योग की ताकत को न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया ने माना है। इसलिए हर साल 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है। योग को अपने जीवन का हिस्सा बनाना अच्छे स्वास्थ्य की ओर आपका पहला कदम हो सकता है। योग का जो विस्तार है वह बहुत अधिक है। भारत के महान योग गुरुओं और तपस्वियों ने मनुष्य के जीवन में संतुलन बनाने के लिए कई योगासनों का निर्माण किया है। इन्हीं योगासनों में से एक प्रमुख आसन सूर्य नमस्कार हैं।
इसलिए, इस लेख में हम सूर्य नमस्कार पर चर्चा करेंगे। इस लेख में सूर्य नमस्कार के आसनों को करने का तरीका और सूर्य नमस्कार के अभ्यास से होने वाले फायदों के बारे में बताया गया है। साथ में यह भी बताया गया है कि सूर्य नमस्कार करने के दौरान क्या सावधानी बरतें।
सूर्य के महत्व को समझाने के लिए प्राचीन काल से ही हमारे धर्म ग्रंथों में वर्णन मिलता रहा है। लेकिन आज भी सूर्य एक रहस्य है और इसकी खोज जारी है। लेकिन एक बात तो तय है कि यह प्राचीन काल से ही हमें अपनी और आकर्षित करता रहा है। चाहे हम बीते युग कि बात करें या वर्तमान युग की बात करें, सूर्य सदैव हमें जीवनदायी ऊर्जा देता आया है।
आज के वैज्ञानिक सूर्य के बारे में जानने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे हैं, जबकि हमारे ऋषि-मुनि इसकी दिव्यता और इसके उपयोग को जानते थे। सूर्य न केवल हमारे शरीर को बल्कि हमारे सूक्ष्म शरीर को भी अपनी चेतन शक्ति से जीवन शक्ति (जीवंतता) प्रदान करता है।
वैज्ञानिक भले ही इसे एक आग का गोला या ग्रह कहें, लेकिन प्राचीन काल में ही हमारे महान ऋषि-मुनियों ने इसके अनेक रहस्यों को समझ लिया था और जन कल्याण के लिए इसके उपयोग करने की कला का प्रसार किया था, लेकिन अब सूर्य का ज्ञान लुप्त प्रायः है। यहां हम सूर्य के रहस्य को समझाने के लिए थोड़ी चर्चा करना चाहते हैं, ताकि जब हम सूर्य नमस्कार करें तो हमारे मन में श्रद्धा, समर्पण और विश्वास प्रकट हो और हम उससे लाभ उठा सकें।
आप शायद जानते होंगे कि बनारस में एक महान संत थे जिनका नाम स्वामी विशुद्धानंद परमहंस था और उनके शिष्य काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्राचार्य गोपीनाथ कविराज थे। चूंकि कहानी काफी विस्तृत है इसलिए हम सिर्फ इतना बताना चाहेंगे कि उन्होंने हिमालय के एक गुप्त आश्रम (ज्ञानगंज आश्रम) में जाकर 12 साल तक कठिन साधना की। इसके बाद वे 1920 के आसपास वापस बनारस आये और पूरी दुनिया को सूर्य विज्ञान का चमत्कार बताकर आश्चर्यचकित कर दिया।
लोगों ने अपनी उंगलियां चबा ली थीं. सैकड़ों शिष्यों के सामने वह सूर्य विज्ञान के माध्यम से एक वस्तु को दूसरी वस्तु में रूपांतरित कर दिया करते थे, जैसे वह कपास को फूल, पत्थर, ग्रेनाइट, हीरा, लकड़ी आदि में बदल देते थे। यहां तक कि एक बार उन्होंने एक मृत पक्षी को भी जीवित कर दिया था। यह आश्रम आज भी हिमालय में स्थित है।
यह विवरण लेखक पॉल ब्रेटन की पुस्तक से लिया गया है। इस कथा को बताने के पीछे हमारा उद्देश्य सूर्य के प्रति आपकी जिज्ञासा और आस्था को बढ़ाना है ताकि हम सूर्य से अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकें।
सूर्य नमस्कार का शाब्दिक अर्थ।
सूर्य नमस्कार’ का शाब्दिक अर्थ सूर्य को नमस्कार करना है। शरीर को सही आकार देने और मन को शांत व स्वस्थ रखने का यह एक योग आसन है।
अगर आपके पास समय की कमी है और आप फिट रहने का तरीका ढूंढ रहे हैं तो सूर्य नमस्कार सबसे अच्छा विकल्प है। सभी योगासनों में सूर्य नमस्कार सर्वश्रेष्ठ है। अकेला सूर्य नमस्कार का अभ्यास ही अभ्यासकर्ता को संपूर्ण योग व्यायाम के लाभ प्रदान करने में सक्षम है। इसके अभ्यास से साधक का शरीर स्वस्थ और तेजस्वी बनता है। ‘सूर्य नमस्कार’ पुरुषों, महिलाओं, बच्चों, युवाओं और यहां तक कि बुजुर्गों के लिए भी उपयोगी बताया गया है।
सूर्य नमस्कार करने के चरण।
सूर्य नमस्कार की एक आवृत्ति या चक्र में 12 क्रियाएँ होती हैं। जिनके 12 मंत्र हैं। अर्थात् प्रत्येक आसन का अपना एक मंत्र है। प्रत्येक क्रिया का अपना एक लाभ है। इन मंत्रों का जाप प्रत्येक आसन के साथ किया जा सकता है। वैसे तो प्रत्येक आसन का अपना महत्त्व होता है परंतु इन आसनों को श्रृंखलाबद्ध तरीके से किया जाए तो उनकी पूर्णता के बाद उन आसनों के लाभ में वृद्धि हो जाती है,
सूर्य नमस्कार – एक पूर्ण यौगिक व्यायाम। सूर्य नमस्कार प्रातःकाल खाली पेट करना उचित होता है। और प्रतिदिन नियम से किया जाने वाला सूर्य नमस्कार अन्य व्यायामों की अपेक्षा ज़्यादा लाभकारी है। सूर्य नमस्कार और दूसरे योग आसनों (Yoga asana) को करने पश्चात योग निद्रा में पूर्ण विश्राम अवश्य करें।
अच्छे स्वास्थ्य के अतिरिक्त सूर्य नमस्कार इस धरती पर जीवन को बनाए रखने के लिए हमें सूर्य के प्रति आभार प्रकट करने का अवसर भी देता है।
आपको सूर्य नमस्कार का अभ्यास करने के कई तरीके मिल सकते हैं। हालाँकि, सबसे अच्छे परिणामों के लिए एक विशेष संस्करण पर टिके रहना और नियमित रूप से इसका अभ्यास करना उचित है। आइए अपने अच्छे स्वास्थ्य के लिए सूर्य नमस्कार के इन सरल और प्रभावी आसनों को आरंभ करें।
1. प्रार्थना मुद्रा
इसे नमस्कार मुद्रा, प्रणामासन, नमस्कारासन भी कहते हैं।
विधि।
दोनों हाथों के पंजों को मिलाकर प्रार्थना की मुद्रा में पूर्व दिशा अर्थात् सुर्य की तरफ़ मुंह करके सीधे खड़े हो जाएँ। पूरे शरीर को आराम दें एवं आगे के अभ्यास के लिए तैयार रहें।
श्वास का क्रम।
अभ्यास के दौरान समान्य श्वास-प्रश्वास करें।
ध्यान।
इस आसन के अभ्यास के दौरान अपना ध्यान अनाहत चक्र पर केंद्रित करें।
मंत्र।
इस आसन के अभ्यास के दौरान इस मंत्र का उच्चारण करें। “ॐ मित्राय नमः” अर्थात् हे विश्व के मित्र सूर्य, आपको नमस्कार।
बीज मंत्र “ॐ हां।”
लाभ।
रक्त संचार (blood circulation) को सामान्य करता है।
एकाग्रता और शांति प्रदान करता है।
2. हस्तउत्तानासन
विधि।
सर्वप्रथम अपने दोनों हाथों को ऊपर उठाएँ।
दोनों हाथों के बीच की दूरी कंधों की चौड़ाई के बराबर रखें। (चित्रानुसार)
अब सिर और ऊपरी धड़ को अपनी क्षमता अनुसार पीछे झुकाएँ। लेकिन दोनों हाथों कान की सीध में रखें।(चित्रानुसार)
श्वास का क्रम।
अपनी दोनों भुजाओं को ऊपर उठाते समय श्वास लें।
ध्यान।
इस आसन के अभ्यास के दौरान अपना ध्यान विशुद्धि चक्र पर केंद्रित करें।
मंत्र।
इस आसन के अभ्यास के दौरान इस मंत्र का उच्चारण करें। “ॐ रवये नमः” अर्थात् हे जगत में समृद्धि, चहल-पहल लाने वाले सूर्य देव, आपको नमस्कार है।
बीज मंत्र “ॐ ह्रीं”।
लाभ।
पेट की अतिरिक्त चर्बी को दूर करता है।
पाचन तंत्र को बेहतर बनाता है।
फुफ्फुस पुष्ट होते हैं।
हाथों और कंधों की मांसपेशियों की अच्छी एक्सरसाइज होती है।
3. पाद हस्तासन/हस्त पादासन
विधि।
सर्वप्रथम अपने आसन पर ताड़ासन की स्थिति में खड़े हों जाएं।
अब पैरों के पंजों के बीच की दुरी 0.5-1.0 फ़ीट तक रखें।
अब चित्रानुसार श्वास छोड़ते हुए धीरे-धीरे आगे की तरफ़ झुकें एवं दोनों हाथों के पंजों को पैरों के बगल में स्पर्श करते हुए रखें।
इस दौरान घुटने नहीं मुड़ने चाहिए। घुटने एक दम सीधे रखें।
अपने सिर को झुकाते हुए घुटनों के बीच रखिए। या मस्तक को घुटने से स्पर्श कराएँ।
श्वास का क्रम।
आगे की ओर झुकते समय सांस छोड़ें। अधिकतम सांस बाहर निकालने के लिए उदर क्षेत्र को संकुचित करें।
ध्यान।
इस आसन के अभ्यास के दौरान अपना ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र पर केंद्रित करें।
मंत्र।
इस आसन के अभ्यास के दौरान इस मंत्र का उच्चारण करें। “ॐ सूर्याय नमः” अर्थात् हे जगत को जीवन देने वाले सूर्य देव, आपको नमस्कार है।
बीज मंत्र “ॐ हूं।”
लाभ।
पेट की चर्बी कम करता है।
आमाशय एवं पेट के दोषों को रोकता एवं नष्ट करता है।
कब्ज निवारक।
रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाता है।
रक्त संचार (blood circulation) बढ़ता है।
स्नायुओं के दबाव को सामान्य करता है। इस आसन के बारे में और अधिक जानने के लिए यहां क्लिक करें।
4. अश्व संचालनासन
विधि।
पाद हस्तासन की स्थिति में ही अब बाएँ पैर को जितना पीछे ले जा सकते हैं ले जाएँ। और अपने बाएँ घुटने एवं पाद के पृष्ठ भाग को चित्रानुसार ज़मीन से स्पर्श कराएँ।
अपने दाएँ पंजे को अपनी ही जगह पर स्थित रखते रखें और घुटने को मोड़ें।
दोनों हाथों को अपने स्थान पर सीधी रहें। और अपने दोनों हाथों के पंजे एवं दाएँ पैर का पंजा एक सीध में ही रखें।
अब अपना सिर पीछे की तरफ उठाएँ। दृष्टि सामने ऊपर की तरफ़ और शरीर को धनुषाकार बनाएँ। (चित्रानुसार)
श्वास का क्रम।
अभ्यास के दौरान अपने बाएँ पैर को पीछे ले जाते समय श्वास लें।
ध्यान।
इस आसन के अभ्यास के दौरान अपना ध्यान आज्ञा चक्र पर केंद्रित करें।
मंत्र।
इस आसन के अभ्यास के दौरान इस मंत्र का उच्चारण करें। “ॐ भानवे नमः” अर्थात् हे प्रकाश पुंज, आपको नमस्कार है।
बीज मंत्र “ॐ हैं।”
लाभ।
रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाता है।
इस आसन के अभ्यास से पेट के क्षेत्र में हल्के तनाव के कारण पाचन तंत्र में रक्त संचार को बढ़ाता है, जिससे पाचन तंत्र सुचारू रूप से कार्य करता है।
अश्व संचालनासन की स्थिति के पश्चात अपने शरीर का वज़न दोनों हाथों पर स्थिर करते हुए दाएँ पैर को सीधा करके दाएँ पैर के पंजे को बाएँ पैर के पंजे के पास रखें।
अब अपने नितंबों को ऊपर की ओर उठाएँ एवं अपने सिर को दोनों भुजाओं के बीच लाएँ।
ध्यान रखें एड़ियाँ ज़मीन से ऊपर न उठें और अपने घुटनों की तरफ़ देखते हुए अपने पैरों और भुजाओं को एक सीध में रखें।
श्वास का क्रम।
अपने दाएँ पैर को पीछे लाते समय एवं नितंबों को ऊपर उठाते समय श्वास छोड़ें।
ध्यान।
इस आसन के अभ्यास के दौरान अपना ध्यान विशुद्धि चक्र पर केंद्रित करें।
मंत्र।
इस आसन के अभ्यास के दौरान इस मंत्र का उच्चारण करें। “ॐ खगाय नमः” अर्थात् हे आकाश में गति करने वाले सूर्य देव, आपको नमस्कार है।
बीज मंत्र “ॐ हौं।”
लाभ।
इस आसन में सिर आगे की ओर झुका होने से सिर के क्षेत्र में रक्त संचार बढ़ता है। इससे न सिर्फ चेहरे पर ताजगी आती है बल्कि आंखों की रोशनी भी बढ़ती है और बालों का झड़ना भी रुक जाता है।
इस आसन के अभ्यास से हाथों-पैरों का अच्छा व्यायाम होता है।
रीढ़ की हड्डी की नसों को लाभ होता है। इससे लचीलापन बढ़ता है और रीढ़ की हड्डी मजबूत होती है।
पर्वतासन के पश्चात अपने दोनों घुटने मोड़ते हुए शरीर को ज़मीन से इस प्रकार स्पर्श करवाएं कि दोनों पैर की अंगुलियाँ, दोनों घुटने, दोनों हाथों की हथेलियाँ, छाती व ठुड्डी शरीर के यह सभी अंग पृथ्वी को स्पर्श करें। इनके अलावा शरीर कोई भी अंग पृथ्वी को स्पर्श न करें। (चित्रनुसार)
श्वास का क्रम।
इस आसन के अभ्यास के दौरान श्वास को रोककर रखें।
ध्यान।
इस आसन के अभ्यास के दौरान अपना ध्यान मणिपूरक चक्र पर केंद्रित करें।
मंत्र।
इस आसन के अभ्यास के दौरान इस मंत्र का उच्चारण करें। “ॐ पूष्णे नमः” अर्थात् हे जगत के पालनकर्ता, मैं आपको नमस्कार करता हूं। बीज मंत्र: “ॐ ह्रः।”
अष्टांग नमस्कार की स्थिति के पश्चात अपने हाथों को सीधा करें। और अपने शरीर के अगले हिस्से सिर, छाती एवं कमर के भाग को ऊपर उठाते हुए सिर तथा धड़ को धनुषाकार में पीछे की तरफ़ झुकाएँ।
दृष्टि सामने रखें।
श्वास का क्रम।
शरीर के अगले हिस्से सिर, छाती एवं कमर के भाग को ऊपर उठाते समय श्वास लें।
ध्यान।
इस आसन के अभ्यास के दौरान अपना ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र पर केंद्रित करें।
मंत्र।
इस आसन के अभ्यास के दौरान इस मंत्र का उच्चारण करें। “ॐ हिरण्यगर्भाय नमः” अर्थात् हे ज्योतिर्मय, मैं आपको नमस्कार करता हूं।
बीज मंत्र “ॐ ह्रां।”
लाभ।
उदर क्षेत्र में तनाव उत्पन्न कर रक्त संचार को बढ़ाता है। अतः पाचन क्रिया को क्रियाशील करता है। और पाचन तंत्र मजबूत बनता है।
क़ब्ज़ समस्या को दूर करता है।
फेफड़ों को स्वस्थ्य बनाता है।
रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाता है।
अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस, स्लिप डिस्क के रोगियों के लिए फायदेमंद।
अपने नितंबों को ऊपर की ओर उठाएँ एवं अपने सिर को दोनों भुजाओं के बीच लाएँ।
ध्यान रखें एड़ियाँ ज़मीन से ऊपर न उठें और अपने पैरों और भुजाओं को एक सीध में रखें। पैरों के पंजे आपस में मिले हुए हों। दृष्टि नाभि की तरफ़ रखें।
श्वास का क्रम।
अभ्यास के दौरान नितंब व धड़ को ऊपर उठाते समय श्वास छोड़ें।
ध्यान।
इस आसन के अभ्यास के दौरान अपना ध्यान विशुद्धि चक्र पर केंद्रित करें।
मंत्र।
यह स्थिति 5 की ही पुनरावृत्ति है। परन्तु इसके अभ्यास के दौरान इस मंत्र का उच्चारण करें। “ॐ मरीचये नमः” अर्थात् हे किरणों के देवता, मैं आपको नमस्कार करता हूं।
बीज मंत्र “ॐ ह्रीं।”
लाभ।
यह स्थिति 5 की ही पुनरावृत्ति है। इससे स्थिति 5 के सभी लाभ प्राप्त होते हैं।
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9. अश्व-संचालनासन
विधि।
यह स्थिति 4 की ही पुनरावृत्ति है। स्थिति 4 में बायाँ पैर पीछे जाता है। जबकि इस स्थिति में दायाँ पैर पीछे रहता है। और बाकी विधि स्थिति 4 के समान ही है।
श्वास का क्रम।
अभ्यास के दौरान बाएँ पैर को आगे ले जाते समय श्वास लें।
ध्यान।
इस आसन के अभ्यास के दौरान अपना ध्यान आज्ञा चक्र पर केंद्रित करें।
मंत्र।
यह स्थिति 4 की ही पुनरावृत्ति है। परन्तु इसके अभ्यास के दौरान इस मंत्र का उच्चारण करें। “ॐ आदित्याय नमः” अर्थात् हे जगत के रक्षक मैं आपको नमस्कार करता हूं।
बीज मंत्र: “ॐ हूं।”
लाभ।
यह स्थिति 4 की ही पुनरावृत्ति है। स्थिति 4 के समस्त लाभ प्राप्त होते हैं।
10. पाद हस्तासन/हस्त पादासन
विधि।
यह स्थिति 3 की ही पुनरावृत्ति है।
श्वास का क्रम।
आगे की ओर झुकते समय सांस छोड़ें। अधिकतम सांस बाहर निकालने के लिए उदर क्षेत्र को संकुचित करें।
ध्यान।
इस आसन के अभ्यास के दौरान अपना ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र पर केंद्रित करें।
मंत्र।
यह स्थिति 3 की ही पुनरावृत्ति है। परन्तु इसके अभ्यास के इस मंत्र का उच्चारण करें। “ॐ सवित्रे नमः” अर्थात् हे संसार को उत्पन्न करने वाले सूर्य देव मैं आपको नमस्कार करता हूं।
बीज मंत्र: ॐ हैं।
लाभ।
यह स्थिति 3 की ही पुनरावृत्ति है। स्थिति 3 के समस्त लाभ प्राप्त होते हैं।
11. हस्त उत्तानासन
विधि।
यह स्थिति 2 की ही पुनरावृत्ति है।
श्वास का क्रम।
अभ्यास के दौरान हाथों को ऊपर उठाते समय श्वास लें।
ध्यान।
इस आसन के अभ्यास के दौरान अपना ध्यान विशुद्धि चक्र पर केंद्रित करें।
मंत्र।
यह स्थिति 2 की ही पुनरावृत्ति है। परन्तु इसके अभ्यास के दौरान इस मंत्र का उच्चारण करें। “ॐ अर्काय नमः” अर्थात् हे पवित्रता को देने वाले सूर्य देव, मैं आपको नमस्कार करता हूं।
बीज मंत्र “ॐ हौं।”
लाभ।
यह स्थिति 2 की ही पुनरावृत्ति है। स्थिति 2 के समस्त लाभ प्राप्त होते हैं।
12. प्रार्थना मुद्रा
विधि।
यह स्थिति 1 की पुनरावृत्ति है।
श्वास का क्रम।
अभ्यास के दौरान समान्य श्वास-प्रश्वास करें।
ध्यान।
इस आसन के अभ्यास के दौरान अपना ध्यान अनाहत चक्र पर केंद्रित करें।
मंत्र।
यह स्थिति 1 की ही पुनरावृत्ति है। परन्तु इसके अभ्यास के दौरान इस मंत्र का उच्चारण करें। “ॐ भास्कराय नमः” अर्थात् हे समस्त संसार में प्रकाश करने वाले सूर्य देव, मैं आपको नमस्कार करता हूं।
बीज मंत्र: “ॐ ह्रः।”
लाभ।
यह स्थिति 1 की ही पुनरावृत्ति है। स्थिति 1 के समस्त लाभ प्राप्त होते हैं।
सूर्य नमस्कार का अभ्यास करने के लिए इस वीडियो की मदद लें।
सूर्य नमस्कार करने के फायदे।
सूर्य नमस्कार का नियमित अभ्यास करने के फायदे।
प्रतिदिन नियम से किया जाने वाला सूर्य नमस्कार अन्य व्यायामों की अपेक्षा ज़्यादा लाभकारी है।
सूर्य नमस्कार के अभ्यास से पूरे शरीर की अच्छी एक्सरसाइज हो जाती है।
यह प्राण ऊर्जा प्रदाता है।
सूर्य नमस्कार के अभ्यास से शारीरिक और मानसिक दोनों स्तरों पर ऊर्जा संतुलित होती है।
सूर्य नमस्कार के अभ्यास के दौरान मेरुदण्ड के बार-बार आगे-पीछे मोड़ने के कारण शारीरिक लाभ के साथ-साथ कुण्डलिनी जागरण में इसका अधिक महत्व है। चूंकि सुषुम्ना का मार्ग रीढ़ की हड्डी ही है, इसलिए ऊर्जा भी ऊपर की ओर निर्देशित होती है। अर्थात् ऊर्जा भी ऊर्ध्वमुखी होती है।
सूर्य नमस्कार से मानसिक शांति मिलती है। शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। स्मरण शक्ति बढ़ती है। बल, वीर्य व तेज की वृद्धि करता है।
यह आसन उदर-क्षेत्र के अंगो को पुष्ट बनाता है। जिससे पाचन तंत्र सुचारु ढंग से कार्य करने लगता है और पाचन तंत्र (Digestive System) में सुधार होता है। क़ब्ज़ की समस्या को दूर करता है।
प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत होता है।
इस आसन के अभ्यास से मनोबल एवं आत्मविश्वास बढ़ता है।
मेरुदण्ड, कमर एवं पीठ की माँसपेशियों को लचिला और सशक्त बनाता है।
महिलाएं अपने शरीर को आकर्षक, सुंदर और सुडौल बना सकती हैं।
सूर्य नमस्कार समस्त बीमारियों का नाश करता है।
सूर्य नमस्कार का अभ्यास करने वाले साधक सूर्य के समान तेजवान बनते है।
विद्यार्थियों को सूर्य नमस्कार का अभ्यास अवश्य करना चाहिए और इनसे होने वाले लाभों को अवश्य प्राप्त करें।
सावधानियां।
इस आसन को 8 वर्ष से अधिक उम्र का हर व्यक्ति कर सकता है।
रीढ़ की हड्डी की समस्या, high blood pressure, हृदय दोष (heart defects) और हर्निया आदि से पीड़ित लोगों को यह आसन किसी योग गुरु के मार्गदर्शन में करना चाहिए।
12 thoughts on “सूर्य नमस्कार करने का तरीका, फायदे और सावधानियां | 1”
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