हेलो दोस्तों INDIA TODAY ONE blog में आपका स्वागत है। इस लेख में हम नाभि पीड़ासन के बारे में जानेंगे। नाभि पीड़ासन क्या है, नाभि पीड़ासन करने का सही तरीका, नाभि पीड़ासन करने के फायदे और सावधानियों के बारे में जानकारी देंगे।
नाभि पीड़ासन का शाब्दिक अर्थ।
- नाभि पीड़ासन एक संस्कृत भाषा का शब्द हैं। नाभि पीड़ासन तीन शब्दों से मिलकर बना है। “नाभि” का अर्थ पेट पर एक गहरा निशान होती है, जो नवजात शिशु से गर्भनाल को अलग करने के कारण बनती है। तथा “पीड” का अर्थ दबाव डालना होता है। और “आसन” जिसका अर्थ होता है मुद्रा।
नाभि पीड़ासन करने का सही तरीका।
नाभि पीड़ासन करने की विधि।
विधि।
- सर्वप्रथम अपने आसन पर प्रसन्न मन से बैठें।
- अब अपने दोनों पैरों को सामने की तरफ सीधा फैला लें।
- बद्ध कोणासन के समान ही अपने दोनों पैरों को घुटनों से मोड़ कर पैरों के पंजों को आपस में मिला लें। (चित्रानुसार)
- अपने दोनों हाथों से दोनों पंजों को पकड़ें और उनको अंदर की तरफ़ खींचते हुए नाभि के पास लगा लें। (चित्रानुसार)
- चूँकि इस आसन के अभ्यास के दौरान घुटने ऊपर उठ जाएँगें अतः पूरा भार नितम्ब पर आएगा। इसलिए संतुलन बनाने की कोशिश करते हुए अपनी क्षमता अनुसार इस आसन को करें।
श्वास का क्रम।
- इस आसन के अभ्यास के दौरान पैरों को ऊपर उठाते समय अंतःकुंभक करें।
- वापस मूल स्थिति में आते समय रेचक करें। 4 से 5 बार यथाशक्ति करें।
समय।
- इस आसन का अभ्यास 4-5 बार अपनी क्षमता अनुसार करें।
नाभि पीड़ासन करने के फायदे।
नाभि पीड़ासन का नियमित अभ्यास करने के फायदे।
- इस आसन के अभ्यास से नितम्ब, घुटनों, टखनो की संधियों में अच्छा खिंचाव लगता है। और नितम्ब, घुटनों, टखनो की संधियों को लचीला बनाता है।
- इस आसन के अभ्यास से नितम्ब व पैरों की मांसपेशियों में खिंचाव लगता है जिससे कड़ापन दूर होता है।
- हाथ व पैरों को बल मिलता है।
- यह उदर प्रदेश के आंतरिक अंगों की शिथिलता को दूर करता है। उदर-क्षेत्र के अवयवों को सक्रिय करता है तथा पाचन तंत्र (Digestive System) में सुधार होता है।
- कब्ज या अपच जैसी पेट से जुड़ी समस्याएं नहीं होती।
- यह आसन मस्तिष्क को तनाव मुक्त करता है।
- वीर्य वाहिनी नसें पुष्ट होती हैं।
- आत्म उत्थान के साथ जीवन में संतुलन का क्रमशः विकास होता है।
- प्राण की गति बराबर होती है और यदाकदा सुषुम्ना में भी उसकी गति होने लगती है।
सावधानियां।
- यह उच्च स्तर के अभ्यास है। इसलिए इस आसन का अभ्यास करते समय विशेष सावधानी रखें।
- जिनके घुटनों, टखनो और पैरों के जोड़ों में लचीलापन और मजबूती हो, वे ही इस आसन का अभ्यास करें।
- कटिस्नायुशूल (sciatica), स्लिप-डिस्क, घुटनों के जोड़ों के रोगी इस आसन का अभ्यास न करें।
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सारांश।
योग करना अच्छी आदत है। कभी भी जल्दी फायदे पाने के चक्कर में शरीर की क्षमता से अधिक योगाभ्यास करने की कोशिश न करें। योगासनों का अभ्यास किसी भी वर्ग विशिष्ट के लोग कर सकते हैं।
नाभि पीड़ासन, इस योगासन के नियमित अभ्यास से शरीर से सम्बंधित बीमारियों को दूर करने में मदद मिलती है। किन्तु हमारी मंत्रणा यही है कि कभी भी किसी अनुभवी योगाचार्य या योग विशेषज्ञ (yoga Expert) की मदद के बिना मुश्किल योगासनों का अभ्यास या आरंभ न करें। किसी योग शिक्षक की देखरेख में ही मुश्किल योगासनों का अभ्यास करें। इसके अलावा अगर कोई गंभीर बीमारी हो तो योगासन का आरंभ करने से पहले डॉक्टर या अनुभवी योगाचार्य की सलाह जरूर लें।
FAQs
Ques 1. नाभि पीड़ासन करने की विधि?
Ans. नाभि पीड़ासन करने की विधि।
- सर्वप्रथम अपने आसन पर प्रसन्न मन से बैठें।
- अब अपने दोनों पैरों को सामने की तरफ सीधा फैला लें।
- बद्ध कोणासन के समान ही अपने दोनों पैरों को घुटनों से मोड़ कर पैरों के पंजों को आपस में मिला लें। (चित्रानुसार)
- अपने दोनों हाथों से दोनों पंजों को पकड़ें और उनको अंदर की तरफ़ खींचते हुए नाभि के पास लगा लें। (चित्रानुसार)
- चूँकि इस आसन के अभ्यास के दौरान घुटने ऊपर उठ जाएँगें अतः पूरा भार नितम्ब पर आएगा। इसलिए संतुलन बनाने की कोशिश करते हुए अपनी क्षमता अनुसार इस आसन को करें।
Ques 2. नाभि पीड़ासन करने के क्या फायदे है?
Ans. नाभि पीड़ासन का नियमित अभ्यास करने के फायदे।
- इस आसन के अभ्यास से नितम्ब, घुटनों, टखनो की संधियों में अच्छा खिंचाव लगता है। और नितम्ब, घुटनों, टखनो की संधियों को लचीला बनाता है।
- इस आसन के अभ्यास से नितम्ब व पैरों की मांसपेशियों में खिंचाव लगता है जिससे कड़ापन दूर होता है।
- हाथ व पैरों को बल मिलता है।
- यह उदर प्रदेश के आंतरिक अंगों की शिथिलता को दूर करता है। उदर-क्षेत्र के अवयवों को सक्रिय करता है तथा पाचन तंत्र (Digestive System) में सुधार होता है।
- कब्ज या अपच जैसी पेट से जुड़ी समस्याएं नहीं होती।
- यह आसन मस्तिष्क को तनाव मुक्त करता है।
- वीर्य वाहिनी नसें पुष्ट होती हैं।
- आत्म उत्थान के साथ जीवन में संतुलन का क्रमशः विकास होता है।
- प्राण की गति बराबर होती है और यदाकदा सुषुम्ना में भी उसकी गति होने लगती है।