हेलो दोस्तों INDIA TODAY ONE blog में आपका स्वागत है। इस लेख में हम द्विपाद कंधरासन के बारे में जानेंगे। द्विपाद कंधरासन क्या है, द्विपाद कंधरासन करने का सही तरीका, द्विपाद कंधरासन करने के फायदे और सावधानियों के बारे में जानकारी देंगे। कुछ योग गुरु इस आसन को सुप्त द्विपाद कंधरासन भी कहते हैं।
द्विपाद कंधरासन का शाब्दिक अर्थ।
द्विपाद कंधरासन एक संस्कृत भाषा का शब्द हैं। द्विपाद कंधरासन चार शब्दों से मिलकर बना है। द्वि+पाद+कंध+आसन जिसमें द्वि मतलब दो, पाद मतलब पैर एवं ‘कंध’, जिसका अर्थ है कंधा और आसन का अर्थ होता है मुद्रा। इस आसन के अभ्यास के दौरान दोनों पैरों को कंधों पर रखा जाता है। इसीलिए इसे द्विपाद कंधरासन कहते है।
द्विपाद कंधरासन करने का सही तरीका।
द्विपाद कंधरासन करने की विधि।
विधि।
- इस आसन के अभ्यास के दौरान शरीर का पूरा भार पीठ व मेरुदण्ड पर ही रहता है। इसी लिए इस आसन के अभ्यास के लिए मोटा कम्बल या डबल योग चटाई (yoga mat) बिछाएं।
- अब पीठ के बल कम्बल या योग चटाई (yoga mat) पर लेट जाएँ। शरीर को शिथिल करें।
- अब दोनों हाथों के सहारे अपना एक पैर धीरे-धीरे सिर के पीछे रखें और यही क्रम दूसरे पैर के लिए करें।
- अब अपने दोनों पैरों की जाँघों को अपने दोनों भुजाओं के नीचे स्थित करना होता है। अतः सजगता के साथ अपने दोनों पैरों की जाँघों को अपने दोनों भुजाओं के नीचे स्थित करें। (चित्रानुसार)
- अब पुर्ण स्थिति में दोनों पैरों के पंजों को कैंचीनुमा ढंग से फँसा लें और अपने दोनों हाथों को नमस्कार की मुद्रा में रखे।(चित्रानुसार)
ध्यान।
- इस आसन के अभ्यास के दौरान अपना ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र पर केन्द्रित करें।
श्वास का क्रम।
- इस आसन के अभ्यास के दौरान रेचक करते हुए पैरों को सिर के पीछे ले जाइए।
- पुर्ण स्थिति में सामान्य श्वास-प्रश्वास करें।
- रेचक करते हुए वापस मूल स्थिति में आएँ।
समय।
- अपनी क्षमता अनुसार अभ्यास करें।
द्विपाद कंधरासन करने के फायदे।
द्विपाद कंधरासन का नियमित अभ्यास करने के फायदे।
- इस आसन के अभ्यास से ऊर्जा उर्ध्वमुखी होती हैं।
- जो साधक ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। उन्हें यह आसन अवश्य करना चाहिए। ब्रह्मचर्य में सहायक है। काम-विकार का नाश करता है।
- यह आसन उदर-क्षेत्र के अंगो को पुष्ट बनाता है। जिससे पाचन तंत्र सुचारु ढंग से कार्य करने लगता है और पाचन तंत्र (Digestive System) में सुधार होता है।
- प्रजनन तंत्र को व्यवस्थित करता है।
- इस आसन के अभ्यास से मनोबल एवं आत्मविश्वास बढ़ता है।
- मेरुदण्ड, कमर एवं पीठ की माँसपेशियों में लचिला और सशक्त बनाता है।
सावधानियां।
- कटिस्नायुशूल (sciatica), हृदयरोग (heart disease), extremely high blood pressure, हार्निया से पीड़ित व्यक्ति, तीव्र कमर दर्द, कड़क मेरुदण्ड और कम आत्मविश्वास वाले व्यक्ति इस आसन का अभ्यास बिल्कुल भी ना करें।
- गर्भवती महिलाएं इस आसन का अभ्यास बिल्कुल भी ना करें।
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सारांश।
योग करना अच्छी आदत है। कभी भी जल्दी फायदे पाने के चक्कर में शरीर की क्षमता से अधिक योगाभ्यास करने की कोशिश न करें। योगासनों का अभ्यास किसी भी वर्ग विशिष्ट के लोग कर सकते हैं।
द्विपाद कंधरासन, इस योगासन के नियमित अभ्यास से शरीर से सम्बंधित बीमारियों को दूर करने में मदद मिलती है। किन्तु हमारी मंत्रणा यही है कि कभी भी किसी अनुभवी योगाचार्य या योग विशेषज्ञ (yoga Expert) की मदद के बिना मुश्किल योगासनों का अभ्यास या आरंभ न करें। किसी योग शिक्षक की देखरेख में ही मुश्किल योगासनों का अभ्यास करें। इसके अलावा अगर कोई गंभीर बीमारी हो तो योगासन का आरंभ करने से पहले डॉक्टर या अनुभवी योगाचार्य की सलाह जरूर लें।
FAQs
Ques 1. द्विपाद कंधरासन करने की विधि?
Ans. द्विपाद कंधरासन करने की विधि।
- इस आसन के अभ्यास के दौरान शरीर का पूरा भार पीठ व मेरुदण्ड पर ही रहता है। इसी लिए इस आसन के अभ्यास के लिए मोटा कम्बल या डबल योग चटाई (yoga mat) बिछाएं।
- अब पीठ के बल कम्बल या योग चटाई (yoga mat) पर लेट जाएँ। शरीर को शिथिल करें।
- अब दोनों हाथों के सहारे अपना एक पैर धीरे-धीरे सिर के पीछे रखें और यही क्रम दूसरे पैर के लिए करें।
- अब अपने दोनों पैरों की जाँघों को अपने दोनों भुजाओं के नीचे स्थित करना होता है। अतः सजगता के साथ अपने दोनों पैरों की जाँघों को अपने दोनों भुजाओं के नीचे स्थित करें। (चित्रानुसार)
- अब पुर्ण स्थिति में दोनों पैरों के पंजों को कैंचीनुमा ढंग से फँसा लें और अपने दोनों हाथों को नमस्कार की मुद्रा में रखे।(चित्रानुसार)
Ques 2. द्विपाद कंधरासन करने के क्या फायदे है?
Ans. द्विपाद कंधरासन का नियमित अभ्यास करने के फायदे।
- इस आसन के अभ्यास से ऊर्जा उर्ध्वमुखी होती हैं।
- जो साधक ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। उन्हें यह आसन अवश्य करना चाहिए। ब्रह्मचर्य में सहायक है। काम-विकार का नाश करता है।
- यह आसन उदर-क्षेत्र के अंगो को पुष्ट बनाता है। जिससे पाचन तंत्र सुचारु ढंग से कार्य करने लगता है और पाचन तंत्र (Digestive System) में सुधार होता है।
- प्रजनन तंत्र को व्यवस्थित करता है।
- इस आसन के अभ्यास से मनोबल एवं आत्मविश्वास बढ़ता है।
- मेरुदण्ड, कमर एवं पीठ की माँसपेशियों में लचिला और सशक्त बनाता है।