हेलो दोस्तों INDIA TODAY ONE blog में आपका स्वागत है। इस लेख में हम उज्जायी प्राणायाम पर चर्चा करेंगे। हम आपको उज्जायी प्राणायाम कि विशेषता, उज्जायी प्राणायाम करने का सही तरीका, उज्जायी प्राणायाम करने के फायदे और सावधानियों के बारे में जानकारी देंगे।
उज्जायी प्राणायाम करने का सही तरीका।
उज्जायी प्राणायाम करने की विधि।
विधि।
- सर्वप्रथम सिद्धासन या पद्मासन में बैठ जाइए।
- अब योगाचार्यों एवं योग गुरुओं के अनुसार मुख को बंद करके अपने दोनों नासिका द्वारों से धीरे-धीरे वायु को अन्दर कि और खींचें।
- श्वास लेते समय कण्ठ द्वार को संकुचित करें ताकि गले से हल्की ध्वनि उत्पन्न हो वह शब्द करती हुई वायु ग्रीवा (कण्ठ) से लेकर हृदय-पर्यंत तक भर जाए।
- अब बिना किसी चिंता के कुछ क्षण अंतः कुम्भक करें। एवं जालंधर बंध लगाकर निराकुलता पूर्वक यथाशक्ति वायु को धारण करें।
- इसके पश्चात अपने बाएँ नासिका द्वार से श्वास को बाहर छोड़े।
- जिस समय श्वास अन्दर खिंचें उस समय छाती फुलाइए।
- इस प्राणायाम के अभ्यास में फुफ्फुस पूरी तरह से फुल जाते है। और छाती का भाग ऊपर उठ जाता है।
श्वास का क्रम/समय।
- श्वास का क्रम ऊपर विधि में बताया गया हैं और अनुकूलतानुसार यथाशक्ति पूर्वक अभ्यास करें।
दिशा।
- आध्यात्मिक लाभ हेतु अभ्यास के दौरान अपना मुख पूर्व या उत्तर कि और रखें। और पूर्व या उत्तर दिशा मुख करके अभ्यास करने से विशेष एवं जल्दी लाभ प्राप्त होते हैं।
उज्जायी प्राणायाम का अभ्यास करने के लिए इस वीडियो की मदद लें।
उज्जायी प्राणायाम करने के फायदे।
उज्जायी प्राणायाम का नियमित अभ्यास करने के फायदे।
- उज्जायी प्राणायाम के अभ्यास से मानसिक विकार समाप्त होते हैं। अनिद्रा, चिंता, तनाव एवं उन्मादी रोगियों के लिए लाभप्रद आसन है।
- जठराग्नि बढ़ाता है। इसके अभ्यास से जठराग्नि बढ़ती है इससे सभी कार्य सिद्ध होते हैं।
- कफ़ का शमन होता है। अर्थात् कफ़ नाशक है।
- हृदय-विकारों को दूर करता है, रक्त संचार अच्छे प्रकार से होता है।
- इस आसन के नियमित अभ्यास से एकाग्रता बढ़ती है और स्मरणशक्ति को तेज़ करता है। जो लक्ष्य प्राप्ति के लिए आवश्यक है।
- यदि कोई व्यक्ति घेरण्ड संहिता के अनुसार इस कुम्भक को संपन्न एवं सिद्ध कर लें तो, जरा-मरण भी नष्ट होते हैं।
- क्षयरोग (Tuberculosis disease), कास रोग(खांसी), ज्वर, बुखार (Fever), दुष्ट वायु आदि रोगों का भी नाश होता है।
- कास रोग :- आयुर्वेद में ‘कास’ शब्द का इस्तेमाल खांसी या खांसी की क्रिया को दर्शाने के लिए किया जाता है। सूखी या कफ के साथ आने वाली खांसी को कफ कहते हैं।
👉 यह भी पढ़ें।
- योग क्या हैं – परिभाषा, अर्थ, प्रकार, महत्व, उद्देश्य और इतिहास।
- खाली पेट पानी पीने के 15 फ़ायदे।
- एक दिन में कितना पानी पीना चाहिए।
सारांश।
योग करना अच्छी आदत है। कभी भी जल्दी फायदे पाने के चक्कर में शरीर की क्षमता से अधिक योगाभ्यास करने की कोशिश न करें। योगासनों का अभ्यास किसी भी वर्ग विशिष्ट के लोग कर सकते हैं।
उज्जायी प्राणायाम, इस योगासन के नियमित अभ्यास से शरीर से सम्बंधित बीमारियों को दूर करने में मदद मिलती है। किन्तु हमारी मंत्रणा यही है कि कभी भी किसी अनुभवी योगाचार्य या योग विशेषज्ञ (yoga Expert) की मदद के बिना मुश्किल योगासनों का अभ्यास या आरंभ न करें। किसी योग शिक्षक की देखरेख में ही मुश्किल योगासनों का अभ्यास करें। इसके अलावा अगर कोई गंभीर बीमारी हो तो योगासन का आरंभ करने से पहले डॉक्टर या अनुभवी योगाचार्य की सलाह जरूर लें।
FAQs
Ques 1. उज्जायी प्राणायाम करने की विधि?
Ans. उज्जायी प्राणायाम करने की विधि।
- सर्वप्रथम सिद्धासन या पद्मासन में बैठ जाइए।
- अब योगाचार्यों एवं योग गुरुओं के अनुसार मुख को बंद करके अपने दोनों नासिका द्वारों से धीरे-धीरे वायु को अन्दर कि और खींचें।
- श्वास लेते समय कण्ठ द्वार को संकुचित करें ताकि गले से हल्की ध्वनि उत्पन्न हो वह शब्द करती हुई वायु ग्रीवा (कण्ठ) से लेकर हृदय-पर्यंत तक भर जाए।
- अब बिना किसी चिंता के कुछ क्षण अंतः कुम्भक करें। एवं जालंधर बंध लगाकर निराकुलता पूर्वक यथाशक्ति वायु को धारण करें।
- इसके पश्चात अपने बाएँ नासिका द्वार से श्वास को बाहर छोड़े।
- जिस समय श्वास अन्दर खिंचें उस समय छाती फुलाइए।
- इस प्राणायाम के अभ्यास में फुफ्फुस पूरी तरह से फुल जाते है। और छाती का भाग ऊपर उठ जाता है।
Ques 2. उज्जायी प्राणायाम करने के क्या फायदे है?
Ans. उज्जायी प्राणायाम का नियमित अभ्यास करने के फायदे।
- उज्जायी प्राणायाम के अभ्यास से मानसिक विकार समाप्त होते हैं। अनिद्रा, चिंता, तनाव एवं उन्मादी रोगियों के लिए लाभप्रद आसन है।
- जठराग्नि बढ़ाता है। इसके अभ्यास से जठराग्नि बढ़ती है इससे सभी कार्य सिद्ध होते हैं।
- कफ़ का शमन होता है। अर्थात् कफ़ नाशक है।
- हृदय-विकारों को दूर करता है, रक्त संचार अच्छे प्रकार से होता है।
- इस आसन के नियमित अभ्यास से एकाग्रता बढ़ती है और स्मरणशक्ति को तेज़ करता है। जो लक्ष्य प्राप्ति के लिए आवश्यक है।
- यदि कोई व्यक्ति घेरण्ड संहिता के अनुसार इस कुम्भक को संपन्न एवं सिद्ध कर लें तो, जरा-मरण भी नष्ट होते हैं।
- क्षयरोग (Tuberculosis disease), कास रोग(खांसी), ज्वर, बुखार (Fever), दुष्ट वायु आदि रोगों का भी नाश होता है।
- कास रोग :- आयुर्वेद में ‘कास’ शब्द का इस्तेमाल खांसी या खांसी की क्रिया को दर्शाने के लिए किया जाता है। सूखी या कफ के साथ आने वाली खांसी को कफ कहते हैं।