हेलो दोस्तों INDIA TODAY ONE blog में आपका स्वागत है। इस लेख में हम मूल बंध व्यायाम पर चर्चा करेंगे। मूल बंध कि विशेष बात क्या है, मूल बंध करने का सही तरीका, मूल बंध करने के फायदे और सावधानियों के बारे में जानकारी देंगे।
मूल बंध का शाब्दिक अर्थ।
- मूल बंध का अर्थ:- मूल का अर्थ होता है जड़, आधार या बुनियाद। बंध का अर्थ बंधन अर्थात् एक को दूसरे से बाँधना, मिलाना। योग में मूल बंध का सम्बंध मूलाधार चक्र से है, जो कि गुदा और जननेन्द्रिय (genitals) के बीच स्थित होता है।
मूल बंध करने का सही तरीका।
मूल बंध करने की विधि।
विधि।
- मूल बंद अभ्यास के लिए सर्वप्रथम पद्मासन या सिद्धासन में बैठ जाइए।
- अब अपनी हथेलियों को घुटनों पर रखिए तथा ध्यान की अवस्था में बैठ जाए।
- सिर, गर्दन और मेरुदण्ड एक सीध में व नेत्र बंद रखें और अपना ध्यान मूलाधार चक्र पर।
- अब नासिका के माध्यम से श्वास ले। अंतःकुंभक लगाए। और इसी के साथ जालंधर बंध लगाए।
- अब जननेन्द्रिय (genitals) भाग और गुदा के छिद्रों को सिकोड़ कर ऊपर की ओर खींचे। (जैसे आपने गाय, भैस आदि जानवर को मल त्यागने के पश्चात् देखा होगा कि वह किस प्रकार गुदा के छिद्रों को अंदर की तरफ खींचते हैं) वैसे ही आपको भी अपने गुदा के छिद्रों और मूलाधार चक्र क्षेत्र को ऊपर कि ओर खींचना है। यही मूलबंध की अंतिम अवस्था है।
- अब अपनी क्षमता अनुसार रुकिए। अधोभाग डीला कीजिए व सिर ऊपर उठाइए एवं श्वास को बाहर छोड़िए।
- इस व्यायाम को बाहिकुंभक की स्थिति में भी किया जा सकता है।
- 5-10 बार अनुकूलता अनुसार कीजिए।
ध्यान देने योग्य बात।
- आसन करते समय ध्यान रखें कि एड़ी का दबाव गुदा भाग पर पड़े।
- गलत व्यायाम के कारण शारीरिक कमजोरी और पौरुष शक्ति में कमी आने की संभावना रहेगी। अश्विनी मुद्रा का अभ्यास करने से साधक शीघ्र ही मूलबंध पर निपुणता प्राप्त कर लेता है।
श्वास का क्रम/समय।
- श्वास का क्रम और समय ऊपर विधि में बताया गया है।
दिशा।
- आध्यात्मिक लाभ हेतु अभ्यास के दौरान अपना मुख पूर्व या उत्तर कि और रखें। और पूर्व या उत्तर दिशा मुख करके अभ्यास करने से विशेष एवं जल्दी लाभ प्राप्त होते हैं।
मूल बंध का अभ्यास करने के लिए इस वीडियो की मदद लें।
मूल बंध करने के फायदे।
मूल बंध का नियमित अभ्यास करने के फायदे।
- कुंडली जागरण एवं ब्रह्मचर्य साधने में सहायक।
- ऊर्जा शक्ति को ऊर्ध्वमुखी बनाता है। फलस्वरूप चेहरे की कांति, ओज, तेज, बल और वीर्य में वृद्धि होती है। जिससे बूढ़ा आदमी भी जवान जैसा दिखने लगता है और उसी के समान कार्य करने की क्षमता आ जाती है।
- जननांगों (genital organs) के विकार दूर होते हैं।
- मूल बंध के निरंतर अभ्यास से प्राण, अपान, नाद और बिंदु एक हो जाते हैं। जिससे योग सिद्धि और ईश्वर (परमात्मा) की प्राप्ति होती है।
- मूल बंध के अभ्यास से जालंधर बंध के सभी लाभ भी मिलते हैं।
- मूल बंध के अभ्यास से गुदा संबंधी विकार दूर होते हैं जैसे दस्त, गुदा का बाहर निकलना आदि ठीक हो जाते हैं।
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सारांश।
योग करना अच्छी आदत है। कभी भी जल्दी फायदे पाने के चक्कर में शरीर की क्षमता से अधिक योगाभ्यास करने की कोशिश न करें। योगासनों का अभ्यास किसी भी वर्ग विशिष्ट के लोग कर सकते हैं।
मूल बंध, इस योगासन के नियमित अभ्यास से शरीर से सम्बंधित बीमारियों को दूर करने में मदद मिलती है। किन्तु हमारी मंत्रणा यही है कि कभी भी किसी अनुभवी योगाचार्य या योग विशेषज्ञ (yoga Expert) की मदद के बिना मुश्किल योगासनों का अभ्यास या आरंभ न करें। किसी योग शिक्षक की देखरेख में ही मुश्किल योगासनों का अभ्यास करें। इसके अलावा अगर कोई गंभीर बीमारी हो तो योगासन का आरंभ करने से पहले डॉक्टर या अनुभवी योगाचार्य की सलाह जरूर लें।
FAQs
Ques 1. मूल बंध करने की विधि?
Ans. मूल बंध करने की विधि।
- मूल बंद अभ्यास के लिए सर्वप्रथम पद्मासन या सिद्धासन में बैठ जाइए।
- अब अपनी हथेलियों को घुटनों पर रखिए तथा ध्यान की अवस्था में बैठ जाए।
- सिर, गर्दन और मेरुदण्ड एक सीध में व नेत्र बंद रखें और अपना ध्यान मूलाधार चक्र पर।
- अब नासिका के माध्यम से श्वास ले। अंतःकुंभक लगाए। और इसी के साथ जालंधर बंध लगाए।
- अब जननेन्द्रिय (genitals) भाग और गुदा के छिद्रों को सिकोड़ कर ऊपर की ओर खींचे। (जैसे आपने गाय, भैस आदि जानवर को मल त्यागने के पश्चात् देखा होगा कि वह किस प्रकार गुदा के छिद्रों को अंदर की तरफ खींचते हैं) वैसे ही आपको भी अपने गुदा के छिद्रों और मूलाधार चक्र क्षेत्र को ऊपर कि ओर खींचना है। यही मूलबंध की अंतिम अवस्था है।
- अब अपनी क्षमता अनुसार रुकिए। अधोभाग डीला कीजिए व सिर ऊपर उठाइए एवं श्वास को बाहर छोड़िए।
- इस व्यायाम को बाहिकुंभक की स्थिति में भी किया जा सकता है।
- 5-10 बार अनुकूलता अनुसार कीजिए।
Ques 2. मूल बंध करने के क्या फायदे है?
Ans. मूल बंध का नियमित अभ्यास करने के फायदे।
- कुंडली जागरण एवं ब्रह्मचर्य साधने में सहायक।
- ऊर्जा शक्ति को ऊर्ध्वमुखी बनाता है। फलस्वरूप चेहरे की कांति, ओज, तेज, बल और वीर्य में वृद्धि होती है। जिससे बूढ़ा आदमी भी जवान जैसा दिखने लगता है और उसी के समान कार्य करने की क्षमता आ जाती है।
- जननांगों (genital organs) के विकार दूर होते हैं।
- मूल बंध के निरंतर अभ्यास से प्राण, अपान, नाद और बिंदु एक हो जाते हैं। जिससे योग सिद्धि और ईश्वर (परमात्मा) की प्राप्ति होती है।
- मूल बंध के अभ्यास से जालंधर बंध के सभी लाभ भी मिलते हैं।
- मूल बंध के अभ्यास से गुदा संबंधी विकार दूर होते हैं जैसे दस्त, गुदा का बाहर निकलना आदि ठीक हो जाते हैं।