है।
- पैरों से लेकर मेरुदण्ड तक सम्पूर्ण स्नायुतंत्र की मालिश होती है। व मेरुदण्ड का सशक्तिकरण होता है।
- तंत्रिका तंत्र में सुधार होता है।
- छाती चौड़ी एवं मजबूत बनती है।
- द्वितीय प्रकार के आसन से उपरोक्त लाभ के अलावा उदर प्रदेश के विकार दूर होते हैं।