हेलो दोस्तों INDIA TODAY ONE blog में आपका स्वागत है। इस लेख में हम अष्टवक्रासन के बारे में जानेंगे। अष्टवक्रासन क्या है, अष्टवक्रासन करने का सही तरीका, अष्टवक्रासन करने के फायदे और सावधानियों के बारे में जानकारी देंगे।
अष्टवक्रासन का शाब्दिक अर्थ।
यह संतुलन एवं उच्च अभ्यास का आसन है। यह आसन मुनि अष्टावक्र को समर्पित है जो कि सीता के पिता और राजा जनक के गुरु थे।
अष्टवक्रासन करने का सही तरीका।
अष्टवक्रासन करने की विधि।
विधि।
- सर्वप्रथम अपने आसन पर दोनों पैरों के बीच लगभग डेढ़ फीट का फासला बना कर खड़े हो जाएँ।
- अब घुटनों को मोड़े। तथा (चित्रानुसार) ज़मीन पर पैरों के बीच दाहिनी हथेली और बाएँ पैर के थोड़ा आगे बायीं हथेली रखें।
- अब दाहिने हाथ पर दाहिना पैर को इस प्रकार रखें कि दाहिनी कुहनी के ऊपर दाहिनी जांघ का पृष्ठ भाग आए। (चित्रानुसार)
- अब जिस प्रकार आप चित्र में देख रहे हो उसी प्रकार बाएँ पैर के पंजे को आगे दाएँ पंजे के पास रखें।
- अब श्वास छोड़ें एवं दोनों पैरों को ज़मीन से ऊपर उठाएँ।
- दोनों पैरों को दाहिने तरफ़ तिरछे रूप में फैलाएँ इस प्रकार दोनों पैरों की जांघो के बीच दाहिना हाथ आ जाएंगा।
- अब दाहिनी कुहनी को थोड़ा झुका लें। और बायीं भुजा सीधी होनी चाहिए।
- अब दोनों हाथों पर सन्तुलन स्थापित करें एवं कोहनियाँ मोड़े तथा जमीन के समानान्तर सिर एवं धड़ को लाएँ।
- यह इस आसन की अंतिम अवस्था है। इस अवस्था में अपनी क्षमता अनुसार रुकें व श्वास लें।
- अब अपनी भुजाओं को सीधा करें। सिर एवं धड़ ऊपर उठाएँ तथा दोनों पैरों को अलग करें और ज़मीन पर रखें। और अब वापस अपनी मूल अवस्था में आ जाएं और दूसरी तरफ़ से भी इसी क्रिया को दुहराएँ।
श्वास का क्रम/समय।
- इस आसन के अभ्यास के दौरान पैरों को ऊपर उठाते समय अंतः कुंभक करें।
- पूर्ण अवस्था में श्वास की गति सामान्य रखें।
- पैरों को नीचे करते समय श्वास छोड़ें।
- पूर्ण अवस्था में अपनी क्षमता अनुसार रुकें।
अष्टवक्रासन का अभ्यास करने के लिए इस वीडियो की मदद लें।
अष्टवक्रासन करने के फायदे।
अष्टवक्रासन का नियमित अभ्यास करने के फायदे।
- इस आसन के अभ्यास के दौरान दोनों हाथों पर पूरे शरीर का वजन रहता है, जिससे हथेलियां, कलाइया और बाजुएं मजबूत बनती हैं। तथा मणिबंध, भुजा व कंधे को मज़बूत और सुद्रढ़ता देता है।
- यह उदर प्रदेश के आंतरिक अंगों की शिथिलता को दूर करता है। यह आसन उदर-क्षेत्र के अंगो को अधिक क्रियाशील बनाता हैं। जिससे पाचन तंत्र सुचारु ढंग से कार्य करने लगता है और पाचन तंत्र (Digestive System) में सुधार होता है।
- पाचन तंत्र को मजबूत बनाकर पेट से संबंधी रोगों जैसे भूख न लगना, ऐसिडिटी, पेट का फूलना, बदहजमी, कब्ज आदी रोगों को दूर करता है।
- एकाग्रता बढ़ती है। साथ ही यह तनाव, चिंता और उदासीनता को दूर कर मन को शांति प्रदान करता है। तथा मन को नियन्त्रित करता हुआ जीवन में उत्थान लाता है।
- साहस, धैर्य व दृढ़ता जैसे गुणों का जीवन में विकसित करता है।
- बौद्धिक विकास हेतु अष्टवक्रासन लाभदायक है।
- स्त्री रोग जैसे मासिक धर्म की अनियमितता, मेनोपॉज को यह अष्टवक्रासन दूर करता है।
- पूरे शरीर में रक्त संचार को विनियमित करता है।
- चेहरे के ओज-तेज को बढ़ाता है।
सावधानियां।
- कमज़ोर कलाई व कंधों के विकार से सम्बंधित व्यक्ति इस आसन का अभ्यास न करें।
- सन्तुलन पर ध्यान केन्द्रित करें।
- इस आसन के अभ्यास के बाद शिथिलता वाले आसन करें।
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सारांश।
योग करना अच्छी आदत है। कभी भी जल्दी फायदे पाने के चक्कर में शरीर की क्षमता से अधिक योगाभ्यास करने की कोशिश न करें। योगासनों का अभ्यास किसी भी वर्ग विशिष्ट के लोग कर सकते हैं।
अष्टवक्रासन, इस योगासन के नियमित अभ्यास से शरीर से सम्बंधित बीमारियों को दूर करने में मदद मिलती है। किन्तु हमारी मंत्रणा यही है कि कभी भी किसी अनुभवी योगाचार्य या योग विशेषज्ञ (yoga Expert) की मदद के बिना मुश्किल योगासनों का अभ्यास या आरंभ न करें। किसी योग शिक्षक की देखरेख में ही मुश्किल योगासनों का अभ्यास करें। इसके अलावा अगर कोई गंभीर बीमारी हो तो योगासन का आरंभ करने से पहले डॉक्टर या अनुभवी योगाचार्य की सलाह जरूर लें।
FAQs
Ques 1. अष्टवक्रासन करने की विधि?
Ans. अष्टवक्रासन करने की विधि।
- सर्वप्रथम अपने आसन पर दोनों पैरों के बीच लगभग डेढ़ फीट का फासला बना कर खड़े हो जाएँ।
- अब घुटनों को मोड़े। तथा (चित्रानुसार) ज़मीन पर पैरों के बीच दाहिनी हथेली और बाएँ पैर के थोड़ा आगे बायीं हथेली रखें।
- अब दाहिने हाथ पर दाहिना पैर को इस प्रकार रखें कि दाहिनी कुहनी के ऊपर दाहिनी जांघ का पृष्ठ भाग आए। (चित्रानुसार)
- अब जिस प्रकार आप चित्र में देख रहे हो उसी प्रकार बाएँ पैर के पंजे को आगे दाएँ पंजे के पास रखें।
- अब श्वास छोड़ें एवं दोनों पैरों को ज़मीन से ऊपर उठाएँ।
- दोनों पैरों को दाहिने तरफ़ तिरछे रूप में फैलाएँ इस प्रकार दोनों पैरों की जांघो के बीच दाहिना हाथ आ जाएंगा।
- अब दाहिनी कुहनी को थोड़ा झुका लें। और बायीं भुजा सीधी होनी चाहिए।
- अब दोनों हाथों पर सन्तुलन स्थापित करें एवं कोहनियाँ मोड़े तथा जमीन के समानान्तर सिर एवं धड़ को लाएँ।
- यह इस आसन की अंतिम अवस्था है। इस अवस्था में अपनी क्षमता अनुसार रुकें व श्वास लें।
- अब अपनी भुजाओं को सीधा करें। सिर एवं धड़ ऊपर उठाएँ तथा दोनों पैरों को अलग करें और ज़मीन पर रखें। और अब वापस अपनी मूल अवस्था में आ जाएं और दूसरी तरफ़ से भी इसी क्रिया को दुहराएँ।
Ques 2. अष्टवक्रासन करने के क्या फायदे है?
Ans. अष्टवक्रासन का नियमित अभ्यास करने के फायदे।
- इस आसन के अभ्यास के दौरान दोनों हाथों पर पूरे शरीर का वजन रहता है, जिससे हथेलियां, कलाइया और बाजुएं मजबूत बनती हैं। तथा मणिबंध, भुजा व कंधे को मज़बूत और सुद्रढ़ता देता है।
- यह उदर प्रदेश के आंतरिक अंगों की शिथिलता को दूर करता है। यह आसन उदर-क्षेत्र के अंगो को अधिक क्रियाशील बनाता हैं। जिससे पाचन तंत्र सुचारु ढंग से कार्य करने लगता है और पाचन तंत्र (Digestive System) में सुधार होता है।
- पाचन तंत्र को मजबूत बनाकर पेट से संबंधी रोगों जैसे भूख न लगना, ऐसिडिटी, पेट का फूलना, बदहजमी, कब्ज आदी रोगों को दूर करता है।
- एकाग्रता बढ़ती है। साथ ही यह तनाव, चिंता और उदासीनता को दूर कर मन को शांति प्रदान करता है। तथा मन को नियन्त्रित करता हुआ जीवन में उत्थान लाता है।
- साहस, धैर्य व दृढ़ता जैसे गुणों का जीवन में विकसित करता है।
- बौद्धिक विकास हेतु अष्टवक्रासन लाभदायक है।
- स्त्री रोग जैसे मासिक धर्म की अनियमितता, मेनोपॉज को यह अष्टवक्रासन दूर करता है।
- पूरे शरीर में रक्त संचार को विनियमित करता है।
- चेहरे के ओज-तेज को बढ़ाता है।