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    महाबंध मुद्रा करने की विधि, फायदे और सावधानियां – Maha Bandha in Hindi.1

    महाबंध
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    हेलो दोस्तों INDIA TODAY ONE blog में आपका स्वागत है। इस लेख में हम महाबंध पर चर्चा करेंगे। हम आपको महाबंध कि विशेषता, महाबंध करने का सही तरीका, महाबंध करने के फायदे और सावधानियों के बारे में जानकारी देंगे।

    महाबंध करने का सही तरीका।

    महाबंध करने की विधि।

    महाबंध

    विधि।

    • सर्वप्रथम अभ्यास के लिए ध्यान के किसी भी आसन में बैठें, परंतु मुख्यतः सिद्ध योगी आसन में ही बैठें। 
    • इसमें तीनों बंध एक साथ लगाने पड़ते हैं। (मूल बंध, उड्डियान बंध और जालंधर बंध)
    • अब श्वास लें। 
    • सबसे पहले जालंधर बंध लगाएँ फिर उड्डियान बंध और इसके पश्चात मूल बंध लगाएँ।
    • समस्त चक्रों पर क्रमशः मूलाधार से सहस्त्रार तक ध्यान लगाएँ। 
    • अब मूलाधार से सहस्रार तक क्रमशः सभी चक्रों पर ध्यान केन्द्रित करें। 
    • अब अपनी सुविधानुसार उसी स्थिति में रहें।
    • अब क्रमशः मूल बंध, उड्डीयान बंध और फिर जालंधर बंध खोलें। 
    • अब धीरे-धीरे सांस लें और मूल स्थिति में आने के बाद यही क्रम दोहराएं। 
    • उपरोक्त तीनों बंधों का अभ्यास अच्छी तरह हो जाने के बाद ही यह बंध लगाएँ।
    • ध्यान उपरोक्त तीनों बंधों (मूल बंध, उड्डियान बंध और जालंधर बंध) का भली-भांति अभ्यास हो जाने के बाद ही इस बंध को लगाएं।

    श्वास का क्रम/समय।

    • श्वास का क्रम और समय ऊपर विधि में बताया गया हैं।

    दिशा।

    • आध्यात्मिक लाभ हेतु अभ्यास के दौरान अपना मुख पूर्व या उत्तर कि और रखें। और पूर्व या उत्तर दिशा मुख करके अभ्यास करने से विशेष एवं जल्दी लाभ प्राप्त होते हैं।

    महाबंध का अभ्यास करने के लिए इस वीडियो की मदद लें।

    महाबंध करने के फायदे।

    महाबंध का नियमित अभ्यास करने के फायदे।

    • उपरोक्त तीन बंधों (मूल बंध, उड्डियान बंध और जालंधर बंध) के सभी लाभ इस महा बंध के अभ्यास से मिलते हैं।
    • महाबंध अभ्यास अद्भुत है कुण्डली जागरण के लिए। 
    • इस आसन को लगाने से मन शिव स्थिति में पहुँच जाता है। 
    • महा बंध का नियमित अभ्यास करने से अनेक सिद्धियाँ स्वतः ही प्राप्त हो जाती हैं।
    • गंगा, जमुना, सरस्वती के संगम की तरह ही तीनों नाड़ियों (इडा, पिंगला और सुषुम्ना) का संगम होता है।
    • वीर्य बल की रक्षा हेतु श्रेष्ठ है।

    👉 यह भी पढ़ें।

    सारांश।

    योग करना अच्छी आदत है। कभी भी जल्दी फायदे पाने के चक्कर में शरीर की क्षमता से अधिक  योगाभ्यास करने की कोशिश न करें। योगासनों का अभ्यास किसी भी वर्ग विशिष्ट के लोग कर सकते हैं। 

    महाबंध, इस योगासन के नियमित अभ्यास से शरीर से सम्बंधित बीमारियों को दूर करने में मदद मिलती है। किन्तु हमारी मंत्रणा यही है कि कभी भी किसी अनुभवी योगाचार्य या योग विशेषज्ञ (yoga Expert) की मदद के बिना मुश्किल योगासनों का अभ्यास या आरंभ न करें। किसी योग शिक्षक की देखरेख में ही मुश्किल योगासनों का अभ्यास करें। इसके अलावा अगर कोई गंभीर बीमारी हो तो योगासन का आरंभ करने से पहले डॉक्टर या अनुभवी योगाचार्य की सलाह जरूर लें

     

    FAQs

     

    Ques 1. महाबंध करने की विधि?

    Ans. महाबंध करने की विधि।

    • र्वप्रथम अभ्यास के लिए ध्यान के किसी भी आसन में बैठें, परंतु मुख्यतः सिद्ध योगी आसन में ही बैठें। 
    • इसमें तीनों बंध एक साथ लगाने पड़ते हैं। (मूल बंध, उड्डियान बंध और जालंधर बंध)
    • अब श्वास लें। 
    • सबसे पहले जालंधर बंध लगाएँ फिर उड्डियान बंध और इसके पश्चात मूल बंध लगाएँ।
    • समस्त चक्रों पर क्रमशः मूलाधार से सहस्त्रार तक ध्यान लगाएँ। 
    • अब मूलाधार से सहस्रार तक क्रमशः सभी चक्रों पर ध्यान केन्द्रित करें। 
    • अब अपनी सुविधानुसार उसी स्थिति में रहें।
    • अब क्रमशः मूल बंध, उड्डीयान बंध और फिर जालंधर बंध खोलें। 
    • अब धीरे-धीरे सांस लें और मूल स्थिति में आने के बाद यही क्रम दोहराएं। 
    • उपरोक्त तीनों बंधों का अभ्यास अच्छी तरह हो जाने के बाद ही यह बंध लगाएँ।
    • ध्यान उपरोक्त तीनों बंधों (मूल बंध, उड्डियान बंध और जालंधर बंध) का भली-भांति अभ्यास हो जाने के बाद ही इस बंध को लगाएं।

     

    Ques 2. महाबंध करने के क्या फायदे  है?

    Ans. महाबंध का नियमित अभ्यास करने के फायदे।

    • उपरोक्त तीन बंधों (मूल बंध, उड्डियान बंध और जालंधर बंध) के सभी लाभ इस महाबंध के अभ्यास से मिलते हैं।
    • महाबंध अभ्यास अद्भुत है कुण्डली जागरण के लिए। 
    • इस आसन को लगाने से मन शिव स्थिति में पहुँच जाता है। 
    • महाबंध का नियमित अभ्यास करने से अनेक सिद्धियाँ स्वतः ही प्राप्त हो जाती हैं।
    • गंगा, जमुना, सरस्वती के संगम की तरह ही तीनों नाड़ियों (इडा, पिंगला और सुषुम्ना) का संगम होता है।
    • वीर्य बल की रक्षा हेतु श्रेष्ठ है।

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