हेलो दोस्तों INDIA TODAY ONE blog में आपका स्वागत है। इस आर्टिकल में हम अर्ध मत्स्येन्द्रासन के बारे में जानकारी देंगे।
भारत के महान योग गुरुओं और तपस्वियों ने मनुष्य के जीवन में संतुलन बनाने के लिए कई योगासनों का निर्माण किया है। इन्हीं योगासनों में से एक प्रमुख आसन अर्ध मत्स्येन्द्रासन हैं। यह आसन योगी मत्स्येन्द्रनाथ ने अपने साधकों को पहले सिखाया हो, अतः उन्हीं के नाम पर इस आसन का नाम रखा गया है।
इसलिए, इस लेख में हम अर्ध मत्स्येन्द्रासन के बारे में जानेंगे। अर्ध मत्स्येन्द्रासन क्या है, अर्ध मत्स्येन्द्रासन करने का सही तरीका, अर्ध मत्स्येन्द्रासन करने के फायदे और सावधानियों के बारे में जानकारी देंगे।
अर्ध मत्स्येन्द्रासन करने का सही तरीका।
अर्ध मत्स्येन्द्रासन करने की विधि।
विधि।
- सर्वप्रथम अपने आसन पर दोनों पैरों को फैलाकर बैठ जाएँ।
- अब बाएं को घुटने से मोड़ कर बाएँ पैर की एड़ी को मूलाधार के पास सीवनी स्थान पर रखें या दाहिने नितम्ब के पास रखें। (चित्रनुसार)
- अब दाहिना पैर मोड़ें और दाहिने पैर के टखने को बाएँ घुटने के पास में रखें। (चित्रनुसार)
- अब दाहिने घुटने पर (चित्रनुसार) बाईं बग़ल टिकाएँ।
- अब दाहिने पैर के घुटने को बाएँ हाथ की बगल से अपनी तरफ़ खींचते हुए दाहिनी तरफ़ घूमें व दृष्टि भ्रूमध्य पर रखें। (चित्रनुसार)
- जितना मुड़ सकते हैं उतना मुड़ें। परंतु बाएँ हाथ से दाहिने पैर के अंगूठे को पकड़ना न भूलें।
- अब यही क्रम पैर बदलकर दोहराएं।
श्वास का क्रम।
- अभ्यास के दौरान मुड़ते समय रेचक करें,
- फिर बाह्य कुंभक करें।
- अब पूर्व स्थिति में आते समय पूरक करें।
समय।
- 5-10 सेकंड इसी स्थिति पर रुकें।
अर्ध मत्स्येन्द्रासन का अभ्यास करने के लिए इस वीडियो की मदद लें।
अर्ध मत्स्येन्द्रासन करने के फायदे
अर्ध मत्स्येन्द्रासन का नियमित अभ्यास करने के फायदे :-
- इस आसन का अभ्यास करने से बाहों, कंधों, गर्दन, ऊपरी पीठ और मेरुदण्ड में आवश्यक खिंचाव लगता है।
- मेरुदण्ड लचीला,पूर्ण सशक्त और रोग-मुक्त होता है। रीढ़ की हड्डी की सहायक मांसपेशियां मजबूत व लचीली बनाती है। और यह रीढ़ की हड्डी के आसपास की कड़ी मांसपेशियों को फैलाता है। तथा रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाता है।
- यह आसन उदर-क्षेत्र को क्रियाशील बनाता हैं। उदर भाग की मालिश कर पाचन तंत्र ठीक करता है। पाचन तंत्र (Digestive System) में सुधार होता है।
- कब्ज की समस्या से राहत मिलती है। क़ब्ज़ के लिए यह रामबाण है।
- पेट की चर्बी को कम करता है। पेट के क्षेत्र से अतिरिक्त वसा को बाहर निकलने में मदद करता है। और मोटापे का हरण करता है।
- इस आसन के अभ्यास से छाती खोलती है और फेफड़ों में ऑक्सीजन की ग्रहण करने की मात्रा बढ़ जाती है।
- 72,000 नाड़ियों के दोष ठीक कर सैकड़ों रोग दूर करता है।
- कुण्डलिनी जगाने में सहायक है।
- मधुमेह और हार्निया में लाभप्रद आसान है।
- कूल्हे के जोड़ों का दर्द कम हो जाता है।
- इस आसन का प्रतिदिन अभ्यास करने से शरीर के अंदर जमा टॉक्सिन्स बाहर निकल जाता हैं। जिससे शरीर स्वस्थ रहता है।
सावधानियां।
- पेट का अल्स, मेरुदंड संबंधी चोट वाले, कटिस्नायुशूल(sciatica) स्लिप डिस्क आदि रोग वाले साधक इस आसन को न करें।
- गर्भवती महिलाएँ (pregnant women) भी इस आसन का अभ्यास न करें।
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सारांश।
योग करना अच्छी आदत है। कभी भी जल्दी फायदे पाने के चक्कर में शरीर की क्षमता से अधिक योगाभ्यास करने की कोशिश न करें। योगासनों का अभ्यास किसी भी वर्ग विशिष्ट के लोग कर सकते हैं।
अर्ध मत्स्येन्द्रासन, इस योगासन के नियमित अभ्यास से शरीर से सम्बंधित बीमारियों को दूर करने में मदद मिलती है। किन्तु हमारी मंत्रणा यही है कि कभी भी किसी अनुभवी योगाचार्य या योग विशेषज्ञ (yoga Expert) की मदद के बिना मुश्किल योगासनों का अभ्यास या आरंभ न करें। किसी योग शिक्षक की देखरेख में ही मुश्किल योगासनों का अभ्यास करें। इसके अलावा अगर कोई गंभीर बीमारी हो तो योगासन का आरंभ करने से पहले डॉक्टर या अनुभवी योगाचार्य की सलाह जरूर लें।
FAQs
Ques 1. अर्ध मत्स्येन्द्रासन करने की विधि?
Ans. अर्ध मत्स्येन्द्रासन करने की विधि।
- सर्वप्रथम अपने आसन पर दोनों पैरों को फैलाकर बैठ जाएँ।
- अब बाएं को घुटने से मोड़ कर बाएँ पैर की एड़ी को मूलाधार के पास सीवनी स्थान पर रखें या दाहिने नितम्ब के पास रखें। (चित्रनुसार)
- अब दाहिना पैर मोड़ें और दाहिने पैर के टखने को बाएँ घुटने के पास में रखें। (चित्रनुसार)
- अब दाहिने घुटने पर (चित्रनुसार) बाईं बग़ल टिकाएँ।
- अब दाहिने पैर के घुटने को बाएँ हाथ की बगल से अपनी तरफ़ खींचते हुए दाहिनी तरफ़ घूमें व दृष्टि भ्रूमध्य पर रखें। (चित्रनुसार)
- जितना मुड़ सकते हैं उतना मुड़ें। परंतु बाएँ हाथ से दाहिने पैर के अंगूठे को पकड़ना न भूलें।
- अब यही क्रम पैर बदलकर दोहराएं।
Ques 2. अर्ध मत्स्येन्द्रासन करने के क्या फायदे है?
Ans. अर्ध मत्स्येन्द्रासन का नियमित अभ्यास करने के फायदे :-
- इस आसन का अभ्यास करने से बाहों, कंधों, गर्दन, ऊपरी पीठ और मेरुदण्ड में आवश्यक खिंचाव लगता है।
- मेरुदण्ड लचीला,पूर्ण सशक्त और रोग-मुक्त होता है। रीढ़ की हड्डी की सहायक मांसपेशियां मजबूत व लचीली बनाती है। और यह रीढ़ की हड्डी के आसपास की कड़ी मांसपेशियों को फैलाता है। तथा रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाता है।
- यह आसन उदर-क्षेत्र को क्रियाशील बनाता हैं। उदर भाग की मालिश कर पाचन तंत्र ठीक करता है। पाचन तंत्र (Digestive System) में सुधार होता है।
- कब्ज की समस्या से राहत मिलती है। क़ब्ज़ के लिए यह रामबाण है।
- पेट की चर्बी को कम करता है। पेट के क्षेत्र से अतिरिक्त वसा को बाहर निकलने में मदद करता है। और मोटापे का हरण करता है।
- इस आसन के अभ्यास से छाती खोलती है और फेफड़ों में ऑक्सीजन की ग्रहण करने की मात्रा बढ़ जाती है।
- 72,000 नाड़ियों के दोष ठीक कर सैकड़ों रोग दूर करता है।
- कुण्डलिनी जगाने में सहायक है।
- मधुमेह और हार्निया में लाभप्रद आसान है।
- कूल्हे के जोड़ों का दर्द कम हो जाता है।
- इस आसन का प्रतिदिन अभ्यास करने से शरीर के अंदर जमा टॉक्सिन्स बाहर निकल जाता हैं। जिससे शरीर स्वस्थ रहता है।