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योग क्या हैं – परिभाषा, अर्थ, प्रकार, महत्व, उद्देश्य और इतिहास | 1

योग

इस लेख में हम योग पर चर्चा करेंगे। योग का इतिहास, योग की परिभाषा, योग क्या है? योग का क्या अर्थ है? योग कितने प्रकार के होते हैं? योग का उद्देश्य क्या है? योग के क्या फायदे हैं? और अष्टांग योग से संबंधित सारी जानकारी और योग से जुड़े इन सभी सवालों के जवाब इस लेख में जानेंगे।

योग का इतिहास। – History of Yoga in Hindi.

ऐतिहासिक दृष्टि से योग-विद्या का प्रादुर्भाव विश्व में कब, कैसे और कहाँ हुआ, यह बता पाना अत्यंत कठिन होगा। यदि प्राचीन ग्रंथों पर नजर डालें तो योग-विद्या का उल्लेख वेदों और जैन धर्म के ग्रंथों में मिलता है। अत: यह कहा जा सकता है कि योग-विद्या की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है।

योग-विद्या का प्रचलन उस समय से प्रचलित है। जब योग से संबंधित ज्ञान लिपिबद्ध नहीं किया जाता था बल्कि यह योग-गुरुओं के द्वारा मुख के माध्यम से एक आचार्य से दूसरे आचार्य तथा अन्य शिष्यों तक प्रसारित कि जाती था। योग-विद्या की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है। ऐसा माना जाता है कि जब से सभ्‍यता आरम्भ हुई। तभी से योग किया जा रहा है। अर्थात् प्राचीनतम धर्मों व आस्‍थाओं के जन्‍म लेने से पहले ही योग-विद्या का जन्म हो चुका था। योग-विद्या में भगवान शिव को “आदि योगी” तथा “आदि गुरू” माना जाता है।

भगवान शंकर के बाद वैदिक ऋषि-मुनियों से ही योग-विद्या का प्रारम्भ माना जाता है। बाद में कृष्ण, महावीर और महात्मा बुद्ध ने अपनी तरह से योग को परिभाषित किया। इसके पश्चात महर्षि पतंजलि ने इसे सुव्यवस्थित रूप दिया। जिससे हम अष्टांग-योग के नाम से जानते है। फिर इस रूप को ही आगे चलकर सिद्धपंथ, शैवपंथ, नाथपंथ, वैष्णव और शाक्त पंथियों ने अपने-अपने तरीके से विस्तारित किया।

योग-विद्या से सम्बन्धित सबसे प्राचीन ऐतिहासिक साक्ष्य सिन्धु घाटी सभ्यता से प्राप्त वस्तुएँ से मिले हैं जिनकी शारीरिक मुद्राएँ और आसन उस काल में योग-विद्या के अस्तित्व के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। योग-विद्या के इतिहास पर यदि हम दृष्टि डालें तो इसके प्रारम्भ या अन्त का कोई ठोस प्रमाण अभी तक नही मिलता, लेकिन योग-विद्या का वर्णन सर्वप्रथम वेदों और जैन धर्म के ग्रंथों में मिलता है और वेदों और जैन धर्म के ग्रंथ को सबसे प्राचीन साहित्य माने जाते है। इसी आधार पर हम कह सकते हैं कि योग-विद्या का इतिहास बहुत प्राचीन है और योग-विद्या की शुरुआत भारत में हुई थी।

परंतु इस बातों में उलझना कि योग का आविर्भाव कब हुआ और किसने किया, यह उतना महत्त्वपूर्ण नहीं है बल्कि यह प्रश्न महत्त्वपूर्ण है कि योग-विद्या के रहस्यों को कब और किसने उजागर किया।

आज के लोगों का मानना हैं कि महर्षि पतंजलि ने योग का निर्माण किया जबकि योग के प्रथम गुरु भगवान शिव को माना जाता हैं। कुछ लोगों का मानना है कि पतंजलि योग दर्शन की रचना हिरण्य-गर्भ द्वारा लिखित योग सूत्रों के आधार पर की गई थी, जो अब लुप्त हो गए हैं। महर्षि पतंजलि ने केवल अष्टांग योग का प्रतिपादन किया जो यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि के रूप में गृहीत है।

योग कई हज़ार वर्षों से संसार में अपना वर्चस्व बनाए हुए है। इसने विश्व के सभी धर्मों को अनुप्राणित किया और मानव जाति को सही दिशा की ओर अग्रसर किया। योग वास्तव में एक ‘सार्वभौम् विश्व मानव धर्म’ है।

योग क्या है? – What is Yoga in Hindi?

योग सही ढंग से जीवन जीने का विज्ञान है। इसलिए इसे दैनिक जीवन में शामिल किया जाना चाहिए। यह हमारे जीवन से जुड़े शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक आदि सभी पहलुओं पर काम करता है। 

योग क्या है, इन कुछ प्रश्नों के माध्यम से योग को अच्छे से समझते हैं। 

योग साधक को कोनसे परिणाम प्रदान करता है?

योग-विद्या से साधक को कौनसी नई उपलब्धियाँ प्राप्त होती है?

योग-विद्या के माध्यम से साधक क्या-क्या छोड़ सकता है?

योग-विद्या के माध्यम से साधक को अंततः क्या प्राप्त करता है?

योग की परिभाषा। – Definition of Yoga in Hindi.

हमारे सनातन धर्म, बौद्ध धर्म और महर्षियों के अनुसार योग की परिभाषा कुछ इस प्रकार है।

महर्षि पतंजलि के अनुसार :-

 

महर्षि वेदव्यास के अनुसार :-

 

भागवत गीता के अनुसार :-

 

बौद्ध धर्म के अनुसार :-

वेदान्त के अनुसार :-

योग वशिष्ठ के अनुसार :-

योग का अर्थ। – Meaning of Yoga in Hindi.

संस्कृत में योग शब्द की व्युत्पत्ति “युज” से मानी गई है। योग शब्द “युज” धातु के बाद करण और भाव वाच्य में धञ प्रत्यय लगाने से बना है। योग शब्द का सामान्य अर्थ है जुड़ना, एकजुट करना, युक्त होना, एकीकृत करना या एकत्र करना।

योग एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है। जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने का काम होता है। ‘योग’ शब्द तथा इसकी प्रक्रिया और धारणा हिन्दू धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म में ध्यान प्रक्रिया से सम्बन्धित है।

योग सांख्य का ही क्रियात्मक रूप है। योग एक “सार्वभौमिक विश्व धर्म” है अर्थात् योग विश्व के सभी धर्मों, सम्प्रदायों, मत-मतान्तरों के पक्षपात एवं मत-भेदों से मुक्त है। जो स्वयं के अनुभव से तत्व (आत्मा) का ज्ञान प्राप्त करना सिखाता है और साधक को उसके अंतिम लक्ष्य (मोक्ष) तक लेकर जाता है।

आज योग से जुड़ी कई तरह की भ्रांतियां फैली हुई हैं। यदि हम स्पष्ट शब्दों में समझें तो स्थूलता से सूक्ष्मता की ओर जाना तथा बहिरात्मा से अंतरात्मा की ओर जाना ही योग है। मन की प्रवृत्तियों से हम स्थूलता की ओर जाते हैं अर्थात् हम स्थिर मन के स्थान पर बहिर्मुखी हो जाते हैं। हमारा मन जितना अस्थिर होगा, रज और तम की मात्रा उतनी ही अधिक बढ़ेगी। परंतु जब हम मन को अंतरोन्मुख करते जाएँगे तब हमारे अंदर उतने ही सत्य यानी सम्यक् ज्ञान और सम्यक् दर्शन का प्रादुर्भाव होता जाएगा और आत्मदर्शन प्राप्त कर निर्विकल्प अवस्था को प्राप्त हो सकेंगे।

योग शब्द का व्यावहारिक अर्थ बहुत व्यापक है। इसका क्षेत्र भी बहुत विस्तृत है। इस प्रकार योग के विभिन्न अर्थ मिलते हैं।

योग का शाब्दिक अर्थ।

योग का शाब्दिक अर्थ है, योग शब्द की उत्पत्ति संस्कृति भाषा के “यूज” शब्द से हुई है जिसका अर्थ है जोड़ना,एक होना या बांधना। अर्थात् एक होने का अर्थ आत्मा और परमात्मा के एकीकरण से है। मनुष्य भ्रमवश, अज्ञानतावस, द्वैतभाव चित की वृत्तियो के कारण अपने आप को अर्थात् आत्मा को परमात्मा से अलग समझता है लेकिन आत्मा का परमात्मा से जुड़ना, एक होना ही योग है।

योग का वास्तविक अर्थ।

योग के अर्थ व इन परिभाषा के माध्यम से कह सकते हैं जो योग है वह एक दर्शन है जो व्यक्ति को जीवन के लक्ष्य प्राप्त करने का रास्ता दिखाता है अर्थात् जीवन में लक्ष्य प्राप्त करने में सहायता करता है योग के आठ अंग व क्रियाएं हैं। जो इस प्रकार है यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारण, ध्यान व समाधि।

योग के आठ अंग व क्रियाओं को अपनाकर व्यक्ति लोभ, मोह, कामना, वासना आदि से मुक्त हो जाता है। और व्यक्ति का अपने मन पर नियंत्रण हो जाता है। जब मन व ध्यान एक जगह केंद्रित हो जाता है। तो वह स्थिर हो जाता है और स्थिर की अवस्था को ही समाधि कहते हैं। व्यक्ति जब समाधि की अवस्था में पहुंच जाता है तो उसकी आत्मा का परमात्मा से मिलन हो जाता है और मोक्ष प्राप्ति की ओर अग्रसर होता है इसी का नाम योग है।

योग का व्यावहारिक अर्थ।

योग शब्द का व्यावहारिक अर्थ बहुत व्यापक है। इसका क्षेत्र भी बहुत विस्तृत है। और यदि आसान भाषा में समझे तो योग ही एक ऐसा साधन या माध्यम है। जिसके द्वारा व्यक्ति अपने मन, शरीर और भावनाओं पर नियंत्रण कर सकता है। और योग से शारीरिक, मानसिक व बौद्धिक शक्ति का विकास होता है।

योग के प्रकार। – Types of Yoga in Hindi.

प्राचीन ग्रंथों में योग के अनेक प्रकारों का उल्लेख किया गया है। योग प्रदीप में राज योग, अष्टांग योग, हठ योग, लय योग, ध्यान योग, भक्ति योग, क्रिया योग, मंत्र योग, कर्म योग और ज्ञान योग का उल्लेख करते हुए योग को कई प्रकार का माना गया है। भगवान् श्री कृष्ण ने तीन योगों का उपदेश दिया है – ज्ञान योग, कर्म योग, भक्ति योग।

लेकिन मुख्यत: 6 प्रकार के ही योग माने गए हैं- कर्म-योग, ज्ञान-योग, भक्ति-योग, राज-योग, हठ-योग, कुंडलिनी/लय-योग और हम इन्हीं 6 प्रकार के योगो पर चर्चा करेंगे।

  1. कर्मयोग
  2. ज्ञानयोग
  3. भक्तियोग
  4. राजयोग
  5. हठयोग
  6. कुंडलिनी/लययोग

इसके अतिरिक्त बहिरंगयोग, मंत्रयोग व स्वरयोग आदि योगो के अनेक आयामों की भी चर्चा की जाती है, लेकिन मुख्यत: 6 प्रकार के ही योग माने गए हैं।

1. कर्म-योग।

वास्तव में कर्म-योग ही वह योग है जिसके माध्यम से हम अपनी जीवात्मा से जुड़ पाते हैं। कर्मयोग हमारे आत्मज्ञान को जागृत करता है। इस योग में कर्म के द्वारा ईश्वर की प्राप्ति की जाती है। श्रीमद्भगवद्गीता में कर्म-योग को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। कर्म-योग का सीधा संबंध व्यक्ति के कर्मों से है। हमारे शास्त्र कहते हैं। कि हम इस संसार में जिस प्रकार की परिस्थितियों का सामना करते हैं। जो भी सुख या दुख हो रहे हैं। जैसा भी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। जो हमें प्राप्त हुआ है। जो हमें प्राप्त नहीं हुआ यह सभी हमारे किए गए कर्मों पर आधारित है। इसीलिए भविष्य को अच्छा बनाने के लिए हमें वर्तमान में अच्छे कर्म करने चाहिए।

2. भक्ति-योग।

भक्ति का अर्थ दिव्य प्रेम और योग का अर्थ जुड़ना है। ईश्वर, सृष्टि, प्राणियों, पशु-पक्षियों आदि के प्रति प्रेम, समर्पण भाव और निष्ठा को ही भक्ति-योग माना गया है। हर कोई किसी न किसी को अपना ईश्वर मानकर उसकी पूजा करता है, बस उसी पूजा को भक्ति-योग कहा गया है। यह भक्ति निस्वार्थ भाव से की जाती है। ताकि हम अपने उद्देश्य को सुरक्षित हासिल कर सकें भक्ति-योग में अपनी समस्त ऊर्जा व विचारों को और मन व ध्यान को भक्ति में केंद्रित करना होता है।

3. ज्ञान-योग।

योग की सबसे कठिन व प्रत्येक शाखा ज्ञान-योग है। इस योग में बुद्धि पर कार्य कर बुद्धि को विकसित किया जाता है वास्तव में जितने ज्ञानी व्यक्ति हुई है। जो स्वयं का उद्देश्य समझता है। तथा ब्रह्मचर्य का सही अर्थ जानता है वह उस परमात्मा में ध्यान केंद्रित करके ही जीवन व्यतीत करता है।

4. हठ-योग।

हठ का शाब्दिक अर्थ हठपूर्वक किसी कार्य को करने से लिया जाता है। हठ प्रदीपिका पुस्तक में हठ का अर्थ इस प्रकार दिया है। “ह” का अर्थ सूर्य तथा “ठ” का अर्थ चन्द्र बताया गया है। सूर्य और चन्द्र की समान अवस्था हठ-योग है।

हठ प्रदीपिका पुस्तक में हठ-योग के चार अंगों का वर्णन है- आसन, प्राणायाम, और बन्ध तथा नादानुसधान।

5. कुंडलिनी/लय-योग।

योग के आचार्यों ने लय या कुंडलिनी को भी ईश्वर प्राप्ति का एक साधन माना है। इसका अर्थ है- ‘‘मन को परमात्मा में लय कर देना, अर्थात् परमात्मा में लीन हो जाना’’

योग के अनुसार मानव शरीर में सात चक्र होते हैं। जब ध्यान के माध्यम से कुंडलिनी को जागृत किया जाता है, तो शक्ति जागृत होकर मस्तिष्क की ओर जाती है। इस दौरान वह सभी सातों चक्रों को क्रियाशील करती है। इस प्रक्रिया को ही कुंडलिनी/लय-योग कहा जाता है। इसमें मनुष्य बाहर के बंधनों से मुक्त होकर भीतर पैदा होने वाले शब्दों को सुनने का प्रयास करता है, जिसे नाद कहा जाता है। इस प्रकार के अभ्यास से मन की चंचलता खत्म होती है और एकाग्रता बढ़ती है

6. राज-योग।

राज का अर्थ है सम्राट इसमें व्यक्ति एक सम्राट के समान स्वाधीन होकर आत्मविश्वास के साथ कार्य करता है राजयोग आत्म अनुशासन और अभ्यास का मार्ग है। राज-योग सभी योगों का राजा कहा जाता है। इन्हें अष्टांग-योग भी कहा जाता है। राज-योग, महर्षि पतंजलि द्वारा रचित अष्टांग योग का वर्णन आता है। इसे योग सूत्र में महर्षि पतंजलि ने उल्लिखित किया है।

अष्टांग योग। – Ashtanga Yoga.

महर्षि पतंजलि ने योग के आठ प्रमुख अंग बताए हैं। जिसे अष्टांग योग कहते है। महर्षि पतंजलि कहते हैं कि ईश्वर और अपने इस जन्म के सत्य को जानने के लिए आरंभ शरीर से ही करना होगा। शरीर बदलेगा तो चित बदलेगा चित बदलेगा तो बुद्धि बदलेगी और चित पूर्ण रूप से सशक्त होता है। तभी व्यक्ति की आत्मा परमात्मा के साथ योग करने में सक्षम होती है।

वर्तमान में साधारण व्यक्ति योग के केवल तीन ही अंगों का पालन करते हैं आसन, प्राणायाम, ध्यान इनमें से ध्यान करने वाले व्यक्तियों की संख्या बहुत कम है। सामान्य लोग योग के आठों अंगो को योग प्रक्रिया में शामिल नहीं करते हैं। जिस कारण योग का संपूर्ण लाभ नहीं मिलता वास्तव में जो योगी है। वह योग के आठों अंगो का पालन करके स्वयं को ईश्वर से जोड़ते हैं।

यदि हम गहराई से देखें तो योग के यह आठ अंग कोई सामान्य कार्य नहीं करते, यह तो हमारे महान ऋषि-मुनियों की महान सोच है, उनकी बड़ी अनुकंपा है जो कि उन्होंने इसे अलग-अलग बांटकर और फिर एक सूत्र में पिरोकर हमें अवगत करा दिया क्योंकि सभी आठों अंगों के अलग-अलग कार्य हैं। जो कि हमारे हाथों और पैरों के नाखून से लेकर हमें मोक्ष तक का रास्ता बताते हैं। यह हमारे लिए और इस विश्व के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है, यह महान आत्माओं द्वारा हमें दिया गया एक बहुत बड़ा उपहार है। क्यों न हम इसे आत्मसात करें और उनके प्रति अपना आभार व्यक्त करें।

महर्षि पतंजलि ने योग के आठ प्रमुख अंग बताए हैं। (यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि) जिसे अष्टांग योग कहते है।

यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि योग के आठ अंग हैं। इन आठ अंगों दो भागों में बांटा गया है जिनकी दो अलग-अलग भूमिकाएँ हैं। 

  1. बहिरंग 
  2. अंतरंग

यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार यह पाँच अंग बहिरंग कहलाते हैं, क्योंकि इनकी विशेषता बाहर की क्रियाओं से ही सम्बंधित है। शेष तीन अंग अर्थात् धारणा, ध्यान और समाधि अंतरंग कहलाते हैं। इसका संबंध केवल अंतःकरण से होने के कारण इनको अंतरंग कहते हैं। अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें अष्टांग योग पर विस्तृत विवेचना की गई है।

अष्टांग योग

योग के नियम एवं सावधानियां। – Rules and Precautions of Yoga.

यदि हम योग क्रियाओं से संबंधित नियम एवं सावधानियों को अपने जीवन में उतारते हैं तो हमारे जीवन में होने वाली कई प्रकार की कठिनाईयों का हल अपने आप ही हो जाता है।अगर आप इन कुछ सरल नियमों का पालन करेंगे, तो अवश्य ही आपको योग अभ्यास का पूरा लाभ मिलेगा। अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें योग के नियम एवं सावधानियां पर विस्तृत विवेचना की गई है।

योग के नियम एवं सावधानियां।

 

👉 यह भी पढ़ें :-

 

योग के उद्देश्य। – Objectives of Yoga.

योग के प्रमुख उद्देश्य :-

योग के लाभ/महत्व। – Benefits/Importance of Yoga.

FAQs

Ques 1. योग की परिभाषा क्या है?
Ans. हमारे सनातन धर्म,बौद्ध धर्म और महर्षियों के अनुसार YOGA की परिभाषा कुछ इस प्रकार है।

1. महर्षि पतंजलि के अनुसार

2. महर्षि वेदव्यास के अनुसार

3. भागवत गीता के अनुसार

4. बौद्ध धर्म के अनुसार

Ques 2. योग क्या है योग कितने प्रकार के होते हैं?
Ans. YOGA क्या है :-

YOGA के प्रकार

  1. कर्मयोग
  2. ज्ञानयोग
  3. भक्तियोग
  4. राजयोग
  5. हठयोग
  6. कुंडलिनी/लययोग

Ques 3. योग का अर्थ क्या है?
Ans. YOGA का अर्थ :-

Ques 4. योग की शुरुआत कब हुई?
Ans. YOGA का इतिहास :-

Ques 5. योग के नियम क्या है?
Ans. YOGA के नियम :-

अगर आप इन कुछ सरल नियमों का पालन करेंगे, तो अवश्य ही आपको YOGA अभ्यास का पूरा लाभ मिलेगा।

Ques 6. योग के उद्देश्य क्या हैं?
Ans. YOGA के उद्देश्य :-

Ques 7. योग के महत्व क्या हैं?
Ans. YOGA के महत्व :-

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