• Fri. Nov 22nd, 2024

    INDIA TODAY ONE

    Knowledge

    वातायनासन करने की विधि, फायदे और सावधानियां – Vatayanasana in hindi.1

    Byashwanisihag986

    Jan 16, 2024
    वातायनासन
    WhatsApp Group Join Now
    Telegram Group Join Now

    भारत के महान योग गुरुओं और तपस्वियों ने मनुष्य के जीवन में संतुलन बनाने के लिए कई योगासनों का निर्माण किया है। इन्हीं योगासनों में से एक प्रमुख आसन वातायनासन हैं। 

    इसलिए, इस लेख में हम  वातायनासन के बारे में जानेंगे। वातायनासन क्या है, वातायनासन करने का सही तरीका, वातायनासन करने के फायदे और सावधानियों के बारे में जानकारी देंगे। 

    वातायनासन का शाब्दिक अर्थ।

    • वातायनासन एक संस्कृत भाषा का शब्द हैं। वातायनासन दो शब्दों से मिलकर बना है वातायन+आसन जिसमें पहला शब्द “वातायन” का अर्थ  है। “घोड़ा” और दूसरा शब्द “आसन” जिसका अर्थ होता है “मुद्रा”। अश्व की मुखाकृति जैसा होने के कारण इसका नाम वातायनासन पड़ा है। इस आसन को english में “Horse Face Pose” कहते हैं।

    वातायनासन करने का सही तरीका।

    वातायनासन करने की विधि।

    वातायनासन

    विधि।

    • सर्वप्रथम अपने आसन पर ताड़ासन की स्थिति में खड़े हो जाएँ। 
    • अब बाएँ पैर को मोड़कर दाहिनी जाँघ के ऊपर रखें।
    • अब दोनों हाथों को सीने के ऊपर नमस्कार जैसी स्थिति में रखें। (कुछ योगाचार्य दोनों हाथों को आपस में लपेटने जैसी स्थिति बनवाते हैं)। (चित्रनुसार)
    • जिस जाँघ के ऊपर पैर रखा हुआ है उस पैर को धीरे-धीरे घुटनों से मोड़ते हुए ज़मीन की तरफ़ लाएँ। और यदि हो सके तो बाएँ घुटने को ज़मीन से स्पर्श करा दें। (चित्रनुसार) प्रारंभ में हाथों का सहारा लें सकते।
    • अपनी क्षमता अनुसार इसी मुद्रा में रूके रहे।
    • यही क्रम पैर बदल कर करें। और उतने ही समय तक करें जितना समय पहले लगाया था।

    ध्यान।

    • संतुलन बनाते हुए अपना ध्यान अनाहत चक्र पर केंद्रित करें।

    श्वास का क्रम।

    • एक पैर पर खड़े रहने पर पूरक करें। 
    • पूर्ण अवस्था में कुंभक करें।
    • वापस मूल अवस्था में आते समय रेचक करें।

    समय।

    • अपनी क्षमता अनुसार रूके रहे।

    वातायनासन का अभ्यास करने के लिए इस वीडियो की मदद लें।

    वातायनासन करने के फायदे।

    वातायनासन का नियमित अभ्यास करने के फायदे।

    • जो ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं उन्हें यह आसन अवश्य करना चाहिए।
    • ऋषि-मुनि एवं योगियों को यह आसन अधिक प्रिय होता है। क्योंकि यह ओज, तेज को ऊर्ध्वमुखी करता है। जिससे ब्रह्मचर्य की रक्षा होती है एवं व्यक्ति काम-वासना की सोच से मुक्त होता है।
    • काम-विकार नष्ट होता है।
    • इसके अभ्यास में पैरों को अच्छा खिंचाव मिलता है जिस पैरों की मांसपेशियां मजबूत एवं लचीली बनती हैं। 
    • यह आसन गठिया (Arthritis) रोग से निजात दिलाता है।
    • नितम्ब और जाँघों की छोटी-मोटी बीमारियों का नाश होता है।
    • अंडकोश और प्रजनन स्थान पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

    👉 यह भी पढ़ें 

    सारांश।

    योग करना अच्छी आदत है। कभी भी जल्दी फायदे पाने के चक्कर में शरीर की क्षमता से अधिक  योगाभ्यास करने की कोशिश न करें। योगासनों का अभ्यास किसी भी वर्ग विशिष्ट के लोग कर सकते हैं। 

    वातायनासन, इस योगासन के नियमित अभ्यास से शरीर से सम्बंधित बीमारियों को दूर करने में मदद मिलती है। किन्तु हमारी मंत्रणा यही है कि कभी भी किसी अनुभवी योगाचार्य या योग विशेषज्ञ (yoga Expert) की मदद के बिना मुश्किल योगासनों का अभ्यास या आरंभ न करें। किसी योग शिक्षक की देखरेख में ही मुश्किल योगासनों का अभ्यास करें। इसके अलावा अगर कोई गंभीर बीमारी हो तो योगासन का आरंभ करने से पहले डॉक्टर या अनुभवी योगाचार्य की सलाह जरूर लें

     

    FAQs

     

    Ques 1. वातायनासन करने की विधि?

    Ans. वातायनासन करने की विधि।

    • सर्वप्रथम अपने आसन पर ताड़ासन की स्थिति में खड़े हो जाएँ। 
    • अब बाएँ पैर को मोड़कर दाहिनी जाँघ के ऊपर रखें।
    • अब दोनों हाथों को सीने के ऊपर नमस्कार जैसी स्थिति में रखें। (कुछ योगाचार्य दोनों हाथों को आपस में लपेटने जैसी स्थिति बनवाते हैं)। (चित्रनुसार)
    • जिस जाँघ के ऊपर पैर रखा हुआ है उस पैर को धीरे-धीरे घुटनों से मोड़ते हुए ज़मीन की तरफ़ लाएँ। और यदि हो सके तो बाएँ घुटने को ज़मीन से स्पर्श करा दें। (चित्रनुसार) प्रारंभ में हाथों का सहारा लें सकते।
    • अपनी क्षमता अनुसार इसी मुद्रा में रूके रहे।
    • यही क्रम पैर बदल कर करें। और उतने ही समय तक करें जितना समय पहले लगाया था।

     

    Ques 2. वातायनासन करने के क्या फायदे  है?

    Ans. वातायनासन का नियमित अभ्यास करने के फायदे।

    • जो ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं उन्हें यह आसन अवश्य करना चाहिए।
    • ऋषि-मुनि एवं योगियों को यह आसन अधिक प्रिय होता है। क्योंकि यह ओज, तेज को ऊर्ध्वमुखी करता है। जिससे ब्रह्मचर्य की रक्षा होती है एवं व्यक्ति काम-वासना की सोच से मुक्त होता है।
    • काम-विकार नष्ट होता है।
    • इसके अभ्यास में पैरों को अच्छा खिंचाव मिलता है जिस पैरों की मांसपेशियां मजबूत एवं लचीली बनती हैं। 
    • यह आसन गठिया रोग से निजात दिलाता है।
    • नितम्ब और जाँघों की छोटी-मोटी बीमारियों का नाश होता है।
    • अंडकोश और प्रजनन स्थान पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    error: Content is protected !!

    Discover more from INDIA TODAY ONE

    Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

    Continue reading