हेलो दोस्तों INDIA TODAY ONE blog में आपका स्वागत है। इस आर्टिकल में हम सिद्धासन योगासन के बारे में जानकारी देंगे।
योग भारत की प्राचीन विधा है। इतिहास की दृष्टि से यह व्यक्त करना अत्यंत कठिन होगा कि विश्व में योग विद्या का आविर्भाव कब, कैसे और कहाँ से हुआ। यदि हम प्राचीन ग्रंथों पर नज़र डालें तो योग विद्या का उल्लेख वेदों और जैन धर्म के ग्रंथों में मिलता है। अतः कह सकते हैं कि योग विद्या की परंपरा प्राचीन काल से ही चली आ रही है। महान योग गुरुओं और तपस्वियों ने योग को हजारों साल की कठिन तपस्या के बाद निर्मित किया है। आज शरीर और मन की ऐसी कोई भी समस्या नहीं है जिसका हल योग के पास न हो। इस ज्ञान को अब वैज्ञानिक मान्यता भी मिल चुकी है।
आज लोगों का मानना है कि महर्षि पतंजलि ने योग का निरूपण किया जबकि योग के प्रथम गुरु भगवान शिव ही हैं। महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग का प्रतिपादन किया जो कि यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान तथा समाधि के रूप में गृहीत है।
योगाभ्यास के दौरान शरीर को कई बार आध्यात्मिक अनुभव भी होते हैं। ये अनुभव किसी भी इंसान के जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं। योग आपके जीवन को नई दिशा देता है, योग आपको खुद से मिलाने की ही एक यात्रा है।
भारत के महान योग गुरुओं और तपस्वियों ने मनुष्य के जीवन में संतुलन बनाने के लिए कई योगासनों का निर्माण किया है। इन्हीं योगासनों में से एक प्रमुख आसन सिद्धासन हैं।
इसलिए, इस लेख में हम सिद्धासन के बारे में जानेंगे। सिद्धासन क्या है, सिद्धासन करने का सही तरीका, सिद्धासन करने के फायदे और सावधानियों के बारे में जानकारी देंगे। और साथ में हम योग करने के नियम, योग के प्रमुख उद्देश्य और योग का हमारे जीवन में क्या महत्व हैं इसके बारे में भी जानेंगे।
सिद्धासन का शाब्दिक अर्थ।
- सिद्धासन से ही नाम से ही ज्ञात हो रहा है कि यह आसन सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाला है, इसलिए इसे सिद्धासन कहा जाता है।
सिद्धासन करने का सही तरीका।
सिद्धासन करने की विधि।
- सर्वप्रथम अपने आसन पर प्रसन्न मन से सुखासन में बैठ जाएँ।
- अब बाएँ पैर के तलवे को दाहिनी जाँघ से इस प्रकार लगाएँ की एड़ी आपके गुदा और अंडकोश के बीच के भाग को छूने लगे।
- अब दाहिने पैर की अंगुलियों को बाईने पैर की पिंडली और जाँघ के बीच फँसाएँ। तथा दाहिने पैर की एड़ी को जननांग और पैल्विक हड्डी के बीच दबाव डालते हुए रखें।
- मेरुदण्ड, गर्दन व सिर सीधा रखें। तथा हाथों को घुटनों पर ज्ञान मुद्रा की स्थिति में रखें।
- ठोड़ी को हृदय प्रदेश के ऊपर कंठकूप (larynx) में स्थिर करें।
- दृष्टि भौं (eyebrows) के मध्य रखें एवं तनाव रहित होकर बैठें।
- पैरों की स्थिति बदलकर पुनः यही अभ्यास करें।
ध्यान।
- समस्त चक्रों का ध्यान करें और इस आसन को करते समय मन में यह भावना रखें कि आपके समस्त चक्र जागृत हो रहे हैं, आत्मा शुद्ध होती जा रही है। एवं गुरु द्वारा प्रदत्त या अपने इष्ट देव या ॐ के मंत्र का जाप करें।
श्वासक्रम।
- प्राणायाम के साथ या श्वास सामान्य रखें।
समय।
- (अनुकूलतानुसार) इस योगासन को आप अपनी क्षमता के अनुसार कर सकते हैं
दिशा।
- पूर्व या उत्तर (आध्यात्मिक लाभ हेतु)।
मंत्रोच्चारण।
- गुरु द्वारा प्रदत्त या अपने इष्ट देव या ॐ के मंत्र का जाप करें।
सिद्धासन का अभ्यास करने के लिए इस वीडियो की मदद लें।
सिद्धासन करने के फायदे।
सिद्धासन का नियमित अभ्यास करने के फायदे।
- चेतना को ऊर्ध्वमुखी बनाने के लिए यह आसन उपयुक्त है अर्थात् सभी साधकों और ब्रह्मचारियों को यह आसन अवश्य करना चाहिए।
- प्राणायाम और ध्यान के लिए यह आसन अवश्य करना चाहिए। मेडिटेशन के लिए सबसे अच्छा आसन हैं।
- इस आसन से दृढ़ इच्छा शक्ति का विकास होता है।
- इस आसन को 50-60 मिनट तक प्रतिदिन करने से सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।
- यह आसन कुण्डलिनी शक्ति जागरण में विशेष सहायक।
- योग शास्त्र के अनुसार मनुष्य के शरीर में 7 मुख्य चक्र हैं जिनका नाम- मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्ध चक्र, आज्ञा चक्र, सहस्त्रार चक्र है। जिनको सिद्धासन के अभ्यास से सक्रिय किया जा सकता है लेकिन यह लाभ तब प्राप्त होता है जब आप इस आसन का अभ्यास लंबी अवधि के लिए किया जाता है।
- सिद्धासन का अभ्यास करने से मन शांत रहता है, मन की चंचलता को दूर करता है, शरीर में सकारात्मक ऊर्जा (positive energy) का संचार होता है और सकारत्मक सोच बढ़ती है।
- गुदा संबंधी रोग समाप्त होते हैं तथा काम-वासना का नाश होता है।
- सिद्धासन का प्रतिदिन अभ्यास करने से पुरुषों में यौन रोग (venereal disease) दूर होता है।
- इसके अभ्यास से उदर क्षेत्र (जिसमें आमाशय (पेट), यकृत, पित्ताशय, तिल्ली, अग्न्याशय, आन्त्र (क्षुद्रान्त्र और बृहदान्त्र दोनों), गुर्दे और अधिवृक्क ग्रंथि जैसे महत्वपूर्ण अंग स्थित होते हैं।) को भरपूर लाभ मिलता है।
- सिद्धासन के अभ्यास से घुटनों और टखनों में खिंचाव लगता है और यह मज़बूत बनाते है।
- इस आसन को करने पर पैरों में रक्त संचार कम हो जाता है जिस कारण उदर एवं कटि प्रदेश में रक्त की मात्रा बढ़ जाती है। इस प्रकार इन दोनों अंगों से संबंधित सभी रोगों में लाभ मिलने लगता है।
- सिद्धासन का अभ्यास करने से घुटनों और कूल्हों के जोड़ों में लचीलापन बढ़ाता है।
- यह आसन श्रोणि (श्रोणि पेट का सबसे निचला हिस्सा है। आपके श्रोणि के अंगों में आपकी आंत्र, मूत्राशय, गर्भ (गर्भाशय) और अंडाशय शामिल हैं।) को उत्तेजित करता है।
- पाचन क्रिया में सुधार होता है
- 10-15 मिनिट तक बैठकर ध्यान करने से अपने स्थान से हटी हुई नाभि ठीक हो जाती है।
- इस आसन का नियमित अभ्यास करने से साधक की 72,000 नाड़ियाँ शुद्ध होती हैं।
सावधानियां।
- अपनी क्षमता से अधिक देर तक या ज़बर्दस्ती न बैठें।
- अगर आप के घुटनों में दर्द हें तो पहले पवनमुक्तासन संबंधी क्रियाओं को करें।
- साइटिका और कमर या घुटनों के तीव्र दर्द से पीड़ित व्यक्ति यथासंभव नियमित व धैर्यपूर्वक अभ्यास करें।
- योगाभ्यास करते समय मेरुदण्ड, गर्दन व सिर सीधे रखें।
- पैरों की स्थिति बदलकर अवश्य करें ताकि शरीर के अंगो का विकास समान रूप से हो।
👉 यह भी पढ़ें
- योग क्या हैं – परिभाषा, अर्थ, प्रकार, महत्व, उद्देश्य और इतिहास।
- खाली पेट पानी पीने के 15 फ़ायदे।
- एक दिन में कितना पानी पीना चाहिए।
योग के नियम एवं सावधानियां
अगर आप इन कुछ सरल नियमों का पालन करेंगे, तो अवश्य ही आपको योग अभ्यास का पूरा लाभ मिलेगा।
योगाभ्यास का क्रम
- किसी अनुभवी योगाचार्य या योग विशेषज्ञ (yoga Expert) की देख-रेख में ही योगासन एवं योग की क्रियाओं का अभ्यास आरंभ करना चाहिए।
- किसी योग शिक्षक की देख रेख में ही मुश्किल योगासनों का अभ्यास करें।
- किसी भी योगासन को करें, परंतु पुनः मूल अवस्था में लौटते समय क्रिया का क्रम विपरीत ही होना चाहिए।
- योगासन व योग की क्रियाओं का अभ्यास करते समय संपूर्ण ध्यान अभ्यास पर ही केंद्रित रखें।
- योग स्व-अर्थ (self-meaning) की क्रिया है अर्थात् जीतना ध्यान पूर्वक अभ्यास करेंगे उतना ही अच्छा लाभ मिलेगा।
- योगाभ्यास करते समय इस बात का ध्यान रखें की जो योगासनों व योग क्रियाओं की समय-सीमा और गति तय है। उसी अनुपात में योगाभ्यास करें, अन्यथा लाभ की जगह हानि भी हो सकती हैं।
- अष्टांग योग के अंग :- यम नियम के पालन पर विशेष ध्यान दें।
- किसी भी योगासन व योग की क्रियाओं को एकदम से नहीं करना चाहिए। पहले आसान व हल्के व्यायाम, सूक्ष्म आसन, स्थूल आसन या पवनमुक्तासन से संबंधित आसनों को करें ताकि शरीर की जकड़न समाप्त हो और शरीर नरम बने एवं मांसपेशियों में लचीलापन आए।
- किसी भी आसन को करने के लिए जबर्दस्ती न करें। प्रतिदिन योगासनों का अभ्यास करने से आसन स्वतः ही सरल होने लगते है।
- योगासन या योग की किसी भी क्रिया के अंत में हमेशा शवासन करें। शवासन करने से अभ्यास क्रिया में आया हुआ किसी भी प्रकार का तनाव दूर होकर प्रसन्नता का एहसास होता है।
- अगर कोई आसन सामने की तरफ झुक कर करने वाला है तो थोड़े विश्राम के बाद पीछे की तरफ झुकने वाला आसन करें।
- प्राणायाम हमेशा आसन अभ्यास करने के बाद करें।
- अगर कोई मेडिकल तकलीफ़ हो तो पहले डॉक्टर से ज़रूर सलाह करें।
स्नान
- योगाभ्यास करने से पहले स्नान ज़रूर करें। और योगाभ्यास करने के बाद 1 घंटे तक न नहायें।
- योगाभ्यास से पूर्व एवं योगाभ्यास के बाद स्वच्छ एवं शीतल जल से स्नान करें (ऋतु एवं अवस्था अनुसार)।
वस्त्र
- योगासन करते समय ज्यादा टाइट कपड़े न पहनें टाइट कपड़े पहनकर योगासन करने में दिक्कत आती है।
- योगाभ्यास के समय ढीले-ढाले, आरामदायक, सूती एवं सुविधाजनक वस्त्रों का ही प्रयोग करें।
- पुरुष साधकों को योगाभ्यास के समय कच्छा या लंगोट अवश्य पहनना चाहिए।
- आसन के लिए कंबल या दरी का प्रयोग करें।
स्थान
- योगाभ्यास के लिए स्थान साफ़-सुथरा और मन को प्रसन्न करने वाला शांत वातावरण होना चाहिए। (जैसे बाग-बगीचे)
- यदि आप कमरे में योगाभ्यास कर रहे हों तो खिड़की एवं दरवाजे खोल लें।
- योगाभ्यास का स्थान समतल होना चाहिए। उबड़-खाबड़ न हो।
ध्यान
- योगासन व योग से संबंधित क्रियाओं को करते समय मन को चिंता, क्रोध, घृणा, ईर्ष्या, भय, अहंकार, प्रतिशोध की भावना आदि उद्वेगों से पूर्णतः मुक्त रखें।
- तन की तरह मन भी स्वच्छ होना चाहिए योग करने से पहले सब बुरे ख़याल दिमाग़ से निकाल दें। और अपना पूरा ध्यान अपने योग अभ्यास पर ही केंद्रित रखें।
- योग अभ्यास धैर्य और दृढ़ता से करें।
- धीरज रखें और निरंतर योग अभ्यास जारी रखें योग के लाभ महसूस होने मे वक़्त लगता है।
- वह रोग जिसके लिए आप योग क्रियाएं कर रहे हैं, अभ्यास करते समय उसके लिए सकारात्मक चिंतन करें कि वह रोग ठीक हो रहा है।
श्वासक्रम
- किसी भी योगासन या योग की क्रिया को करते समय श्वास-प्रश्वास के प्रति सजगता बनाए रखें।
- योगाभ्यास के समय श्वास हमेशा नासिका द्वार से ही भरें, मुख से नहीं।
- प्रत्येक योगासन का अपना एक श्वास क्रम होता है। उसका अवश्य ध्यान रखें।
समय
- योगाभ्यास के लिए प्रातः सूर्योदय का समय अच्छा माना जाता है।
- प्रातः सूर्योदय के समय सूर्य से निकलने वाली ऊर्जा हमें नवीन ताकत देती है क्योंकि वह ऊर्जा जीवन को संचार प्रदान करने वाली होती है।
- प्रातःकाल सूर्योदय के समय योगाभ्यास करने से व्यक्ति दिनभर अपने आप को तरोताज़ा और स्फूर्ति महसूस करता है। अतः वह दिनभर प्रसन्नचित्त होकर प्रत्येक कार्य करता है।
- निश्चित समय और निश्चित स्थान पर योगाभ्यास अधिक प्रभावशाली एवं लाभप्रद होता है।
- योगाभ्यास करते समय इस बात का ध्यान रखें की जो योगासनों व योग क्रियाओं की समय-सीमा और गति तय है। उसी अनुपात में योगाभ्यास करें, अन्यथा लाभ की जगह हानि भी हो सकती हैं।
दिशा
- प्रार्थना आदि करते समय उत्तर-पूर्व दिशा का चयन करें।
- बैठकर किए जाने वाले योगासनों में मुख की दिशा उत्तर या पूर्व की और रखें।
- लेटकर किए जाने वाले योगासनों में पैरों की दिशा उत्तर या पूर्व की और रखें।
- खड़े होकर किए जाने वाले आसनों में मुख पूर्व की तरफ़ रखें।
- दिशा का महत्त्व इसलिए भी है कि इससे हमारी चेतना ऊर्ध्वमुखी होती है। एवं योगासनों के साथ-साथ कई लाभ स्वतः प्राप्त हो जाते हैं।
नेत्र
- यदि आप ने योग करना अभी प्रारंभ किया है तो प्रारंभ में नेत्र बंद न करें। योगासनों का अभ्यास हो जाने के बाद ही नेत्रों को बंद रखें, परंतु मन को निष्क्रिय और चंचल न होने दें।
- नेत्रों को बंद रखते हुए भी योगासन व योग की क्रियाओं के प्रति मस्तिष्क को सजग रखें। अपना पूरा ध्यान अपने योग अभ्यास पर ही केंद्रित रखें।
आहार
- शरीर को फुर्तीला, चुस्त-दुरुस्त और सुंदर बनाने के लिए जितना महत्त्व हम योग को देते हैं, उतना ही महत्त्व हमें आहार को भी देना चाहिए।
- योगाभ्यास से कुछ समय पहले एक ग्लास ठंडा एवं ताजा पानी पी सकते हैं। यह सन्धि स्थलों का मल निकालने में अत्यंत सहायक होता है।
- योगासनों के अभ्यास से पहले मूत्राशय एवं आंतें रिक्त होना चाहिए।
- साधक को बहुत ज़्यादा खट्टा, तीखा, तामसी, बासा एवं देर से पचने वाले आहार का सेवन नहीं करना चाहिए।
- साधक को तामसिक भोजन जैसे अंडा, मछली, मांस आदि का त्याग कर देना चाहिए। क्योंकि “जैसा खाओ अन्न, वैसा बने मन”।
- इस बात को आज के वैज्ञानिक भी मानते हैं कि हमारा भोजन सात्विक, शाकाहारी, शुद्ध, ताजा एवं बिना देर से पचने वाला नहीं होना चाहिए। बहुत ज़्यादा खट्टा, तीखा, तामसी, बासा एवं देर से पचने वाला भोजन हमारे पाचन तंत्र को प्रभावित करते। जिससे हमारा स्वास्थ्य बिगड़ता है।
- साधक को नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। (जैसे :- शराब, गांजा, भांग, तम्बाकू, बीड़ी, सिगरेट, आदि)
- योगासन व योग की क्रिया खाली पेट करें और भोजन करने के कम से कम 4-5 घंटे बाद ही योगाभ्यास क्रिया करें। एवं योग करने के 30 मिनिट बाद तक कुछ ना खायें।
- यदि किसी को कब्ज़ की शिकायत हो तो किसी अनुभवी योगाचार्य या योग विशेषज्ञ (yoga Expert) की देख-रेख में शंखप्रक्षालन की क्रिया करें।
- यदि ज्यादा कब्ज की शिकायत ना हो तो योगाभ्यास से यह रोग दूर हो जाता है। किन्तु शखप्रक्षालन की क्रिया वर्ष में कम से कम एक या दो बार अवश्य करनी चाहिए।
आयु व अवस्था
- योगाभ्यास के लिए योग में आयु सीमा का कोई निर्धारण नहीं है किन्तु व्यक्ति को अपनी उम्र, अवस्था, अभ्यास आदि समझकर विवेक का उपयोग करना चाहिए।
रोगी के लिए
- योगासन व योग से संबंधित क्रियाएँ तो होती ही हैं रोगों को दूर कर एक अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करने के लिए परंतु रोगी उस योगासन को न करें जिससे उनकी पीड़ा अथवा रोग की तीव्रता बढ़ती हो। जैसे उच्च रक्तचाप के रोगी शीर्षासन या सर्वांगासन आदि न करें।
योगाभ्यास के दौरान विशेष बातें का ध्यान रखें।
- योगासन पूर्णतः विवेक का उपयोग करते हुए ही करें।
- योगासन करते समय पूर्ण विश्वास, धैर्य और सकारात्मक विचार रखें।
- योगासन करते समय मन में ईर्ष्या, क्रोध, जलन, द्वेष एवं खिन्नता का भाव ना रखें।
- नशीले पदार्थों का सेवन ना करें एवं गंदी मानसिकता न रखें।
- किसी अनुभवी योगाचार्य या योग विशेषज्ञ (yoga Expert) की मदद के बिना मुश्किल योगासनों का अभ्यास या आरंभ न करें। किसी योग शिक्षक की देखरेख में ही मुश्किल योगासनों का अभ्यास करें।
- गरिष्ठ भोजन, माँसाहार, अत्यधिक वासना एवं देर रात तक जागने जैसी आदतों का त्याग करें।
योग के प्रमुख उद्देश्य
योग के उद्देश्य :-
- तनाव से मुक्त जीवन
- मानसिक शक्ति का विकास करना
- प्रकृति के विपरीत जीवन शैली में सुधार करना
- निरोगी काया
- रचनात्मकता का विकास करना
- मानसिक शांति प्राप्त करना
- सहनशीलता में वृद्धि करना
- नशा मुक्त जीवन
- वृहद सोच
- उत्तम शारीरिक क्षमता का विकास करना
योग के लाभ/महत्व
- रोज सुबह उठकर योग का अभ्यास करने से अनेक फायदे हैं योग मन, मस्तिष्क, ध्यान और शरीर के सभी अंगो का एक संतुलित वर्कआउट है जो आपके सोच-विचार करने की शक्ति व मस्तिष्क के कार्यों को बढ़ाता है तनाव को कम करता है।
- योग मन को अनुशासित करता है।
- जहां जीम व एक्सरसाइज आदि से शरीर के किसी विशेष अंग का विकास या व्यायाम हो पाता है वही योग करने से शरीर के समस्त अंगों का, ज्ञानेंद्रियों, इंद्रियों, ग्रंथियों का विकास और व्यायाम होता है जिससे शरीर के समस्त अंग सुचारू रूप से कार्य करते हैं।
- प्रतिदिन योग करने से शरीर निरोगी बनता है।
- योग का प्रयोग शारीरिक,मानसिक,बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास के लिए हमेशा से होता आ रहा है आज की चिकित्सा शोधों व डॉक्टरों ने यह साबित कर दिया है कि YOGA शारीरिक और मानसिक रूप से मानव जाति के लिए वरदान है।
- योग एकाग्रता को बढ़ाता है। प्रतिदिन योग करने से हमारी अपने लक्ष्य के प्रति एकाग्रता बढ़ती है।
- प्रतिदिन योगासन करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ती है शरीर स्वस्थ, निरोगी और बलवान बनता है।
- योग के द्वारा आंतरिक शक्ति का विकास होता है।
- योग से ब्लड शुगर का लेवल स्थिर रहता है। ब्लड शुगर घटने व बढने की समस्या नहीं होती है।
- योग कोलेस्ट्रोल की मात्रा को कम करता है।
- योग ज्ञानेंद्रियों, इंद्रियों को जागृत करता है।
- योग डायबिटीज रोगियों के लिए फायदेमंद है।
- योगासनों के नित्य अभ्यास से शरीर की सभी मांसपेशियों का अच्छा विकास व व्यायाम होता है जिससे तनाव दूर होता है
- अच्छी नींद आती है भूख अच्छी लगती है पाचन तंत्र सही रहता है।
- योगासनों के नित्य अभ्यास से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। बहुत सी स्टडीज में साबित यह हो चुका है कि अस्थमा, हाई ब्लड प्रेशर व डायबिटीज के मरीज योग द्वारा पूर्ण रूप से स्वस्थ होते हैं।
- कुछ योगासनों और मेडिटेशन के द्वारा अर्थराइटिस, कमर में दर्द, घुटनों में दर्द जोड़ों में दर्द आदि दर्द मे काफी सुधार होता है। गोली-दवाइयों की आवश्यकता कम हो जाती है।
- योग बच्चों के लिए बहुत फायदेमंद है। योगासनों के नित्य अभ्यास से बच्चों में मानसिक, शारीरिक और बौद्धिक शक्ति का विकास होता है। जो बच्चे पढ़ाई में कमजोर है वह भी मेडिटेशन के द्वारा पढ़ाई में सर्वश्रेष्ठ हो सकते है अपनी एकाग्रता में सुधार कर सकते है।
सारांश
योग करना अच्छी आदत है। कभी भी जल्दी फायदे पाने के चक्कर में शरीर की क्षमता से अधिक योगाभ्यास करने की कोशिश न करें। योगासनों का अभ्यास किसी भी वर्ग विशिष्ट के लोग कर सकते हैं।
सिद्धासन, इस योगासन के नियमित अभ्यास से शरीर से सम्बंधित बीमारियों को दूर करने में मदद मिलती है। किन्तु हमारी मंत्रणा यही है कि कभी भी किसी अनुभवी योगाचार्य या योग विशेषज्ञ (yoga Expert) की मदद के बिना मुश्किल योगासनों का अभ्यास या आरंभ न करें। किसी योग शिक्षक की देखरेख में ही मुश्किल योगासनों का अभ्यास करें। इसके अलावा अगर कोई गंभीर बीमारी हो तो योगासन का आरंभ करने से पहले डॉक्टर या अनुभवी योगाचार्य की सलाह जरूर लें।
FAQ
Ques 1. सिद्धासन करने के क्या फायदे है?
Ans. सिद्धासन का नियमित अभ्यास करने के फायदे।
- चेतना को ऊर्ध्वमुखी बनाने के लिए यह आसन उपयुक्त है अर्थात् सभी साधकों और ब्रह्मचारियों को सिद्धासन अवश्य करना चाहिए।
- प्राणायाम और ध्यान के लिए यह आसन अवश्य करना चाहिए। मेडिटेशन के लिए सबसे अच्छा आसन हैं।
- इस आसन से दृढ़ इच्छा शक्ति का विकास होता है।
- सिद्धासन को 50-60 मिनट तक प्रतिदिन करने से सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।
- यह आसन कुण्डलिनी शक्ति जागरण में विशेष सहायक।
- योग शास्त्र के अनुसार मनुष्य के शरीर में 7 मुख्य चक्र हैं जिनका नाम- मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्ध चक्र, आज्ञा चक्र, सहस्त्रार चक्र है। जिनको सिद्धासन के अभ्यास से सक्रिय किया जा सकता है लेकिन यह लाभ तब प्राप्त होता है जब आप इस आसन का अभ्यास लंबी अवधि के लिए किया जाता है।
- सिद्धासन का अभ्यास करने से मन शांत रहता है, मन की चंचलता को दूर करता है, शरीर में सकारात्मक ऊर्जा (positive energy) का संचार होता है और सकारत्मक सोच बढ़ती है।
- सिद्धासन का अभ्यास करने से गुदा संबंधी रोग समाप्त होते हैं तथा काम-वासना का नाश होता है।
- सिद्धासन का प्रतिदिन अभ्यास करने से पुरुषों में यौन रोग (venereal disease) दूर होता है।
- सिद्धासन अभ्यास से उदर क्षेत्र (जिसमें आमाशय (पेट), यकृत, पित्ताशय, तिल्ली, अग्न्याशय, आन्त्र (क्षुद्रान्त्र और बृहदान्त्र दोनों), गुर्दे और अधिवृक्क ग्रंथि जैसे महत्वपूर्ण अंग स्थित होते हैं।) को भरपूर लाभ मिलता है।
- सिद्धासन के अभ्यास से घुटनों और टखनों में खिंचाव लगता है और यह मज़बूत बनाते है।
- इस आसन को करने पर पैरों में रक्त संचार कम हो जाता है जिस कारण उदर एवं कटि प्रदेश में रक्त की मात्रा बढ़ जाती है। इस प्रकार इन दोनों अंगों से संबंधित सभी रोगों में लाभ मिलने लगता है।
- सिद्धासन का अभ्यास करने से घुटनों और कूल्हों के जोड़ों में लचीलापन बढ़ाता है।
- सिद्धासन श्रोणि (श्रोणि पेट का सबसे निचला हिस्सा है। आपके श्रोणि के अंगों में आपकी आंत्र, मूत्राशय, गर्भ (गर्भाशय) और अंडाशय शामिल हैं।) को उत्तेजित करता है।
- पाचन क्रिया में सुधार होता है
- 10-15 मिनिट तक बैठकर ध्यान करने से अपने स्थान से हटी हुई नाभि ठीक हो जाती है।
- इस आसन का नियमित अभ्यास करने से साधक की 72,000 नाड़ियाँ शुद्ध होती हैं।