हेलो दोस्तों INDIA TODAY ONE blog में आपका स्वागत है। इस लेख में हम भस्त्रिका प्राणायाम पर चर्चा करेंगे।
भस्त्रिका का अर्थ है धौंकनी। इस प्राणायाम में सांस लेने और छोड़ने की गति तीव्र और शक्तिशाली होती है। साँस लेते समय एक प्रकार की ध्वनि निकलती है जिसकी तुलना हम लोहार की धौंकनी की ध्वनि से कर सकते हैं।
जैसे लोहार धौंकनी में हवा भरता है, उसी प्रकार नाक के द्वारा वायु को वक्ष स्थल व उदर में भरें। ऐसा बीस बार करें और कुंभक के माध्यम से वायु अंदर रोकें, फिर नासिका छिद्रों से उसी प्रकार वायु बाहर निकालें जैसे लोहार की धौंकनी से वायु निकलती है। इसे भस्त्रिका कुंभक कहा जाता है। ऐसा नियम के अनुसार तीन बार करें। इससे किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं होती है और धीरे-धीरे स्वास्थ्य में सुधार होता है।
इस लेख में भस्त्रिका प्राणायाम के आसन को करने का तरीका और इस आसन के अभ्यास से होने वाले फायदों के बारे में बताया गया है। साथ में यह भी बताया गया है कि भस्त्रिका प्राणायाम करने के दौरान क्या सावधानी बरतें।
भस्त्रिका प्राणायाम करने का सही तरीका।
भस्त्रिका प्राणायाम करने की विधि।
भस्त्रिका प्राणायाम को करने की दो विधियां हैं।
प्रथम विधि।
- सर्वप्रथम पद्मासन में बैठें।
- अब दाएं नासिका द्वार को बंद करके बाएँ नासिका द्वार से तेजी गति से श्वास ले और इसी प्रकार श्वास छोड़ें करें। यह क्रम लगभग 20 बार करें।
- अब यही क्रिया दाएं नासिका द्वार से करें।
- ध्यान रखें कि इस अभ्यास में रेचक पूरक एक लय में होना चाहिए।
- उदर क्षेत्र का विस्तार और संकुचन सुचारू और समान होना चाहिए। यह एक चक्र पुरा हुआ।
- इस प्रकार 3 चक्र पूरे करें।
- इसके पश्चात जालंधर बंध और मूल बंध का प्रयोग करें।
द्वितीय विधि।
- भस्त्रिका प्राणायाम कि द्वितीय विधि के लिए सुखासन में बैठें।
- इस विधि में दोनों नासिका छिद्रों से गहरी और पूरी ताकत के साथ सांस लें और बाहर भी पूरी ताकत से सांस छोड़ें।
- यह क्रिया 20 बार करें।
- इसके तत्पश्चात् अंतः कुंभक करके जालंधर बंध और मूल बंध (सुविधानुसार) का अभ्यास करें।
- यह एक चक्र हुआ।
- इस प्रकार इस विधि को तीन बार करें।
ध्यान देने योग्य बात।
- अपने स्वास्थ्य के अनुसार श्वास गति मंद, मध्यम व तीव्र गति से करें।
- अभ्यास के दौरान श्वास अंदर लेते समय सकारात्मक सोचें एवं सांस छोड़ते समय सोचें कि शरीर और मन के विकार बाहर निकल रहे हैं।
- कुंडलिनी जागरण के साधक वज्रासन में बैठकर भस्त्रिका प्राणायाम करते हैं।
समय।
- अपने स्वास्थ्य के अनुसार 5-10 मिनट तक करें।
भस्त्रिका प्राणायाम का अभ्यास करने के लिए इस वीडियो की मदद लें।
भस्त्रिका प्राणायाम करने के फायदे।
भस्त्रिका प्राणायाम का नियमित अभ्यास करने के फायदे।
- इसके अभ्यास से शरीर से विजातीय और विषैले तत्व बाहर निकल जाते हैं। जिसके फलस्वरूप रक्त में शुद्धता और शारीरिक स्वास्थ्य बढ़ता है।
- फेफड़े मजबूत होते हैं।
- पेट के अंगों, यकृत, प्लीहा और पाचन तंत्र की ग्रंथियों की क्रियाशक्ति बढ़ती है। पाचन तंत्र (Digestive System) मज़बूत बनता है। और पाचन तंत्र (Digestive System) में सुधार होता है।
- दमा (Asthma) और क्षय रोग (Tuberculosis disease) का शमन होता है।
- यह वात, पित्त और कफ का नाश करने वाला तथा कुण्डलिनी जागृत करने वाला आसन है।
- यह गले के रोगों में लाभकारी है और कफ को दूर करता है।
- साइनस और टॉन्सिल में भी फायदेमंद।
सावधानियां।
- इसे पूरी जागरूकता के साथ करें।
- blood pressure and heart disease से पीड़ित व्यक्ति तीव्र गति से इस आसन का अभ्यास न करें।
- एक चक्र पूरा करने के बाद ही आराम करें।
- कमजोर फेफड़े वाले लोगों को इस आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
- यदि आप किसी भी समय थकान, चिंता या परेशानी महसूस करते हैं तो प्राणायाम का अभ्यास बंद कर दें।
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सारांश।
योग करना अच्छी आदत है। कभी भी जल्दी फायदे पाने के चक्कर में शरीर की क्षमता से अधिक योगाभ्यास करने की कोशिश न करें। योगासनों का अभ्यास किसी भी वर्ग विशिष्ट के लोग कर सकते हैं।
भस्त्रिका प्राणायाम, इस योगासन के नियमित अभ्यास से शरीर से सम्बंधित बीमारियों को दूर करने में मदद मिलती है। किन्तु हमारी मंत्रणा यही है कि कभी भी किसी अनुभवी योगाचार्य या योग विशेषज्ञ (yoga Expert) की मदद के बिना मुश्किल योगासनों का अभ्यास या आरंभ न करें। किसी योग शिक्षक की देखरेख में ही मुश्किल योगासनों का अभ्यास करें। इसके अलावा अगर कोई गंभीर बीमारी हो तो योगासन का आरंभ करने से पहले डॉक्टर या अनुभवी योगाचार्य की सलाह जरूर लें।
FAQs
Ques 1. भस्त्रिका प्राणायाम करने की विधि?
Ans. भस्त्रिका प्राणायाम को करने की दो विधियां हैं।
प्रथम विधि।
- सर्वप्रथम पद्मासन में बैठें।
- अब दाएं नासिका द्वार को बंद करके बाएँ नासिका द्वार से तेजी गति से श्वास ले और इसी प्रकार श्वास छोड़ें करें। यह क्रम लगभग 20 बार करें।
- अब यही क्रिया दाएं नासिका द्वार से करें।
- ध्यान रखें कि इस अभ्यास में रेचक पूरक एक लय में होना चाहिए।
- उदर क्षेत्र का विस्तार और संकुचन सुचारू और समान होना चाहिए। यह एक चक्र पुरा हुआ।
- इस प्रकार 3 चक्र पूरे करें।
- इसके पश्चात जालंधर बंध और मूलबंध का प्रयोग करें।
द्वितीय विधि।
- भस्त्रिका प्राणायाम कि द्वितीय विधि के लिए सुखासन में बैठें।
- इस विधि में दोनों नासिका छिद्रों से गहरी और पूरी ताकत के साथ सांस लें और बाहर भी पूरी ताकत से सांस छोड़ें।
- यह क्रिया 20 बार करें।
- इसके तत्पश्चात् अंतः कुंभक करके जालंधर बंध और मूल बंध (सुविधानुसार) का अभ्यास करें।
- यह एक चक्र हुआ।
- इस प्रकार इस विधि को तीन बार करें।
Ques 2. भस्त्रिका प्राणायाम करने के क्या फायदे है?
Ans. भस्त्रिका प्राणायाम का नियमित अभ्यास करने के फायदे।
- इसके अभ्यास से शरीर से विजातीय और विषैले तत्व बाहर निकल जाते हैं। जिसके फलस्वरूप रक्त में शुद्धता और शारीरिक स्वास्थ्य बढ़ता है।
- फेफड़े मजबूत होते हैं।
- पेट के अंगों, यकृत, प्लीहा और पाचन तंत्र की ग्रंथियों की क्रियाशक्ति बढ़ती है। पाचन तंत्र (Digestive System) मज़बूत बनता है। और पाचन तंत्र (Digestive System) में सुधार होता है।
- दमा (Asthma) और क्षय रोग (Tuberculosis disease) का शमन होता है।
- यह वात, पित्त और कफ का नाश करने वाला तथा कुण्डलिनी जागृत करने वाला आसन है।
- यह गले के रोगों में लाभकारी है और कफ को दूर करता है।
- साइनस और टॉन्सिल में भी फायदेमंद।
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