इस लेख में हम योग पर चर्चा करेंगे। योग का इतिहास, योग की परिभाषा, योग क्या है? योग का क्या अर्थ है? योग कितने प्रकार के होते हैं? योग का उद्देश्य क्या है? योग के क्या फायदे हैं? और अष्टांग योग से संबंधित सारी जानकारी और योग से जुड़े इन सभी सवालों के जवाब इस लेख में जानेंगे।
योग का इतिहास। – History of Yoga in Hindi.
ऐतिहासिक दृष्टि से योग-विद्या का प्रादुर्भाव विश्व में कब, कैसे और कहाँ हुआ, यह बता पाना अत्यंत कठिन होगा। यदि प्राचीन ग्रंथों पर नजर डालें तो योग-विद्या का उल्लेख वेदों और जैन धर्म के ग्रंथों में मिलता है। अत: यह कहा जा सकता है कि योग-विद्या की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है।
योग-विद्या का प्रचलन उस समय से प्रचलित है। जब योग से संबंधित ज्ञान लिपिबद्ध नहीं किया जाता था बल्कि यह योग-गुरुओं के द्वारा मुख के माध्यम से एक आचार्य से दूसरे आचार्य तथा अन्य शिष्यों तक प्रसारित कि जाती था। योग-विद्या की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है। ऐसा माना जाता है कि जब से सभ्यता आरम्भ हुई। तभी से योग किया जा रहा है। अर्थात् प्राचीनतम धर्मों व आस्थाओं के जन्म लेने से पहले ही योग-विद्या का जन्म हो चुका था। योग-विद्या में भगवान शिव को “आदि योगी” तथा “आदि गुरू” माना जाता है।
भगवान शंकर के बाद वैदिक ऋषि-मुनियों से ही योग-विद्या का प्रारम्भ माना जाता है। बाद में कृष्ण, महावीर और महात्मा बुद्ध ने अपनी तरह से योग को परिभाषित किया। इसके पश्चात महर्षि पतंजलि ने इसे सुव्यवस्थित रूप दिया। जिससे हम अष्टांग-योग के नाम से जानते है। फिर इस रूप को ही आगे चलकर सिद्धपंथ, शैवपंथ, नाथपंथ, वैष्णव और शाक्त पंथियों ने अपने-अपने तरीके से विस्तारित किया।
योग-विद्या से सम्बन्धित सबसे प्राचीन ऐतिहासिक साक्ष्य सिन्धु घाटी सभ्यता से प्राप्त वस्तुएँ से मिले हैं जिनकी शारीरिक मुद्राएँ और आसन उस काल में योग-विद्या के अस्तित्व के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। योग-विद्या के इतिहास पर यदि हम दृष्टि डालें तो इसके प्रारम्भ या अन्त का कोई ठोस प्रमाण अभी तक नही मिलता, लेकिन योग-विद्या का वर्णन सर्वप्रथम वेदों और जैन धर्म के ग्रंथों में मिलता है और वेदों और जैन धर्म के ग्रंथ को सबसे प्राचीन साहित्य माने जाते है। इसी आधार पर हम कह सकते हैं कि योग-विद्या का इतिहास बहुत प्राचीन है और योग-विद्या की शुरुआत भारत में हुई थी।
परंतु इस बातों में उलझना कि योग का आविर्भाव कब हुआ और किसने किया, यह उतना महत्त्वपूर्ण नहीं है बल्कि यह प्रश्न महत्त्वपूर्ण है कि योग-विद्या के रहस्यों को कब और किसने उजागर किया।
आज के लोगों का मानना हैं कि महर्षि पतंजलि ने योग का निर्माण किया जबकि योग के प्रथम गुरु भगवान शिव को माना जाता हैं। कुछ लोगों का मानना है कि पतंजलि योग दर्शन की रचना हिरण्य-गर्भ द्वारा लिखित योग सूत्रों के आधार पर की गई थी, जो अब लुप्त हो गए हैं। महर्षि पतंजलि ने केवल अष्टांग योग का प्रतिपादन किया जो यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि के रूप में गृहीत है।
योग कई हज़ार वर्षों से संसार में अपना वर्चस्व बनाए हुए है। इसने विश्व के सभी धर्मों को अनुप्राणित किया और मानव जाति को सही दिशा की ओर अग्रसर किया। योग वास्तव में एक ‘सार्वभौम् विश्व मानव धर्म’ है।
योग क्या है? – What is Yoga in Hindi?
योग सही ढंग से जीवन जीने का विज्ञान है। इसलिए इसे दैनिक जीवन में शामिल किया जाना चाहिए। यह हमारे जीवन से जुड़े शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक आदि सभी पहलुओं पर काम करता है।
योग क्या है, इन कुछ प्रश्नों के माध्यम से योग को अच्छे से समझते हैं।
- योग साधक को कोनसे परिणाम प्रदान करता है?
- योग-विद्या से साधक को कौनसी नई उपलब्धियाँ प्राप्त होती है?
- योग-विद्या के माध्यम से साधक क्या-क्या छोड़ सकता है ?
- योग-विद्या के माध्यम से साधक अंततः क्या प्राप्त करता है ?
योग साधक को कोनसे परिणाम प्रदान करता है?
- यह हमें श्वास पर नियंत्रण रखना सिखाता है, श्वास पर नियंत्रण से व्यक्ति शारीरिक रूप से पुष्ट बनता है।
- मानसिक स्थिरता प्रदान करता है। जिससे हम एकाग्रतापूर्वक ध्यान कर सकते है और भावनात्मक संतुलन बनाने में मदद करता है।
- मनोवैज्ञानिक रूप से अच्छा महसूस करना, जीवन प्रसन्नचित्त होना, समाज के साथ अच्छे से जुड़ना, कल्याणकारी कार्यों के साथ संतुष्टि का आभास होना।
- योग हमें सभी शाश्वत मूल्य, सत्य, धर्म, शांति, प्रेम और अहिंसा के मार्ग पर लाता है। जो हमारे जीवन को सदैव सुखी बनाते हैं और इनका पालन करने से आध्यात्मिकता का एहसास होता है।
योग-विद्या से साधक को कौनसी नई उपलब्धियाँ प्राप्त होती है?
- योग के माध्यम से उद्देश्यपूर्ण जीवन का निर्माण होता है तथा जीवन की दिशा का निर्धारण होता है।
- इससे व्यक्ति में जागरूकता, चेतना और सतर्कता बनी रहती है। जिसके कारण वह अपने कार्यों व विचारों के प्रति जागरूक हो जाता है, वह एक जागरूक, सिद्धांतवादी और अच्छे इंसान की तरह जीवन जीता है।
- व्यक्ति योग के माध्यम से एकाग्रचित्त होता है और वह स्वयं को ईश्वर के प्रति समर्पित कर देता है और अपने अहंकार को त्याग देता है।
- योग के माध्यम से व्यक्ति में व्यवस्थित एवं योजनाबद्ध ढंग से कार्य करने की प्रवृत्ति उत्पन्न होती है।
- योग के माध्यम से व्यक्ति में सकारात्मकता, रचनात्मकता और वैराग्य की भावना उत्पन्न होती है।
योग-विद्या के माध्यम से साधक क्या-क्या छोड़ सकता है?
- योग के प्रभाव व्यक्ति में बुरी आदतें, गलत प्रवृत्तियों, नशीले पदार्थों का सेवन, विखण्डित व्यक्तित्व के कारण उत्पन्न समस्याएँ जो भी उसके शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाते हैं, वह उन सभी को छोड़ देता है।
- योग-विद्या के प्रभाव से व्यक्ति की नकारात्मक और विनाशकारी सोच धीरे-धीरे समाप्त होने लगती है और उसे स्वयं के बारे में सही ज्ञान प्राप्त होने लगता है।
- सांसारिक वस्तुओं के प्रति लगाव, धन का लालच, मान-सम्मान की इच्छा, आवश्यकताओं की पूर्ति की चिंता आदि धीरे-धीरे कम हो जाते हैं।
- वह अवांछित और अतार्किक कार्यों और विचारों को त्याग देता है, जिससे न केवल उसे नुकसान होता है बल्कि समाज का माहौल भी खराब होता है। अतः योग करने से मन की पवित्रता, निर्मलता बढ़ती है।
योग-विद्या के माध्यम से साधक को अंततः क्या प्राप्त करता है?
- योग-विद्या के माध्यम से साधक को सर्वांगीण स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। शारीरीक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। शरीर पुष्ट रहता है, मन शांत रहता है, चारों ओर से प्रसन्नता मिलती है तथा आध्यात्मिकता की प्राप्ति होती है।
- योग-विद्या के प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में कौशल का विकास होता है, जीवन गुणवत्तामय बनता है, अच्छे व्यक्ति के गुणों का जन्म होता है, हर जगह उत्कृष्टता दिखाई देती है, हर वातावरण आकर्षक होता है, जीवन लयबद्ध और दिलचस्प हो जाता है, संपूर्णता की कामना होती है, व्यक्ति का जीवन प्रेम से परिपूर्ण होता है।
- मन प्रसन्न रहता है, हर प्राणी में जीवन झलकता है, जीवन जीने में आनंद आता है, भावनाओं का आदान-प्रदान होता है।
- अंततः योग-विद्या के माध्यम से साधक को एक अच्छा जीवन एक अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त होता है।
योग की परिभाषा। – Definition of Yoga in Hindi.
हमारे सनातन धर्म, बौद्ध धर्म और महर्षियों के अनुसार योग की परिभाषा कुछ इस प्रकार है।
महर्षि पतंजलि के अनुसार :-
- “योगश्चित: वृत्ति निरोध:” :- अर्थात अभ्यास व वैराग्य द्वारा चित्त की वृत्तियों को रोकना ही योग है
- यहां चित्त की वृत्तियों से तात्पर्य है। हमारी कामना, लोभ, वासन आदि।
महर्षि वेदव्यास के अनुसार :-
- महर्षि वेदव्यास के अनुसार “योग का अर्थ समाधि” है।
भागवत गीता के अनुसार :-
- “तस्माद्दयोगाययुज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्”
- “योगः कर्मसु कौशलम्” – कर्म का कौशलरूप भी योग है अर्थात् योग से ही कर्मों में कुशलता है अर्थात् कर्म बंधनों से छूटने का उपाय है।
बौद्ध धर्म के अनुसार :-
- “कुशल चितैकाग्गता योगः” – अर्थात् कुशल चित्त की एकाग्रता योग है।
वेदान्त के अनुसार :-
- जीवात्मा और परमात्मा का संपूर्ण रूप से मिलना योग है।
- दैहिक बुद्धि को त्यागकर अर्थात् शरीर से मोह की भावना को हटाकर आत्म-बोध का विकास करना ही योग है।
योग वशिष्ठ के अनुसार :-
- “संसार सागर से पार होने की युक्ति को ही योग कहते हैं।”
योग का अर्थ। – Meaning of Yoga in Hindi.
संस्कृत में योग शब्द की व्युत्पत्ति “युज” से मानी गई है। योग शब्द “युज” धातु के बाद करण और भाव वाच्य में धञ प्रत्यय लगाने से बना है। योग शब्द का सामान्य अर्थ है जुड़ना, एकजुट करना, युक्त होना, एकीकृत करना या एकत्र करना।
योग एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है। जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने का काम होता है। ‘योग’ शब्द तथा इसकी प्रक्रिया और धारणा हिन्दू धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म में ध्यान प्रक्रिया से सम्बन्धित है।
योग सांख्य का ही क्रियात्मक रूप है। योग एक “सार्वभौमिक विश्व धर्म” है अर्थात् योग विश्व के सभी धर्मों, सम्प्रदायों, मत-मतान्तरों के पक्षपात एवं मत-भेदों से मुक्त है। जो स्वयं के अनुभव से तत्व (आत्मा) का ज्ञान प्राप्त करना सिखाता है और साधक को उसके अंतिम लक्ष्य (मोक्ष) तक लेकर जाता है।
आज योग से जुड़ी कई तरह की भ्रांतियां फैली हुई हैं। यदि हम स्पष्ट शब्दों में समझें तो स्थूलता से सूक्ष्मता की ओर जाना तथा बहिरात्मा से अंतरात्मा की ओर जाना ही योग है। मन की प्रवृत्तियों से हम स्थूलता की ओर जाते हैं अर्थात् हम स्थिर मन के स्थान पर बहिर्मुखी हो जाते हैं। हमारा मन जितना अस्थिर होगा, रज और तम की मात्रा उतनी ही अधिक बढ़ेगी। परंतु जब हम मन को अंतरोन्मुख करते जाएँगे तब हमारे अंदर उतने ही सत्य यानी सम्यक् ज्ञान और सम्यक् दर्शन का प्रादुर्भाव होता जाएगा और आत्मदर्शन प्राप्त कर निर्विकल्प अवस्था को प्राप्त हो सकेंगे।
योग शब्द का व्यावहारिक अर्थ बहुत व्यापक है। इसका क्षेत्र भी बहुत विस्तृत है। इस प्रकार योग के विभिन्न अर्थ मिलते हैं।
योग का शाब्दिक अर्थ।
योग का शाब्दिक अर्थ है, योग शब्द की उत्पत्ति संस्कृति भाषा के “यूज” शब्द से हुई है जिसका अर्थ है जोड़ना,एक होना या बांधना। अर्थात् एक होने का अर्थ आत्मा और परमात्मा के एकीकरण से है। मनुष्य भ्रमवश, अज्ञानतावस, द्वैतभाव चित की वृत्तियो के कारण अपने आप को अर्थात् आत्मा को परमात्मा से अलग समझता है लेकिन आत्मा का परमात्मा से जुड़ना, एक होना ही योग है।
योग का वास्तविक अर्थ।
योग के अर्थ व इन परिभाषा के माध्यम से कह सकते हैं जो योग है वह एक दर्शन है जो व्यक्ति को जीवन के लक्ष्य प्राप्त करने का रास्ता दिखाता है अर्थात् जीवन में लक्ष्य प्राप्त करने में सहायता करता है योग के आठ अंग व क्रियाएं हैं। जो इस प्रकार है यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारण, ध्यान व समाधि।
योग के आठ अंग व क्रियाओं को अपनाकर व्यक्ति लोभ, मोह, कामना, वासना आदि से मुक्त हो जाता है। और व्यक्ति का अपने मन पर नियंत्रण हो जाता है। जब मन व ध्यान एक जगह केंद्रित हो जाता है। तो वह स्थिर हो जाता है और स्थिर की अवस्था को ही समाधि कहते हैं। व्यक्ति जब समाधि की अवस्था में पहुंच जाता है तो उसकी आत्मा का परमात्मा से मिलन हो जाता है और मोक्ष प्राप्ति की ओर अग्रसर होता है इसी का नाम योग है।
योग का व्यावहारिक अर्थ।
योग शब्द का व्यावहारिक अर्थ बहुत व्यापक है। इसका क्षेत्र भी बहुत विस्तृत है। और यदि आसान भाषा में समझे तो योग ही एक ऐसा साधन या माध्यम है। जिसके द्वारा व्यक्ति अपने मन, शरीर और भावनाओं पर नियंत्रण कर सकता है। और योग से शारीरिक, मानसिक व बौद्धिक शक्ति का विकास होता है।
योग के प्रकार। – Types of Yoga in Hindi.
प्राचीन ग्रंथों में योग के अनेक प्रकारों का उल्लेख किया गया है। योग प्रदीप में राज योग, अष्टांग योग, हठ योग, लय योग, ध्यान योग, भक्ति योग, क्रिया योग, मंत्र योग, कर्म योग और ज्ञान योग का उल्लेख करते हुए योग को कई प्रकार का माना गया है। भगवान् श्री कृष्ण ने तीन योगों का उपदेश दिया है – ज्ञान योग, कर्म योग, भक्ति योग।
लेकिन मुख्यत: 6 प्रकार के ही योग माने गए हैं- कर्म-योग, ज्ञान-योग, भक्ति-योग, राज-योग, हठ-योग, कुंडलिनी/लय-योग और हम इन्हीं 6 प्रकार के योगो पर चर्चा करेंगे।
- कर्मयोग
- ज्ञानयोग
- भक्तियोग
- राजयोग
- हठयोग
- कुंडलिनी/लययोग
इसके अतिरिक्त बहिरंगयोग, मंत्रयोग व स्वरयोग आदि योगो के अनेक आयामों की भी चर्चा की जाती है, लेकिन मुख्यत: 6 प्रकार के ही योग माने गए हैं।
1. कर्म-योग।
वास्तव में कर्म-योग ही वह योग है जिसके माध्यम से हम अपनी जीवात्मा से जुड़ पाते हैं। कर्मयोग हमारे आत्मज्ञान को जागृत करता है। इस योग में कर्म के द्वारा ईश्वर की प्राप्ति की जाती है। श्रीमद्भगवद्गीता में कर्म-योग को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। कर्म-योग का सीधा संबंध व्यक्ति के कर्मों से है। हमारे शास्त्र कहते हैं। कि हम इस संसार में जिस प्रकार की परिस्थितियों का सामना करते हैं। जो भी सुख या दुख हो रहे हैं। जैसा भी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। जो हमें प्राप्त हुआ है। जो हमें प्राप्त नहीं हुआ यह सभी हमारे किए गए कर्मों पर आधारित है। इसीलिए भविष्य को अच्छा बनाने के लिए हमें वर्तमान में अच्छे कर्म करने चाहिए।
2. भक्ति-योग।
भक्ति का अर्थ दिव्य प्रेम और योग का अर्थ जुड़ना है। ईश्वर, सृष्टि, प्राणियों, पशु-पक्षियों आदि के प्रति प्रेम, समर्पण भाव और निष्ठा को ही भक्ति-योग माना गया है। हर कोई किसी न किसी को अपना ईश्वर मानकर उसकी पूजा करता है, बस उसी पूजा को भक्ति-योग कहा गया है। यह भक्ति निस्वार्थ भाव से की जाती है। ताकि हम अपने उद्देश्य को सुरक्षित हासिल कर सकें भक्ति-योग में अपनी समस्त ऊर्जा व विचारों को और मन व ध्यान को भक्ति में केंद्रित करना होता है।
3. ज्ञान-योग।
योग की सबसे कठिन व प्रत्येक शाखा ज्ञान-योग है। इस योग में बुद्धि पर कार्य कर बुद्धि को विकसित किया जाता है वास्तव में जितने ज्ञानी व्यक्ति हुई है। जो स्वयं का उद्देश्य समझता है। तथा ब्रह्मचर्य का सही अर्थ जानता है वह उस परमात्मा में ध्यान केंद्रित करके ही जीवन व्यतीत करता है।
4. हठ-योग।
हठ का शाब्दिक अर्थ हठपूर्वक किसी कार्य को करने से लिया जाता है। हठ प्रदीपिका पुस्तक में हठ का अर्थ इस प्रकार दिया है। “ह” का अर्थ सूर्य तथा “ठ” का अर्थ चन्द्र बताया गया है। सूर्य और चन्द्र की समान अवस्था हठ-योग है।
हठ प्रदीपिका पुस्तक में हठ-योग के चार अंगों का वर्णन है- आसन, प्राणायाम, और बन्ध तथा नादानुसधान।
5. कुंडलिनी/लय-योग।
योग के आचार्यों ने लय या कुंडलिनी को भी ईश्वर प्राप्ति का एक साधन माना है। इसका अर्थ है- ‘‘मन को परमात्मा में लय कर देना, अर्थात् परमात्मा में लीन हो जाना’’
योग के अनुसार मानव शरीर में सात चक्र होते हैं। जब ध्यान के माध्यम से कुंडलिनी को जागृत किया जाता है, तो शक्ति जागृत होकर मस्तिष्क की ओर जाती है। इस दौरान वह सभी सातों चक्रों को क्रियाशील करती है। इस प्रक्रिया को ही कुंडलिनी/लय-योग कहा जाता है। इसमें मनुष्य बाहर के बंधनों से मुक्त होकर भीतर पैदा होने वाले शब्दों को सुनने का प्रयास करता है, जिसे नाद कहा जाता है। इस प्रकार के अभ्यास से मन की चंचलता खत्म होती है और एकाग्रता बढ़ती है
6. राज-योग।
राज का अर्थ है सम्राट इसमें व्यक्ति एक सम्राट के समान स्वाधीन होकर आत्मविश्वास के साथ कार्य करता है राजयोग आत्म अनुशासन और अभ्यास का मार्ग है। राज-योग सभी योगों का राजा कहा जाता है। इन्हें अष्टांग-योग भी कहा जाता है। राज-योग, महर्षि पतंजलि द्वारा रचित अष्टांग योग का वर्णन आता है। इसे योग सूत्र में महर्षि पतंजलि ने उल्लिखित किया है।
अष्टांग योग। – Ashtanga Yoga.
महर्षि पतंजलि ने योग के आठ प्रमुख अंग बताए हैं। जिसे अष्टांग योग कहते है। महर्षि पतंजलि कहते हैं कि ईश्वर और अपने इस जन्म के सत्य को जानने के लिए आरंभ शरीर से ही करना होगा। शरीर बदलेगा तो चित बदलेगा चित बदलेगा तो बुद्धि बदलेगी और चित पूर्ण रूप से सशक्त होता है। तभी व्यक्ति की आत्मा परमात्मा के साथ योग करने में सक्षम होती है।
वर्तमान में साधारण व्यक्ति योग के केवल तीन ही अंगों का पालन करते हैं आसन, प्राणायाम, ध्यान इनमें से ध्यान करने वाले व्यक्तियों की संख्या बहुत कम है। सामान्य लोग योग के आठों अंगो को योग प्रक्रिया में शामिल नहीं करते हैं। जिस कारण योग का संपूर्ण लाभ नहीं मिलता वास्तव में जो योगी है। वह योग के आठों अंगो का पालन करके स्वयं को ईश्वर से जोड़ते हैं।
यदि हम गहराई से देखें तो योग के यह आठ अंग कोई सामान्य कार्य नहीं करते, यह तो हमारे महान ऋषि-मुनियों की महान सोच है, उनकी बड़ी अनुकंपा है जो कि उन्होंने इसे अलग-अलग बांटकर और फिर एक सूत्र में पिरोकर हमें अवगत करा दिया क्योंकि सभी आठों अंगों के अलग-अलग कार्य हैं। जो कि हमारे हाथों और पैरों के नाखून से लेकर हमें मोक्ष तक का रास्ता बताते हैं। यह हमारे लिए और इस विश्व के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है, यह महान आत्माओं द्वारा हमें दिया गया एक बहुत बड़ा उपहार है। क्यों न हम इसे आत्मसात करें और उनके प्रति अपना आभार व्यक्त करें।
यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि योग के आठ अंग हैं। इन आठ अंगों दो भागों में बांटा गया है जिनकी दो अलग-अलग भूमिकाएँ हैं।
- बहिरंग
- अंतरंग
यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार यह पाँच अंग बहिरंग कहलाते हैं, क्योंकि इनकी विशेषता बाहर की क्रियाओं से ही सम्बंधित है। शेष तीन अंग अर्थात् धारणा, ध्यान और समाधि अंतरंग कहलाते हैं। इसका संबंध केवल अंतःकरण से होने के कारण इनको अंतरंग कहते हैं। अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें अष्टांग योग पर विस्तृत विवेचना की गई है।
अष्टांग योग |
योग के नियम एवं सावधानियां। – Rules and Precautions of Yoga.
यदि हम योग क्रियाओं से संबंधित नियम एवं सावधानियों को अपने जीवन में उतारते हैं तो हमारे जीवन में होने वाली कई प्रकार की कठिनाईयों का हल अपने आप ही हो जाता है।अगर आप इन कुछ सरल नियमों का पालन करेंगे, तो अवश्य ही आपको योग अभ्यास का पूरा लाभ मिलेगा। अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें योग के नियम एवं सावधानियां पर विस्तृत विवेचना की गई है।
योग के नियम एवं सावधानियां। |
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योग के उद्देश्य। – Objectives of Yoga.
योग के प्रमुख उद्देश्य :-
- तनाव से मुक्त जीवन।
- मानसिक शक्ति का विकास करना।
- प्रकृति के विपरीत जीवन शैली में सुधार करना।
- निरोगी काया।
- रचनात्मकता का विकास करना।
- मानसिक शांति प्राप्त करना।
- सहनशीलता में वृद्धि करना।
- नशा मुक्त जीवन।
- वृहद सोच।
- उत्तम शारीरिक क्षमता का विकास करना।
योग के लाभ/महत्व। – Benefits/Importance of Yoga.
- रोज सुबह उठकर योग का अभ्यास करने से अनेक फायदे हैं। योग मन, मस्तिष्क, ध्यान और शरीर के सभी अंगो का एक संतुलित वर्कआउट है। योग आपके सोच-विचार करने की शक्ति व मस्तिष्क के कार्यों को बढ़ाता है। तनाव को कम करता है।
- मन को अनुशासित करता है।
- जहां जीम व एक्सरसाइज आदि से शरीर के किसी विशेष अंग का विकास या व्यायाम हो पाता है। वही योग करने से शरीर के समस्त अंगों का, ज्ञानेंद्रियों, इंद्रियों, ग्रंथियों का विकास और व्यायाम होता है। जिससे शरीर के समस्त अंग सुचारू रूप से कार्य करते हैं।
- शरीर निरोगी बनता है।
- योग का प्रयोग शारीरिक,मानसिक,बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास के लिए हमेशा से होता आ रहा है आज की चिकित्सा शोधों व डॉक्टरों ने यह साबित कर दिया है। कि योग शारीरिक और मानसिक रूप से मानव जाति के लिए वरदान है।
- एकाग्रता को बढ़ाता है। प्रतिदिन योग करने से अपने लक्ष्य के प्रति एकाग्रता बढ़ती है।
- प्रतिदिन योगासन करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ती है। शरीर स्वस्थ, निरोगी और बलवान बनता है।
- योग के द्वारा आंतरिक शक्ति का विकास होता है।
- blood sugar का लेवल स्थिर रहता है। blood sugar घटने व बढने की समस्या नहीं होती है। कोलेस्ट्रोल की मात्रा को कम करता है।
- ज्ञानेंद्रियों, इंद्रियों जागृत होती है।
- डायबिटीज रोगियों के लिए फायदेमंद है।
- योगासनों के नित्य अभ्यास से शरीर की सभी मांसपेशियों का अच्छा विकास व व्यायाम होता है। जिससे तनाव दूर होता है। अच्छी नींद आती है। भूख अच्छी लगती है। पाचन तंत्र सही रहता है।
- योगासनों के नित्य अभ्यास से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। बहुत सी स्टडीज में साबित यह हो चुका है कि अस्थमा, हाई ब्लड प्रेशर व डायबिटीज के मरीज योगासनों के अभ्यास द्वारा पूर्ण रूप से स्वस्थ होते हैं।
- कुछ योगासनों और मेडिटेशन के द्वारा अर्थराइटिस, कमर में दर्द, घुटनों में दर्द जोड़ों में दर्द आदि दर्द मे काफी सुधार होता है। गोली-दवाइयों की आवश्यकता कम हो जाती है।
- योग-आसन बच्चों के लिए बहुत फायदेमंद है। योगासनों के नित्य अभ्यास से बच्चों में मानसिक, शारीरिक और बौद्धिक शक्ति का विकास होता है। जो बच्चे पढ़ाई में कमजोर है वह भी मेडिटेशन के द्वारा पढ़ाई में सर्वश्रेष्ठ हो सकते है। अपनी एकाग्रता में सुधार कर सकते है।
FAQs
Ques 1. योग की परिभाषा क्या है?
Ans. हमारे सनातन धर्म,बौद्ध धर्म और महर्षियों के अनुसार YOGA की परिभाषा कुछ इस प्रकार है।
1. महर्षि पतंजलि के अनुसार
- “योगश्चित: वृत्ति निरोध:”÷ अर्थात अभ्यास वैराग्य द्वारा चित्त की वृत्तियों को रोकना ही योग है
- यहां चित्त की वृत्तियों से तात्पर्य है। हमारी कामना, लोभ, वासन आदि।
2. महर्षि वेदव्यास के अनुसार
- महर्षि वेदव्यास के अनुसार “योग का अर्थ समाधि” है।
3. भागवत गीता के अनुसार
- “तस्माद्दयोगाययुज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्”
- योगः कर्मसु कौशलम्”÷ अर्थात् योग से ही कर्मों में कुशलता है अर्थात् कर्म बंधनों से छूटने का उपाय है।
4. बौद्ध धर्म के अनुसार
- “कुशल चितैकाग्गता योगः”÷ अर्थात् कुशल चित्त की एकाग्रता योग है।
Ques 2. योग क्या है योग कितने प्रकार के होते हैं?
Ans. YOGA क्या है :-
- YOGA शब्द “युज” से उत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ होता है- एकजुट करना या एकीकृत करना
- YOGA एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने का काम होता है। ‘योग’ शब्द तथा इसकी प्रक्रिया और धारणा हिन्दू धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म में ध्यान प्रक्रिया से सम्बन्धित है।
YOGA के प्रकार
- YOGA 6 प्रकार के हैं :-
- कर्मयोग
- ज्ञानयोग
- भक्तियोग
- राजयोग
- हठयोग
- कुंडलिनी/लययोग
- इसके अतिरिक्त बहिरंगयोग, मंत्रयोग व स्वरयोग आदि योगो के अनेक आयामों की भी चर्चा की जाती है, लेकिन मुख्यत: 6 प्रकार के ही YOGA माने गए हैं।
Ques 3. योग का अर्थ क्या है?
Ans. YOGA का अर्थ :-
- YOGA का अर्थ व्यायाम व आसन मात्र नहीं है आसन व व्यायाम तो YOGA का एक भाग है YOGA का रूप तो बहुत विस्तृत है किंतु वर्तमान में लोगों ने YOGA को केवल आसन व प्राणायाम से जोड़ दिया है वास्तव में जो योगी है वह केवल शरीर पर ध्यान नहीं देते अपितु अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करके ईश्वर के साथ जोड़ने का प्रयास करते हैं और ईश्वर में ध्यान लगाते हैं
- YOGA का प्रथम अनुभव शरीर से ही संबंधित है इसका प्रथम कार्य शरीर को स्वस्थ बनाना है YOGA आरंभ करने के कुछ दिन पश्चात व्यक्ति अपने आप को रोगमुक्त और ऊर्जावान अनुभव करने लगता है।
- इसके पश्चात YOGA के माध्यम से मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ता है अर्थात व्यक्ति की भावनाओं और विचारों की शुद्धि होना आरंभ होती है YOGA के इस अनुभव से मस्तिक से अवसाद, चिंता, नकारात्मक विचार आदि पर नियंत्रण करना संभव हो जाता है।
Ques 4. योग की शुरुआत कब हुई?
Ans. YOGA का इतिहास :-
- YOGA की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है। और इसकी उत्पत्ति हजारों वर्ष पहले हुई थी। ऐसा माना जाता है कि जब से सभ्यता आरम्भ हुई है तभी से YOGA किया जा रहा है। अर्थात प्राचीनतम धर्मों या आस्थाओं के जन्म लेने से पहले ही YOGA का जन्म हो चुका था। YOGA विद्या में शिव को “आदि योगी” तथा “आदि गुरू” माना जाता है।
- भगवान शंकर के बाद वैदिक ऋषि-मुनियों से ही YOGA का प्रारम्भ माना जाता है। बाद में कृष्ण, महावीर और बुद्ध ने इसे अपनी तरह से विस्तारित किया। इसके पश्चात पतञ्जलि ने इसे सुव्यवस्थित रूप दिया। इस रूप को ही आगे चलकर सिद्धपंथ, शैवपंथ, नाथपंथ, वैष्णव और शाक्त पंथियों ने अपने-अपने तरीके से विस्तारित किया।
- YOGA से सम्बन्धित सबसे प्राचीन ऐतिहासिक साक्ष्य सिन्धु घाटी सभ्यता से प्राप्त वस्तुएँ से हुए हैं जिनकी शारीरिक मुद्राएँ और आसन उस काल में YOGA के अस्तित्व के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। YOGA के इतिहास पर यदि हम दृष्टि डालें तो इसके प्रारम्भ या अन्त का कोई प्रमाण नही मिलता, लेकिन YOGA का वर्णन सर्वप्रथम वेदों में मिलता है और वेद ग्रंथ सबसे प्राचीन साहित्य माने जाते है। YOGA की शुरुआत भारत में हुई थी।
Ques 5. योग के नियम क्या है?
Ans. YOGA के नियम :-
अगर आप इन कुछ सरल नियमों का पालन करेंगे, तो अवश्य ही आपको YOGA अभ्यास का पूरा लाभ मिलेगा।
- किसी गुरु के निर्देशन में YOGA अभ्यास आरम्भ करें।
- सूर्योदय या सूर्यास्त के वक़्त योग का सही समय है।
- YOGA करने से पहले स्नान ज़रूर करें।
- YOGA खाली पेट करें और योग करने के 2 घंटे पहले कुछ ना खायें।
- YOGA आरामदायक सूती कपड़े पहन के करे
- तन की तरह मन भी स्वच्छ होना चाहिए YOGA करने से पहले सब बुरे ख़याल दिमाग़ से निकाल दें।
- किसी शांत वातावरण और साफ जगह में YOGA अभ्यास करें।
- अपना पूरा ध्यान अपने YOGA अभ्यास पर ही केंद्रित रखें।
- YOGA अभ्यास धैर्य और दृढ़ता से करें।
- अपने शरीर के साथ जबरदस्ती बिल्कुल ना करें।
- धीरज रखें। YOGA के लाभ महसूस होने मे वक़्त लगता है।
- निरंतर YOGA अभ्यास जारी रखें।
- YOGA करने के 30 मिनिट बाद तक कुछ ना खायें। 1 घंटे तक न नहायें।
- प्राणायाम हमेशा आसन अभ्यास करने के बाद करें।
- अगर कोई मेडिकल तकलीफ़ हो तो पहले डॉक्टर से ज़रूर सलाह करें।
- अगर तकलीफ़ बढ़ने लगे या कोई नई तकलीफ़ हो जाए तो तुरंत YOGA अभ्यास रोक दें।
- योगाभ्यास के अंत में हमेशा शवासन करें।
Ques 6. योग के उद्देश्य क्या हैं?
Ans. YOGA के उद्देश्य :-
- तनाव से मुक्त जीवन
- मानसिक शक्ति का विकास करना
- प्रकृति के विपरीत जीवन शैली में सुधार करना
- निरोगी काया
- रचनात्मकता का विकास करना
- मानसिक शांति प्राप्त करना
- सहनशीलता में वृद्धि करना
- नशा मुक्त जीवन
- वृहद सोच
- उत्तम शारीरिक क्षमता का विकास करना
Ques 7. योग के महत्व क्या हैं?
Ans. YOGA के महत्व :-
- रोज सुबह उठकर YOGA का अभ्यास करने से अनेक फायदे हैं YOGA मन, मस्तिष्क, ध्यान और शरीर के सभी अंगो का एक संतुलित वर्कआउट है जो आपके सोच-विचार करने की शक्ति व मस्तिष्क के कार्यों को बढ़ाता है तनाव को कम करता है।
- YOGA मन को अनुशासित करता है।
- जहां जीम व एक्सरसाइज आदि से शरीर के किसी विशेष अंग का विकास या व्यायाम हो पाता है वही YOGA करने से शरीर के समस्त अंगों का,ज्ञानेंद्रियों, इंद्रियों, ग्रंथियों का विकास और व्यायाम होता है जिससे शरीर के समस्त अंग सुचारू रूप से कार्य करते हैं।
- प्रतिदिन YOGA करने से शरीर निरोगी बनता है।
- YOGA का प्रयोग शारीरिक,मानसिक,बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास के लिए हमेशा से होता आ रहा है आज की चिकित्सा शोधों व डॉक्टरों ने यह साबित कर दिया है कि YOGA शारीरिक और मानसिक रूप से मानव जाति के लिए वरदान है।
- YOGA एकाग्रता को बढ़ाता है। प्रतिदिन योग करने से हमारी अपने लक्ष्य के प्रति एकाग्रता बढ़ती है।
- प्रतिदिन योगासन करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ती है शरीर स्वस्थ, निरोगी और बलवान बनता है।
- YOGA के द्वारा आंतरिक शक्ति का विकास होता है।
- YOGA से ब्लड शुगर का लेवल स्थिर रहता है। ब्लड शुगर घटने व बढने की समस्या नहीं होती है।
- YOGA कोलेस्ट्रोल की मात्रा को कम करता है।
- YOGA ज्ञानेंद्रियों, इंद्रियों को जागृत करता है।
- YOGA डायबिटीज रोगियों के लिए फायदेमंद है।
- योगासनों के नित्य अभ्यास से शरीर की सभी मांसपेशियों का अच्छा विकास व व्यायाम होता है जिससे तनाव दूर होता है अच्छी नींद आती है भूख अच्छी लगती है पाचन तंत्र सही रहता है।
- योगासनों के नित्य अभ्यास से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। बहुत सी स्टडीज में साबित यह हो चुका है कि अस्थमा, हाई ब्लड प्रेशर व डायबिटीज के मरीज YOGA द्वारा पूर्ण रूप से स्वस्थ होते हैं।
- कुछ योगासनों और मेडिटेशन के द्वारा अर्थराइटिस, कमर में दर्द, घुटनों में दर्द जोड़ों में दर्द आदि दर्द मे काफी सुधार होता है। गोली-दवाइयों की आवश्यकता कम हो जाती है।
- YOGA बच्चों के लिए बहुत फायदेमंद है। योगासनों के नित्य अभ्यास से बच्चों में मानसिक, शारीरिक और बौद्धिक शक्ति का विकास होता है। जो बच्चे पढ़ाई में कमजोर है वह भी मेडिटेशन के द्वारा पढ़ाई में सर्वश्रेष्ठ हो सकते है अपनी एकाग्रता में सुधार कर सकते है।