योगाभ्यास के दौरान शरीर को कई बार आध्यात्मिक अनुभव भी होते हैं। ये अनुभव किसी भी इंसान के जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं। योग आपके जीवन को नई दिशा देता है, योग आपको खुद से मिलाने की ही एक यात्रा है। भारत के महान योग गुरुओं और तपस्वियों ने मनुष्य के जीवन में संतुलन बनाने के लिए कई योगासनों का निर्माण किया है। इन्हीं योगासनों में से एक प्रमुख आसन त्रिकोणासन हैं।
इसलिए, इस लेख में हम त्रिकोणासन तीनों प्रकार के बारे में जानेंगे। त्रिकोणासन क्या है, त्रिकोणासन करने का सही तरीका, त्रिकोणासन करने के फायदे और सावधानियों के बारे में जानकारी देंगे।
त्रिकोणासन का शाब्दिक अर्थ।
- त्रिकोणासन एक संस्कृत भाषा का शब्द हैं। जिसमें त्रिकोण का अर्थ है “तीन कोने” और दूसरा शब्द “आसन” जिसका अर्थ होता है “मुद्रा”।
त्रिकोणासन (प्रथम प्रकार)
त्रिकोणासन (प्रथम प्रकार) करने का सही तरीका।
त्रिकोणासन (प्रथम प्रकार) करने की विधि।
TRIKONASANA PHASE-1
TRIKONASANA PHASE-2
विधि।
- सर्वप्रथम आप अपने आसन पर शांतचित्त व प्रसन्न मन के साथ अपने दोनों पैरों को एक साथ मिलाकर सावधान की स्थिति में खड़े हो जाएं।
- अब दोनों पैरों के बीच 2-3 फ़ीट का अंतर बनाएं।
- अब दोनों हाथों को कंधों की सीध में ज़मीन के समानांतर पक्षियों के पंखों की तरह फैला लें।
- अब शनै: शनै: कमर के ऊपरी हिस्से को सामने दाहिनी तरफ़ झुकाएँ।
- अब दाहिने हाथ की हथेली से दाहिने पैर के पंजे को पकड़ें।
- और बाएँ हाथ की स्थिति को दो प्रकार से रख सकते हैं। और दोनों स्थिति ऊपर विधि में दर्शायी गई है।
- पहली स्थिति में बायाँ हाथ दाहिने हाथ के ऊपर सीध में रहेगा (चित्रनुसार-1)
- एवं दूसरी स्थिति में बायाँ हाथ बाएँ कान के ऊपर रखते हुए त्रिकोण की स्थिति निर्मित करेगा। (चित्रनुसार-2)
- अब इसी क्रिया को बाई तरफ़ झुकते हुए करें।
- और याद रखे दोनों घुटने तने हुए होने चाहिए।
श्वास का क्रम।
- इस आसन के अभ्यास के दौरान झुकते समय श्वास छोड़ें एवं सीधे खड़े होते समय श्वास लें।
त्रिकोणासन का अभ्यास करने के लिए इस वीडियो की मदद लें।
त्रिकोणासन (प्रथम प्रकार) करने के फायदे।
त्रिकोणासन (प्रथम प्रकार) का नियमित अभ्यास करने के फायदे।
- इस आसन के अभ्यास से कूल्हों, जांघों, पैरों की क्वाड्रिसेप्स और हैमस्ट्रिंग मांसपेशियों, तथा कंधे, छाती, पीठ, कमर और रीढ़ की हड्डी में खिचाव लाता है। और इन्हें मज़बूत बनाता है।
- मेरुदण्ड को लचीला बनाता है। और पीठ का दर्द एवं गर्दन के रोग ठीक करता है।
- पाचन ग्रंथियों व पेट के अंगों को उत्तेजित करता है और पाचनशक्ति को बढ़ता अर्थात् इस योगासन का अभ्यास करने से पाचन तंत्र में सुधार होता है। यह उदर-संबंधी विकार ठीक करता है।
- गैस, एसिडिटी,क़ब्ज़ और अपच जैसे समस्याओं को दूर करता है।
- इस आसन के अभ्यास करने से पेल्विक मसल्स मजबूत बनती है।
पेल्विक मसल्स :- पेल्विक फ्लोर उन सभी मांसपेशियों का समूह है जो मूत्राशय (Urinary Bladder), गर्भाशय (Uterus), प्रोस्टेट (Prostate), योनि, मलाशय, और गुदा से जुड़ी रहती हैं। पेल्विक क्षेत्र जांघ के ऊपर और नाभि के नीचे मौजूद होता है।
- सपाट पैर (flat feet), बांझपन, ऑस्टियोपोरोसिस, नपुंसकता, और कटिस्नायुशूल (sciatica) के लिए चिकित्सीय है।
ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis) :- हड्डियों से सम्बंधित का एक चयापचय रोग है, जिसके कारण हड्डियों के घनत्व में कमी हो जाती है। इससे प्रभावित हड्डियों का घनत्व कम हो जाता है और हड्डियां अधिक नाजुक हो जाती हैं, इसलिए हड्डियों के टूटने की संभावना अधिक होती है, जिसके परिणामस्वरूप हड्डियां भंग (fracture) हो जाती हैं।
- यह योगासन कमर दर्द व गर्दन में दर्द से राहत दिलाता है
त्रिकोणासन – प्रकारान्तर (द्वितीय प्रकार)
त्रिकोणासन (द्वितीय प्रकार) करने का सही तरीका।
त्रिकोणासन (द्वितीय प्रकार) करने की विधि।
विधि।
- सर्वप्रथम आप अपने आसन पर शांतचित्त व प्रसन्न मन के साथ अपने दोनों पैरों को एक साथ मिलाकर सावधान की स्थिति में खड़े हो जाएं।
- अब दोनों पैरों के बीच 2-3 फ़ीट का अंतर बनाएं।
- अब दोनों हाथों को कंधों की सीध में ज़मीन के समानांतर पक्षियों के पंखों की तरह फैला लें।
- अब श्वास छोड़ते हुए दाहिने हाथ से बाएँ पैर के पंजे को स्पर्श करें। (चित्रनुसार)
- और बाएँ हाथ को आसमान की तरफ़ ऊपर करें ताकि दोनों हाथों की भुजाएँ एक सीध में हों।
- अब लगभग 5 सेकेंड तक इसी स्थिति में रुकें रहे।
- अब वापस बीच की स्थिति में आ जाएँ और यही क्रिया बाएँ हाथ से करें। तथा दाहिने पैर के पंजे को स्पर्श करें।
- अब धीरे-धीरे अभ्यास करते हुए रुकने की स्थिति में समय बढ़ाएं।
- हाथों को ऊपर की तरफ़ करते हुए दृष्टि आसमान की तरफ़ घुमाकर स्थिर करें।
ध्यान
- इस आसन का अभ्यास करते समय पीठ, पेट एवं पिंडली के तनाव को महसूस करें। और मणिपूरक चक्र पर भी अपना ध्यान केंद्रित करें।
त्रिकोणासन (द्वितीय प्रकार) करने के फायदे।
त्रिकोणासन (द्वितीय प्रकार) का नियमित अभ्यास करने के फायदे।
- गतिमय त्रिकोणासन को प्रतिदिन नियमित रूप से करने पर उदर प्रदेश को अनेक लाभ मिलते है। पाचन तंत्र मज़बूत होता है। और पाचनशक्ति बढ़ती हैं।
- इस आसन के अभ्यास से पीठ, पेट, कमर, कंधों और हाथों-पैरों की अच्छी एक्सरसाइज होती है।
- इस आसन के अभ्यास से पीठ, पेट एवं पिंडली की मांसपेशियों में खिंचाव लगता है। जिससे यह तनाव रहित होकर सशक्त बनती है।
- मोटापे को कम करता है। और पेडू (पेट का निचला हिस्सा) में जमीं चर्बी को कम करता है जिससे कमर लचीली और पतली बनती है।
- कमर शक्ति विकास के लिए यह अति प्रभावकारी आसन है।
- वायु विकार का शमन करता है।
गतिमय त्रिकोणासन (तृतीय प्रकार)
- अब इसी क्रिया अर्थात् [त्रिकोणासन – प्रकारान्तर आसन (द्वितीय प्रकार)] को तेज़ करते हुए इस आसन में गति लाएं।
- कुछ योग शिक्षक इसको पार्श्व त्रिकोणासन, कोणासन और परिवृत- त्रिकोणासन भी कहते हैं।
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सारांश।
योग करना अच्छी आदत है। कभी भी जल्दी फायदे पाने के चक्कर में शरीर की क्षमता से अधिक योगाभ्यास करने की कोशिश न करें। योगासनों का अभ्यास किसी भी वर्ग विशिष्ट के लोग कर सकते हैं।
त्रिकोणासन, इस योगासन के नियमित अभ्यास से शरीर से सम्बंधित बीमारियों को दूर करने में मदद मिलती है। किन्तु हमारी मंत्रणा यही है कि कभी भी किसी अनुभवी योगाचार्य या योग विशेषज्ञ (yoga Expert) की मदद के बिना मुश्किल योगासनों का अभ्यास या आरंभ न करें। किसी योग शिक्षक की देखरेख में ही मुश्किल योगासनों का अभ्यास करें। इसके अलावा अगर कोई गंभीर बीमारी हो तो योगासन का आरंभ करने से पहले डॉक्टर या अनुभवी योगाचार्य की सलाह जरूर लें।